झारखंड में अधूरी तैयारी के साथ लागू हुआ जियो टैगिंग सिस्टम, आम लोगों के लिए मुसीबत बना जमीन म्यूटेशन

झारखंड सरकार ने जमीन संबंधी प्रक्रिया को पारदर्शी और फर्जीवाड़ा मुक्त बनाने के उद्देश्य से म्यूटेशन प्रक्रिया में जियो टैगिंग तकनीक को लागू किया है। इसके अंतर्गत अब म्यूटेशन तभी किया जाएगा जब राजस्व उपनिरीक्षक जमीन पर खुद जाकर निरीक्षण करेंगे और वहां की जीपीएस लोकेशन युक्त फोटो सिस्टम में अपलोड करेंगे। इस नई प्रणाली का उद्देश्य बेहतर प्रशासनिक नियंत्रण और रिकॉर्ड की सुरक्षा है, लेकिन ज़मीनी हकीकत इससे काफी अलग है।
बिना समुचित तैयारी शुरू किया गया सिस्टम
दरअसल राज्य के कई जिलों में इस तकनीक को लागू करने से पहले पर्याप्त तैयारी नहीं की गई। अंचल कार्यालयों के अधिकारियों का कहना है कि न तो सही तरीके से प्रशिक्षण दिया गया और न ही आवश्यक तकनीकी ढांचा उपलब्ध कराया गया, इसके बावजूद नई प्रणाली को आनन-फानन में चालू कर दिया गया। रांची जिले के अधिकारियों को केवल अधूरा ऑनलाइन प्रशिक्षण ही मिला, जो मौजूदा चुनौतियों के लिहाज से नाकाफी है।

तकनीकी समस्याएं बनी बाधा
इंटरनेट की धीमी गति, फोटो अपलोड में दिक्कत और मोबाइल नेटवर्क की कमी जैसी समस्याएं सिस्टम के सुचारू संचालन में बड़ी रुकावट बन रही हैं। पलामू जैसे जिलों में जहां म्यूटेशन की प्रक्रिया धीरे-धीरे शुरू हुई है, वहां भी अधिकांश फाइलें अटकी पड़ी हैं। अधिकारियों की मानें तो जब तक कर्मचारियों को पर्याप्त तकनीकी मदद और प्रशिक्षण नहीं मिलेगा, तब तक यह व्यवस्था अपने लक्ष्य तक नहीं पहुंच पाएगी।
राज्य भर में समान स्थिति
म्यूटेशन प्रक्रिया में देरी की समस्या केवल कुछ जिलों तक सीमित नहीं है, बल्कि पूरे झारखंड में इसका असर दिख रहा है। आम नागरिक महीनों से म्यूटेशन के लिए आवेदन कर रहे हैं, लेकिन उनका समाधान नहीं हो पा रहा। फाइलें लटकी हुई हैं, और अफसर तकनीकी अड़चनों में उलझे हुए हैं। प्रशासन की ओर से इस गंभीर स्थिति पर कोई स्पष्ट कार्रवाई नहीं दिख रही है।
कर्मचारियों पर कार्यभार का दबाव
अनेक अंचलों में एक ही राजस्व कर्मचारी को दो से तीन हलकों की जिम्मेदारी दी गई है, जबकि एक हलका में कई गांव शामिल होते हैं। उन्हें अपने खर्चे पर मोबाइल से फोटो खींच कर डेटा अपलोड करना पड़ रहा है। न तो सरकार की ओर से यात्रा भत्ता दिया जा रहा है और न ही इंटरनेट जैसी मूलभूत सुविधाएं। इससे कर्मचारी मानसिक और कार्यभार दोनों स्तर पर दबाव में हैं।
अधिकारियों की सलाह – पहले तैयारी, फिर प्रणाली लागू करें
अंचल अधिकारियों की स्पष्ट राय है कि सरकार ने बगैर पर्याप्त कर्मचारियों की बहाली और प्रशिक्षण के इस प्रणाली को जल्दबाजी में लागू कर दिया। उनका मानना है कि पहले रिक्त पदों पर बहाली होनी चाहिए, फिर कर्मचारियों को पूरी तरह प्रशिक्षित किया जाए, और उसके बाद चरणबद्ध तरीके से नई व्यवस्था को लागू किया जाए ताकि जनता को नुकसान ना हो।
DC की बैठकों में आदेश, पर जमीन पर अमल नहीं
हर जिले में उपायुक्तों की बैठकों में लंबित म्यूटेशन फाइलों का जल्द निपटारा करने के आदेश दिए जाते हैं, लेकिन सवाल यह उठता है कि क्या डीसी स्तर पर मौजूदा जमीनी हालात की सच्ची तस्वीर उन्हें दिखाई जा रही है, या केवल फाइलों में आंकड़ों का खेल चल रहा है?
सुधार की जगह परेशानी का कारण बन रही है नई व्यवस्था
सरकार की मंशा चाहे जितनी अच्छी रही हो, लेकिन आधे-अधूरे संसाधनों और तैयारियों के बिना कोई भी तकनीकी सुधार जनता के लिए परेशानी का कारण बन सकता है। वर्तमान में म्यूटेशन प्रक्रिया लगभग ठप पड़ी है, हजारों आवेदन लंबित हैं, और जनता असमंजस में है। अगर सरकार ने जल्द कोई ठोस कदम नहीं उठाया, तो जियो टैगिंग का यह प्रयोग लोगों की समस्याएं बढ़ा सकता है, ना कि कम।