बिहार चुनाव से पहले दो ‘दिलजले’ एक मंच पर, क्या हिल जाएगी चुनावी जमीन?
Patna, New Delhi: बिहार विधानसभा चुनाव 2025 से पहले नेताओं की हलचल तेज हो गई है। अब नेताओं की मुलाकातें और बयानबाज़ी यह तय करने लगी हैं कि किसका राजनीतिक भविष्य किस करवट बैठेगा। ताज़ा चर्चाओं के केंद्र में हैं भोजपुरी सिनेमा के पावर स्टार पवन सिंह और पूर्व केंद्रीय मंत्री व बीजेपी नेता आरके सिंह।
दिल्ली में दोनों की मुलाकात की तस्वीर सोशल मीडिया पर क्या आई, पटना से लेकर पूरे शाहाबाद इलाके तक सियासी पारा चढ़ गया। कहा जा रहा है कि यह मुलाकात महज औपचारिक नहीं बल्कि बिहार की ज़मीनी राजनीति की नई पटकथा लिखने की शुरुआत हो सकती है।
क्यों है इस मुलाकात पर इतनी चर्चा?
दोनों नेता लोकसभा चुनाव 2024 में हार चुके हैं:
- पवन सिंह ने काराकाट से निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर चुनाव लड़ा और 2.74 लाख वोट बटोरे, लेकिन माले के राजाराम सिंह से हार गए।
- बीजेपी के दिग्गज आरके सिंह आरा से चुनाव हार गए। हार के बाद उन्होंने पार्टी के अंदरूनी नेताओं और जातिगत समीकरणों को जिम्मेदार ठहराया था।
दोनों की हार में एक खास जाति वोट बैंक की अहम भूमिका मानी जाती है। यही कारण है कि अब जब विधानसभा चुनाव पास आ रहे हैं तो इनकी नज़दीकियां राजनीतिक संदेश देती नज़र आ रही हैं।
क्या लिखी जाएगी नई राजपूत राजनीति?
राजपूत समाज की हिस्सेदारी बिहार में भले 5-6% ही हो, लेकिन शाहाबाद क्षेत्र ''आरा, बक्सर, काराकाट और सासाराम'' में इसका असर निर्णायक माना जाता है।
- पवन सिंह अपनी भोजपुरी सिनेमा की लोकप्रियता और युवाओं के बीच फैन फॉलोइंग के दम पर मैदान में हैं।
- वहीं आरके सिंह प्रशासनिक अनुभव और बीजेपी में पकड़ के साथ रणनीति बनाने में माहिर माने जाते हैं।
राजनीतिक जानकारों की मानें तो दोनों की साझेदारी अगर होती है, तो यह राजपूत वोटों को एकजुट करने की दिशा में बड़ा कदम होगा।
पवन सिंह का संदेश और नई सोच
पवन सिंह ने अपनी मुलाकात की तस्वीर शेयर करते हुए लिखा, “एक नई सोच के साथ, एक नई मुलाकात। यह छोटा सा वाक्य ही राजनीति के गलियारों में कई सवाल छोड़ गया है। क्या दोनों मिलकर कोई नया राजनीतिक मंच तैयार कर रहे हैं? क्या पवन सिंह किसी नई पार्टी में शामिल होंगे या खुद नया मोर्चा बनाएंगे?

कुशवाहा बनाम राजपूत समीकरण?
लोकसभा चुनाव में पवन सिंह की उम्मीदवारी से उपेंद्र कुशवाहा को बड़ा नुकसान हुआ था। अब सवाल है कि अगर आने वाले चुनाव में राजपूत वोट एकजुट हुए, तो उसका असर किस पर पड़ेगा? क्या यह सीधा-सीधा कुशवाहा-कुर्मी वोटबैंक बनाम राजपूत वोटबैंक की जंग बनेगी?
जानकार क्या कहते हैं?
वरिष्ठ पत्रकार संजीव पांडेय कहते हैं, पवन सिंह और आरके सिंह की मुलाकात को सिर्फ शिष्टाचार भेंट मानना भूल होगी। यह मुलाकात आने वाले विधानसभा चुनाव में नई रणनीति की ओर इशारा करती है।”
बड़ा सवाल
- क्या बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में “सिंह इज़ किंग” का जलवा दिखेगा?
- क्या दो ‘घायल शेर’ (पवन सिंह और आरके सिंह) मिलकर चुनावी गणित बदल देंगे?
- और सबसे अहम, क्या यह मुलाकात बिहार की राजनीति में राजपूत बनाम कुशवाहा-कुर्मी की नई जंग की शुरुआत है?







