विश्व संवाद केंद्र की संगोष्ठी में राज्यपाल ने संवाद, ज्ञान और भारतीय अस्मिता पर दिया उद्बोधन, कहा-शक्ति के संवाद में भी भारत श्रेष्ठ

पटना स्थित बीआईए सभागार में विश्व संवाद केंद्र, पटना द्वारा आयोजित 'देवर्षि नारद स्मृति समारोह' में शामिल होते हुए बिहार के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खां ने संवाद और भारतीय परंपरा की महत्ता पर गहरी बात रखी। उन्होंने कहा कि भारत की आत्मा संवाद में रची-बसी है। जहां संवाद निष्प्रभावी हो जाए, वहां शक्ति के संवाद की आवश्यकता पड़ती है – और इसमें भी भारतवासी सक्षम हैं। इसी विचार को हमारे प्राचीन ऋषियों ने सूत्र में पिरोया – "अग्रतः सकलं शास्त्रं, पृष्ठतः सशरं धनु..."।
‘राष्ट्रीय अस्मिता और समकालीन चुनौतियां’ विषय पर मुख्य वक्ता के रूप में बोलते हुए उन्होंने स्वामी रंगनाथ का स्मरण करते हुए श्लोक ‘तपः स्वाध्याय निरतं तपस्वी वाग्विदां वरम्’ का उल्लेख किया। उन्होंने कहा कि ज्ञान का अर्जन तभी सार्थक होता है जब वह समाज में प्रसारित हो। यह ही माँ सरस्वती के प्रति सच्चा समर्पण है। इतिहास की त्रासदी यह रही कि हम ज्ञान के प्रसार से दूर हो गए, जिसका खामियाजा विदेशी आक्रमणों के रूप में भुगतना पड़ा।

राज्यपाल ने इस बात पर संतोष जताया कि अब भारतीय समाज फिर से अपनी मूल परंपराओं और बौद्धिक विरासत की ओर लौट रहा है। उन्होंने स्वामी विवेकानंद का हवाला देते हुए कहा कि ज्ञान का लक्ष्य केवल सुख नहीं, बल्कि जीवन की विविधताओं के पीछे छिपी एकता को पहचानना है। उन्होंने श्रोताओं को स्वामी विवेकानंद की प्रसिद्ध पुस्तक ‘कोलंबो से अल्मोड़ा तक’ पढ़ने की सलाह भी दी।
उन्होंने पांच प्राचीन सभ्यताओं – ईरान, चीन, रोम, तुर्क और भारत – का जिक्र करते हुए कहा कि केवल भारतीय सभ्यता ने अपने बौद्धिक योगदान से वैश्विक पहचान बनाई है। उन्होंने रवींद्रनाथ टैगोर को उद्धृत करते हुए कहा कि भारत की आत्मा उसके जीवंत शब्दों में बसी है। भारतीय मनीषा आत्मश्लाघा को आत्महत्या के समान मानती है।
बिहार के विश्वविद्यालयों में बढ़ रही हिंसा पर चिंता जताते हुए राज्यपाल ने स्पष्ट कहा कि यह अत्यंत गंभीर विषय है। शिक्षा के मंदिरों को बम धमाकों के अड्डे बनने देना किसी भी सूरत में स्वीकार नहीं किया जा सकता।
समारोह की अध्यक्षता कर रहे बिहार विधानसभा अध्यक्ष नंदकिशोर यादव ने भी भारतीय जीवन-दृष्टि की विवेकपूर्ण व्याख्या करते हुए कहा कि भारत संतुलन आधारित जीवन को मानता है – चाहे वह दैहिक, दैविक या भौतिक उन्नति हो। उन्होंने कहा कि आज जिन बातों को लेकर वैश्विक समाज चिंतित है, उसका समाधान हमारे ऋषियों ने हजारों वर्ष पहले सोच लिया था। पेड़-पौधों को पानी देना और पशु-पक्षियों को अन्न देना हमारे यहां धर्म का हिस्सा है।
इस अवसर पर विश्व संवाद केंद्र न्यास की परंपरा के अनुसार तीन पत्रकारों को सम्मानित किया गया:
- 'डॉ. राजेंद्र प्रसाद पत्रकारिता शिखर सम्मान' : वरिष्ठ पत्रकार अनिल विभाकर
- 'पं. केशवराम भट्ट पत्रकारिता सम्मान' : नवादा के पत्रकार विशाल कुमार
- 'बाबूराव पटेल रचनाधर्मिता सम्मान' : छायाकार सचिन कुमार को प्रदान किया गया।
कार्यक्रम में वार्षिक स्मारिका ‘प्रत्यंचा’ का लोकार्पण भी हुआ। मंच का संचालन संपादक संजीव कुमार ने किया और धन्यवाद ज्ञापन डॉ. संजीव चौरसिया ने प्रस्तुत किया। सभा में पटना के प्रमुख मीडिया संस्थानों के वरिष्ठ पत्रकार, शिक्षण संस्थानों के अधिकारी, प्राध्यापक, साहित्यकार और विद्यार्थियों की बड़ी उपस्थिति रही।