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बिहार सरकार को SC की फटकार, CJI ने शराबबंदी कानून पर उठाए सवाल

चीफ जस्टिस एनवी रमण के नेतृत्व वाली बेंच ने आरोपियों की जमानत के खिलाफ बिहार सरकार की ओर से दायर याचिकाओं को खारिज कर दिया 
 


बिहार में शराबबंदी कानून को लेकर सर्वोच्च न्यायालय खासा नाराज है। कोर्ट का कहना है कि इस कानून के कारण न्याय व्यवस्था पर गहरा प्रभाव पड़ा है। शराबबंदी कानून के मद्देनजर कई केस आते हैं और कई केस पेंडिंग रह जाते हैं। न्यायालय पर पहले से ही दबाव है। बता दें कि कुछ दिन पहले मुख्य न्यायाधीश ने अमरावती में एक कार्यक्रम में शराबबंदी कानून में दूरदर्शिता की कमी बताई थी। वहीं एक बार फिर से मुख्य न्यायाधीश ने शराबबंदी कानून को लेकर बिहार सरकार को जमकर फटकार लगाई है। अदालत में हुए एक सुनवाई के दौरान ही बिहार सरकार के फैसले को कटघरे में खड़ा किया गया।

चीफ जस्टिस एनवी रमण के नेतृत्व वाली बेंच ने आरोपियों की जमानत के खिलाफ बिहार सरकार की ओर से दायर याचिकाओं को खारिज कर दिया। प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति एन वी रमण के नेतृत्व वाली पीठ ने बिहार सरकार की इस दलील को खारिज कर दिया कि आरोपियों से जब्त की गई शराब की मात्रा को ध्यान में रखते हुए वजह के साथ जमानत आदेश पारित करना सुनिश्चित कराया जाए और इसके लिए दिशानिर्देश तैयार हों।

मुूख्यमंत्री

इस पर चीफ जस्टिस ने भड़कते हुए कहा, " क्या आप जानते हैं कि इस कानून ने पटना हाईकोर्ट के कामकाज को कितना प्रभावित किया है और वह अदालत अब किसी मामले को सूचीबद्ध करने में एक साल का समय ले रही है। बिहार की सभी अदालतें शराबबंदी मामलों पर ही सुनवाई से घिरी हैं।" सीजेआई रमण ने आगे कहा, " मुझे बताया गया है कि पटना हाईकोर्ट के 14-15 जज हर दिन इन जमानत के मामलों को सुन रहे हैं। इसकी वजह से और किसी मामले पर सुनवाई नहीं हो पा रही है।" इसी के साथ सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश ने राज्य सरकार की तरफ से शराबबंदी मामलों में हुई जमानतों के खिलाफ दायर 40 अपीलों को एक साथ ठुकरा दिया।

सुनवाई के दौरान बिहार सरकार की ओर से पेश अधिवक्ता मनीष कुमार ने कहा कि शिकायत यह है कि उच्च न्यायालय ने कानून के गंभीर उल्लंघन में शामिल आरोपियों को बिना कारण बताए जमानत दे दी है, जबकि कानून में इसके तहत गंभीर अपराधों के लिए 10 साल की जेल से लेकर आजीवन कारावास तक की सजा का प्रावधान है। उन्होंने कहा कि कुछ आरोपी 400 से 500 लीटर शराब ले जाते या बेचते पाए गए हैं और फिर भी उन्हें ‘यांत्रिक तरीके’ से जमानत दी गई है, जबकि वह चार-पांच महीने ही जेल में रहे हैं। मनीष कुमार ने कहा, "मेरी समस्या यह है कि शराब के मामलों में उच्च न्यायालय द्वारा लगातार जेल में बिताई गई कुछ अवधि के आधार पर ही जमानत के आदेश पारित किए जा रहे हैं।" प्रधान न्यायाधीश ने इस पर चुटकी लेते हुए कहा, "तो आपके हिसाब से हमें सिर्फ इसलिए जमानत नहीं देनी चाहिए, क्योंकि आपने कानून बना दिया है।" पीठ ने तब हत्या पर भारतीय दंड संहिता के प्रावधान का हवाला दिया और कहा कि जमानत और कभी-कभी, इन मामलों में अदालतों द्वारा अग्रिम जमानत भी दी जाती है। 

चीफ जस्टिस एनवी रमण
चीफ जस्टिस एनवी रमण

गौरतलब है कि शराबबंदी से जुड़े मामलों पर सुप्रीम कोर्ट की यह टिप्पणी काफी महत्वपूर्ण है। दरअसल, सीजेआई रमण ने हाल ही में आंध्र प्रदेश के अमरावती में एक समारोह में बिहार के शराबबंदी कानून का जिक्र किया था और कहा था कि इसकी वजह से राज्य की अदालतों और उच्च न्यायालय में बहुत सारे जमानत आवेदन दाखिल हुए हैं। उन्होंने कहा था कि कानून बनाने में दूरदर्शिता की कमी सीधे तौर पर अदालतों को अवरुद्ध कर सकती है।

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