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सीतामढ़ी लोकसभा : JDU के देवेश बनेंगे 'ठाकुर' या RJD के अर्जुन बदलेंगे जनता की 'राय', समझिए समीकरण

 

बिहार में पांचवें चरण में यानि 20  मई को जिन 5 सीटों पर मतदान होना है। उसमें एक नाम सीतामढ़ी लोकसभा सीट का भी है। माता सीता की जन्मभूमि के रूप में पहचान वाली इस सीट की चुनावी लड़ाई भी काफी रोचक है। सबसे अलग बात ये है कि वर्त्तमान में देश की सत्ता काबिज भाजपा यहाँ से कभी भी अपना कोई उम्मीदवार मैदान में नहीं उतारा है और सहयोगियों के भरोसे ही रही।हालांकि यह बात अलग है कि सीतामढ़ी के मौजूदा सांसद सुनील कुमार पिंटू एक वक्त में भाजपा के ही विधायक थे। नीतीश सरकार में मंत्री भी रहे  लेकिन 2019 में कुछ ऐसा हुआ कि सुनील कुमार पिंटू जदयू के टिकट पर चुनाव लड़े और सांसद बने। वो खुद को भाजपा का बौरो खिलाड़ी बताने से भी नहीं चुकाते हैं। लेकिन इसबार जदयू ने उनका टिकट काट कर देवेश चन्द्र ठाकुर को उम्मीदवार बनाया है। वहीं दूसरी I.N.D.I.A गठबंधन से राजद ने एक बार फिर अर्जुन राय को मैदान में उतारा है। अब इसे विस्तार से समझाना होगा कि सीतामढ़ी का समीकरण क्या कहता है।

सुनील को किनारे कर नीतीश ने देवेश पर जताया भरोसा

NDA गठबंधन में ये सीट एक बार फिर से जदयू के खाते में आई। लेकिन जदयू ने यहाँ के मौजूदा सांसद सुनील कुमार पिंटू का टिकट काट दिया। इसके पीछे की बड़ी रोचक वजह भी है। हालांकि 2019 में जरुर सुनील कुमार पिंटू ने जदयू उम्मीदवार के रूप में जीत हासिल की थी पर जदयू में उनकी इंट्री भाजपा के बौरो प्लेयर के रूप में हुई थी। क्योंकि सीतामढ़ी से जदयू ने जिसे उम्मीदवार बनाया था उसने चुनाव लड़ने से मना कर दिया था। नीतीश के महागठबंधन रहते समय भी सांसद सुनील कुमार पिंटू भाजपा और पीएम मोदी के पक्ष में कसीदे पढ़ते थे। उसी समय से वो जदयू के आँखों में खटक रहे थे। आखिरकार उनका टिकट काट कर नीतीश कुमार ने बिहार विधान परिषद् के सभापति देवेश चन्द्र ठाकुर पर भरोसा जताया है। जो ब्राह्मण जाती से ताल्लुक रखते हैं और सीतामढ़ी के जातीय समीकरण में भी फिट बैठते हैं।

कभी JDU के सांसद रहे अब लालू के बने अर्जुन  

राजद ने 2019 की तरह एक बार फिर अर्जुन राय पर भरोसा जताया है। जो 2009 में सीतामढ़ी जदयू सांसद बने थे। उससे पहले 2005 में औरया से राजद के विधायक भी रहे। 2014 में भी जदयू के उम्मीदवार के रूप में सीतामढ़ी से लड़े लेकिन जीत नहीं सके। राजद अपने MY समीकरण के जरिए यहाँ जीत हासिल करने की कोशिश में है। यही कारण हैं पिछली बार करारी हार के बावजूद अर्जुन राय पर लालू यादव ने भरोसा जताया है। अब राजद के समीकरण को साधने में अर्जुन सफल होंगे या पिछली बार की तरफ निशाने से चुक जायेंगे। इसका फैसला तो 4 जून को ही होगा।

किसका पलड़ा भारी? 

सीतामढ़ी लोकसभा सीट पर आजादी के बाद से अब तक कुल 16 चुनाव हुए हैं। इसमें सबसे अधिक पांच बार इस सीट पर कांग्रेस का कब्जा रहा है। कांग्रेस के उम्मीदवार सीतामढ़ी सीट पर 1957 से 1984 के बीच 5 बार जीते हैं। जबकि राजद और जदयू के उम्मीदवारों के खाते में 2-2 बार यह सीट गई है। पिछले तीन चुनावों में उसी उम्मीदवार को जीत मिली है, जिसे भाजपा का समर्थन मिला है। पिछले तीन चुनावों में दो बार जदयू के उम्मीदवार जीते हैं। लेकिन 2014 में जदयू ने जब भाजपा से अलग होकर चुनाव लड़ा था तो भाजपा की सहयोगी पार्टी रालोसपा के उम्मीदवार रामकुमार शर्मा को इस सीट से जीत मिली थी। वैसे तो हर चुनाव की अलग कहानी होती है लेकिन सीट के इतिहास का भी अपना महत्व होता है। सीतामढ़ी सीट पर 2024 में क्या होगा, यह तो कल यानि 20 मई को EVM  में बंद हो जायेगा और 4 जून को पता चलेगा। लेकिन जदयू और भाजपा का साथ होना यहाँ NDA  के लिए मजबूत स्थिति बनती दिख रही है। सीतामढ़ी लोकसभा सीट के अंतर्गत आने वाले 6 विधानसभा की बात करें तो यहाँ भी NDA मजबूत है। 6  में से 3 में भाजपा के 2 में जदयू के और सिर्फ एक में राजद के विधायक हैं।

सीतामढ़ी लोकसभा का जातीय गणित

सीतामढ़ी लोकसभा के जातीय समीकरण पर नजर डालें तो इस सीट पर सबसे ज्यादा वैश्य मतदाता लगभग 5 लाख हैं। अति पिछड़ा समाज के वोटरों की संख्या भी लगभग 2 लाख 80 हजार है। सीतामढ़ी में मुस्लिम वोटरों की संख्या भी 2.5 लाख मानी जाती है। यादव जातियों के मतदाताओं की संख्या लगभग 2 लाख है। अगड़ी जातियों के मतदाताओं की संख्या भी लगभग 2 लाख 60 हजार है। दलित महादलित वोटरों की संख्या 2 लाख के आसपास मानी जाती है। वहीं कोइरी-कुर्मी मतदाताओं की संख्या भी 1.5 लाख है।