बायो मेडिकल वेस्ट पर उपायुक्तों की चुप्पी पर हाईकोर्ट सख्त, 16 जून तक जवाब दाखिल करने का अंतिम मौका

झारखंड में अस्पतालों और नर्सिंग होम्स से निकलने वाले बायो मेडिकल कचरे के निपटारे को लेकर झारखंड ह्यूमन राइट्स फेडरेशन द्वारा दायर जनहित याचिका पर सुनवाई के दौरान झारखंड हाईकोर्ट ने कड़ा रुख अपनाया है। मुख्य न्यायाधीश एमएस रामचंद्र राव की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने राज्य के विभिन्न जिलों के उपायुक्तों द्वारा जवाब दाखिल न किए जाने पर असंतोष जताया है।
पहले ही मिल चुका था समय
कोर्ट ने साफ किया कि पिछली सुनवाई 25 फरवरी 2025 को हुई थी, जिसमें शपथ पत्र दाखिल करने का निर्देश दिया गया था। इसके बावजूद राज्य सरकार ने 6 सप्ताह का अतिरिक्त समय मांगा, जिसे अदालत ने अस्वीकार कर 8 मई की अगली तारीख तय की थी। लेकिन तय समय तक भी जवाब न आने पर कोर्ट ने नाराजगी जाहिर करते हुए सरकार को अंतिम मौका देते हुए 16 जून तक जवाब देने का आदेश दिया है।

राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने अदालत को जानकारी दी थी कि वर्तमान में लोहरदगा, रामगढ़, धनबाद, पाकुड़ और सरायकेला के आदित्यपुर में बायो मेडिकल वेस्ट ट्रीटमेंट प्लांट संचालित हैं। वहीं देवघर में इस दिशा में काम जारी है।
संक्रमण रोकने के लिए जरूरी है कचरे का वैज्ञानिक निपटारा
झारखंड ह्यूमन राइट्स फेडरेशन ने पर्यावरण संरक्षण अधिनियम के तहत बायो मेडिकल कचरे के समुचित निस्तारण की व्यवस्था की मांग की थी। बायो मेडिकल वेस्ट यानी बीएमडब्ल्यू, अस्पतालों में मरीजों के इलाज, टीकाकरण या परीक्षण के दौरान उत्पन्न कचरे को कहा जाता है, जिसमें संक्रमित पट्टियां, इस्तेमाल की गई सीरिंज, रक्तयुक्त सामग्री, टिशू आदि शामिल होते हैं।
इस कचरे की विभिन्न श्रेणियां होती हैं – जैसे कि संक्रामक, रासायनिक, साइटोटॉक्सिक, और रेडियोधर्मी अपशिष्ट। अगर इसका उचित निष्पादन नहीं किया गया तो यह संक्रमण फैलाने का गंभीर माध्यम बन सकता है। इसके प्रबंधन में लापरवाही करने पर दंडात्मक कार्रवाई का भी प्रावधान है।