झारखंड में पांच साल से खाली लोकायुक्त का पद, धूल फांक रहे हजारों आवेदन

झारखंड सरकार भले ही भ्रष्टाचार पर 'जीरो टॉलरेंस' की नीति की बात कर रही हो, लेकिन हकीकत इससे उलट है। राज्य में भ्रष्टाचार पर निगरानी रखने वाला महत्वपूर्ण संस्थान लोकायुक्त बीते पांच वर्षों से निष्क्रिय पड़ा है, क्योंकि इस पद पर अब तक किसी की नियुक्ति नहीं की गई है। पूर्व लोकायुक्त जस्टिस डीएन उपाध्याय का कार्यकाल फरवरी 2022 तक था, लेकिन उनका असामयिक निधन जून 2021 में कोरोना संक्रमण के चलते दिल्ली स्थित एम्स अस्पताल में हो गया। तब से लेकर अब तक राज्य में यह पद खाली पड़ा है।
लोकायुक्त कार्यालय में भ्रष्टाचार से जुड़े लगभग तीन हजार आवेदन लंबे समय से सुनवाई का इंतजार कर रहे हैं। लोकायुक्त की अनुपस्थिति के चलते इन मामलों पर कोई कार्रवाई संभव नहीं हो पा रही है। पहले सचिव स्तर पर मामलों की तिथि निर्धारित होती थी, लेकिन फरवरी 2022 में कार्मिक विभाग ने यह प्रक्रिया भी बंद कर दी। वर्तमान में कार्यालय की जिम्मेदारी संयुक्त सचिव के भरोसे चल रही है, क्योंकि सचिव का पद भी रिक्त है।

राजनीतिक गर्मी और न्यायालय में सुनवाई
लोकायुक्त की नियुक्ति को लेकर राजनीतिक बयानबाजी भी तेज हो गई है। इस मुद्दे पर झारखंड हाई कोर्ट में सुनवाई चल रही है और सरकार ने जल्द नियुक्ति का आश्वासन दिया है। लेकिन विपक्ष का आरोप है कि राज्य सरकार इस मामले में भी न्यायालय को गुमराह कर रही है। भाजपा प्रवक्ता राफिया नाज ने सरकार पर आरोप लगाते हुए कहा कि जनता ने जिस भरोसे से इस सरकार को चुना, वही जनता आज ठगी महसूस कर रही है। उन्होंने कहा कि लोकायुक्त जैसे महत्वपूर्ण पद को रिक्त रखना सरकार की गंभीर उदासीनता को दर्शाता है। भाजपा का यह भी कहना है कि पहले सरकार नेता प्रतिपक्ष की गैरमौजूदगी का हवाला दे रही थी, लेकिन अब कई महीने हो चुके हैं फिर भी कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया।
वहीं, झारखंड मुक्ति मोर्चा ने विपक्ष के आरोपों को नकारते हुए कहा है कि लोकायुक्त की नियुक्ति की प्रक्रिया सरकार द्वारा प्रारंभ कर दी गई है। झामुमो प्रवक्ता मनोज पांडे ने भरोसा जताया कि राज्य को जल्द ही नया लोकायुक्त मिलेगा।
जानिए कैसे होती है लोकायुक्त की नियुक्ति
राज्य में लोकायुक्त की नियुक्ति राज्यपाल द्वारा की जाती है। इसके लिए एक चयन समिति का गठन होता है, जिसकी अध्यक्षता मुख्यमंत्री करते हैं। समिति में उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश और विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष भी शामिल होते हैं। समिति की अनुशंसा पर राज्यपाल लोकायुक्त को पद एवं गोपनीयता की शपथ दिलाते हैं। लोकायुक्त का कार्यकाल अधिकतम पांच वर्ष या 70 वर्ष की आयु तक होता है।
फिलहाल झारखंड में लोकायुक्त कार्यालय एक भव्य इमारत भर बनकर रह गया है, जहां कर्मचारियों का रुटीन कार्य ही एकमात्र गतिविधि के रूप में चल रहा है। भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने के लिए बने इस संवैधानिक पद की अनुपस्थिति से पूरे निगरानी तंत्र की निष्क्रियता उजागर हो रही है।