दुमका : हाईकोर्ट की मनाही के बावजूद प्रशासन ने तोड़ा मकान, अदालत ने प्रशासन को लगायी फटकार
झारखंड हाईकोर्ट में आज अतिक्रमण बता कर मकान तोड़े जाने के खिलाफ प्रार्थी ओमप्रकाश द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई हुयी। इस दौरान अदालत ने प्रशासन से दोबारा मकान बनाने और प्रार्थी को पांच लाख मुआवज़ा देने का आदेश दिया। अदालत ने आदेश में कहा कि जब हाई कोर्ट के आदेश के आलोक में प्रार्थी ने निर्धारित समय में अपीलीय प्राधिकार में अपील दाखिल कर दिया था। कोर्ट ने मकान नहीं तोड़ने का आदेश दिया था, तो उनका मकान क्यों तोड़ा गया। मकान तोड़ने के पहले झारखंड सरकारी जमीन अतिक्रमण एक्ट के तहत कोई कार्रवाई भी नहीं चलाई गई।
दरअसल, मामले में दुमका सदर सीओ ने ओमप्रकाश की जमीन को अतिक्रमण बताते हुए दो सप्ताह में हटाने का नोटिस दिया था। कुछ समय बाद फिर से सीओ ने प्रार्थी की जमीन खाली करने का आदेश दिया, ऐसा नहीं करने पर उसे तोड़ने का आदेश दिया गया। इसके खिलाफ प्रार्थी ने हाई कोर्ट में याचिका दाखिल की थी।
कोर्ट ने कार्रवाई पर लगाई थी रोक
प्रार्थी ने कोर्ट को बताया कि उक्त जमीन पर वह वर्ष 1949 से रह रहे हैं। पूर्व में सुनवाई करते हुए हाई कोर्ट ने प्रार्थी को दो सप्ताह में सक्षम प्राधिकार के पास अपील दाखिल का आदेश था। साथ ही, इस दौरान किसी तरह की कोई कार्रवाई नहीं करने का आदेश दिया था। कोर्ट के आदेश के आलोक में प्रार्थी ने निर्धारित समय सीमा के दौरान एसडीओ दुमका के पास अपील दायर की। एसडीओ ने दो सप्ताह की अवधि पूरा होने के बाद बुलडोजर से उनके मकान को तोड़ दिया। जबकि उसकी अपील लंबित थी।
मकान तोड़ने के पहले एसडीओ ने अपील को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि यह अपील एडिशनल कलेक्टर के पास दाखिल की जानी थी। प्रार्थी ने दोबारा हाई कोर्ट में याचिका दाखिल करते हुए कहा कि गलत जगह अपील दाखिल करने के बावजूद उनकी अपील को एसडीओ खारिज नहीं की कर सकते। वह संबंधित प्राधिकार के पास उनकी अपील भेज सकते थे।
राज्य सरकार का क्या कहना था
राज्य सरकार का कहना था कि वर्ष 2009 में यह जमीन झारखंड सरकार को ट्रांसपोर्ट विभाग के लिए आवंटित की गई है। इससे पहले एकीकृत बिहार के समय यह जमीन बिहार राज्य ट्रांसपोर्ट के लिए वर्ष 1959 में अधिग्रहित की गई थी