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सारण लोकसभा: लालू जीते लेकिन परिवार हारा, क्या रोहिणी बदलेंगी रिवाज या रूडी फिर करेंगे राज? समझिए समीकरण

 

बिहार के लोकसभा सीटों में सबसे हॉट सीट सारण ही है। जिसका चुनावी इतिहास बहुत ज्यादा पुराना नहीं है। हालाँकि परिसीमन के पहले ये छपरा लोकसभा सीट के नाम से जानी जाती थी। ये सीट राजनीतिक दिग्गजों की लड़ाई के लिए जानी जाती है। दरअसल परिसीमन के बाद 2008 में पहली बार सारण सीट अस्तित्व में आया। जिसके बाद से  एक बार लालू यादव यहाँ से सांसद चुने गए। उसके बाद दो बार उनके परिवार के लोगों ने किस्मत आजमाया लेकिन भाजपा के राजीव प्रताप रूडी से मात खा गए। इस बार भी राजद की तरफ से लालू-राबड़ी की बेटी रोहिणी आचार्य मैदान में हैं। वहीं भाजपा ने लागातार दो बार से जीत रहे राजीव प्रताप रूडी पर ही भरोसा जताया है। 

लालू और लालू परिवार vs रूडी की लड़ाई

सारण  लोकसभा क्षेत्र का महत्त्व इसलिए भी बढ़ जता है क्योंकि यहाँ के चुनाव में एक से बड़े एक राजनीतिक दिग्गजों ने किस्मत आजमाया है। परिसीमन के बाद जब सारण सीट अस्तित्व में आया तो 2009 में यहाँ पहला लोकसभा चुनाव हुआ। जिसमें लालू प्रसाद यादव चुनावी मैदान में कूद पड़े। लालू यादव ने भाजपा के राजीव प्रताप रूडी को हराकर जीत भी हासिल की। लेकिन 2014 में यहाँ खेल पलट गया। राजीव प्रताप रूडी ने राबड़ी देवी को मात दिया और भाजपा का परचम बुलंद किया। 2019 में लालू यादव के समधी चन्द्रिका राय को भी रूडी के हाथों हार का मुंह देखना पड़ा। इसबार लालू ने अपनी बेटी को रोहिणी आचार्य को चुनावी मैदान में उतारा है। वही रोहिणी जिन्होंने अपनी किडनी देकर लालू यादव को जीवनदान दिया। अब बड़ा सवाल ये है कि सारण में राजनीतिक रूप रोहिणी जीवनदान दिला पाएंगी या नहीं। क्योंकि लड़ाई राजीव प्रताप रूडी से ही होनी है जिनके सामने अभी तक लालू को छोड़ उनके परिवार का कोई भी शख्स जीत नहीं सका। 

परिसीमन के पहले का इतिहास 

सारण लोकसभा क्षेत्र 2008 के परिसीमन से पहले छपरा संसदीय क्षेत्र के नाम से जाना था। यह सीट 1957 में सबसे पहले प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के खाते में गयी थी। दल के पहले सांसद राजेन्द्र सिंह निर्वाचित हुए थे। इसके बाद 1962 से 1971 तक लगातार तीन बार यहां से कांग्रेस का पताका फहरा। इसका झंडा तब रामशेखर सिंह ने बुलंद किया था। 1977 के बाद इस सीट पर आरजेडी व बीजेपी समय समय पर कामयाबी हासिल करती रही है। 1996 और 1999 में राजीव प्रताप रूडी यहाँ से सांसद चुने गए थे।वहीं 1989 और 2004  में लालू यादव भी सांसद बने।

जातीय समीकरण

सारण में जातीय समीकरण भी दिलचस्प है। यहां यादवों की संख्या 25 फीसदी, राजपूतों की 23 फीसदी, वैश्य 20 फीसदी, मुस्लिम 13 फीसदी और दलित 12 फीसदी हैं। इस लिहाज से पार्टियां यहां राजपूत और यादव उम्मीदवार पर ही दांव खेलती है। इस बार भी राजद यादव जबकि भाजपा राजपूत उम्मीदवार के भरोसे है। यदि रोहिणी को जीत हासिल करनी है तो उन्हें यादव और मुस्लिम के अलावा भाजपा के वोटरों में सेंधमारी करनी पड़ेगी। जो भाजपा की स्थिति को सारण में मजबूत बनाते हैं। दलित और पिछड़ी जातियों का वोट काफी निर्णायक होने वाला है। 

6 में से विधानसभा में राजद मजबूत 

अब बात सारण के अंतर्गत आने वाले विधानसभा क्षेत्र के बारे में कर लेते हैं। जिसमें से 4 पर राजद और 2 पर भाजपा का कब्ज़ा है। यानि यहाँ राजद के स्थिति मजबूत है।

 

 

अब बात सारण के अंतर्गत आने वाले विधानसभा क्षेत्र के बारे में कर लेते हैं। जिसमें से 4 पर राजद और 2 पर भाजपा का कब्ज़ा है। परसा से राजद के छोटेलाल राय, सोनपुर से राजद के रामानुज प्रसाद यादव , गड़खा से राजद के सुरेन्द्र राम और मढौरा से राजद के जीतेन्द्र कुमार राय, अमनौर से भाजपा के कृष्णा कुमार मंटू, छपरा से भाजपा के सीएन गुप्ता विधायक हैं।