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गांगेय डॉल्फिन की जनसंख्या गणना का कार्यक्रम शुरू होगा: अश्विनी चौबे

डॉल्फिन प्राचीन काल से भारत में रही हैं. डॉल्फिन नदी प्रदूषण को नियंत्रित करने में योगदान देती हैं और इस तरह पानी की गुणवत्ता में सुधार करने में सक्षम होती हैं. भारत में करीब तीन हजार डॉल्फिन हैं.
 

देश में हो रहे जलवायु परिवर्तन और प्रदूषण का एक नुकसानदेह पहलू यह भी है कि विभिन्न प्रजातियां विलुप्त होने की कगार पर आ गए हैं। इनमें से एक है गंगा में पाए जाने वाले डॉल्फिन। डॉल्फिन की संख्या दिन प्रतिदिन कम होती जा रही है। इसे लेकर केंद्र सरकार अपनी ओर से कई प्रयास कर रही है। इस कड़ी में केंद्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन तथा उपभोक्ता मामले, खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण प्रणाली राज्य मंत्री अश्विनी कुमार चौबे ने कहा कि गांगेय डॉल्फिन की जनसंख्या गणना की जाएगी।  हाल ही में मंत्रालय ने इसे लेकर एक गाइडलाइन भी जारी किया है। डॉल्फिन की गणना वैज्ञानिकों, वन विभागों, गैर सरकारी संगठनों के विशेषज्ञों, स्थानीय लोगों आदि की भागीदारी से की जाएगी और यह एक संयुक्त प्रयास होगा। बता दें, मंत्री अश्विनी चौबे बिहार के भागलपुर जिला में वन प्रमंडल द्वारा गांगेय डॉल्फिन दिवस पर आयोजित कार्यक्रम को दिल्ली से वर्चुअल माध्यम से संबोधित कर रहे थे। 

मंत्री ने कहा कि कार्यक्रम का प्राथमिक लक्ष्य डॉल्फिन का संरक्षण और नदियों पर निर्भर समुदायों की आर्थिक स्थिति को बेहतर बनाना है। डॉल्फिन का संरक्षण लोगों और जैव विविधता के बीच एक सहजीवी संबंध और जैव विविधता के लिए दीर्घकालिक सुरक्षा सुनिश्चित करेगा। केंद्रीय राज्यमंत्री चौबे ने प्रोजेक्ट डॉल्फिन के बारे में अवगत कराया। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व एवं मार्गदर्शन में इस प्रोजेक्ट के तहत डॉल्फिन का संरक्षण एवं संवर्धन किया जाएगा। इको टूरिज्म को बढ़ावा देने के लिए आधारभूत संरचना का निर्माण करवाया जाएगा। 

अश्विनी कुमार चौबे

उन्होंने कहा कि 74वें स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर लालकिले से देश को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री ने प्रोजेक्ट डॉल्फिन लॉन्च करने घोषणा की थी। इस प्रस्तावित परियोजना का उद्देश्य नदी और समुद्री डॉल्फिन की सुरक्षा करना है। केंद्रीय राज्य मंत्री चौबे ने कहा कि भारत सरकार डॉल्फिन के साथ-साथ घड़ियाल, कछुओं, मछलियों, पक्षियों आदि जैसी अन्य संबद्ध प्रजातियों के संरक्षण के लिए एक महत्वाकांक्षी परियोजना, जिसका नाम 'प्रोजेक्ट डॉल्फिन' है, को आगे बढ़ा रही है। 

डॉल्फिन प्राचीन काल से भारत में रही हैं। डॉल्फिन नदी प्रदूषण को नियंत्रित करने में योगदान देती हैं और इस तरह पानी की गुणवत्ता में सुधार करने में सक्षम होती हैं। भारत में करीब तीन हजार डॉल्फिन हैं। असम, उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश, राजस्थान, झारखंड और पश्चिम बंगाल में अधिक संख्या में डॉल्फिन पाईं जाती हैं।  गंगा के साथ सहायक नदियों में भी डॉल्फिन है।  बिहार में सुल्तानगंज से लेकर कहलगांव तक के करीब 60 किलोमीटर क्षेत्र को 'गैंगेटिक रिवर डॉल्फिन संरक्षित क्षेत्र' घोषित किया गया है। 

वहीं डॉल्फिन परियोजना के बारे में बताते हुए कहा कि यह इस योजना की शरुआत डॉल्फिन के संरक्षण और स्थानीय समुदायों के लिए बेहतर आजीविका के अवसर तलाशने के उद्देश्य से हुआ है। उन्होंने सुझाव दिया कि कनाडा एवं जापान की तर्ज पर बिहार में एवं अन्य जगहों पर जहां डॉल्फिन हैं वहां पर डॉल्फिन दर्शन केंद्र की स्थापना हो। इससे आसपास के क्षेत्रों में रोजगार को बढ़ावा मिलेगा। नाव संचालक, डॉल्फिन दिखाने के लिए गाइड, स्थानीय व्यंजनों और हस्तशिल्प आदि को भी बढ़ावा मिलेगा। 

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