महावतार बाबाजी स्मृति दिवस: क्रियायोग के अमर प्रवर्तक और वैश्विक आध्यात्मिक पुनर्जागरण के प्रेरणास्त्रोत
“पूर्व और पश्चिम को जोड़ने के लिए कर्म और ध्यान आधारित एक संतुलित मार्ग की आवश्यकता है।” — ‘योगी कथामृत’ में उद्धृत ये शब्द आध्यात्मिक चेतना के महासागर महावतार बाबाजी की दिव्य प्रेरणा की ओर संकेत करते हैं, जिनका जीवन और कार्य आज भी असंख्य साधकों के लिए मार्गदर्शक बना हुआ है।
श्री श्री परमहंस योगानन्द द्वारा लिखित इस महान ग्रंथ में बाबाजी की महिमा, उनके चमत्कारिक कार्यों और उनके शिष्यों के साथ उनके शाश्वत संबंधों का हृदयस्पर्शी विवरण मिलता है।
लुप्त हो चुकी योगविद्या का पुनरुत्थान
महावतार बाबाजी ने अंधकार युगों में लुप्त हो चुके क्रियायोग विज्ञान को फिर से विश्व के समक्ष लाने का संकल्प लिया। इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए उन्होंने लाहिड़ी महाशय को चुना, जो उस समय सैन्य इंजीनियरिंग विभाग में कार्यरत थे। उन्होंने उन्हें चमत्कारिक रूप से द्रोणगिरि पर्वत पर आमंत्रित किया, जहां उन्हें सांसारिक बंधनों से मुक्त कर क्रियायोग में दीक्षित किया।
बाबाजी ने यह स्पष्ट किया कि यह योग विधि केवल सन्यासियों के लिए नहीं, बल्कि सभी सच्चे साधकों के लिए है। उन्होंने यह अमूल्य साधना सामान्य गृहस्थों तक पहुंचाने की अनुमति दी — यह उनकी करुणा और व्यापक दृष्टिकोण का प्रमाण है।
पाश्चात्य जगत के लिए विशेष मिशन
25 जुलाई 1920 को जब योगानन्दजी को अमेरिका में एक धर्म सम्मेलन में भाग लेने का निमंत्रण मिला, तो वे निर्णय को लेकर असमंजस में थे। तभी बाबाजी ने साक्षात प्रकट होकर उन्हें आश्वस्त किया —
“डरो मत, तुम्हारी रक्षा की जाएगी।”
इसी दिव्य संवाद के कारण 25 जुलाई को महावतार बाबाजी स्मृति दिवस के रूप में मनाया जाता है।
बाबाजी ने योगानन्दजी से यह भी कहा —
“तुम्हें ही मैंने चुना है ताकि तुम क्रियायोग को पश्चिमी देशों तक पहुंचा सको... यह वैज्ञानिक साधना एक दिन समस्त विश्व में प्रसारित होगी।”
इस आदेश के पालन में योगानन्दजी ने भारत में योगदा सत्संग सोसाइटी ऑफ इंडिया (वाईएसएस) और विदेशों में सेल्फ-रियलाइज़ेशन फेलोशिप (एसआरएफ) की स्थापना की।
धर्मों की एकता के सूत्रधार
कुंभ मेले में बाबाजी ने स्वामी श्रीयुक्तेश्वर से आग्रह किया कि वे ‘कैवल्य दर्शनम्’ नामक पुस्तक की रचना करें, जिसमें धर्मों के मूल तत्वों की एकता को दर्शाया जा सके। बाबाजी का मानना था कि धार्मिक मतभेदों ने मनुष्यता की एकता को अस्पष्ट कर दिया है।
दिव्य रूप और अनंत उपस्थिति
बाबाजी आज भी सर्वव्यापक ब्रह्मचेतना में स्थित हैं। वे स्थान, काल और रूप की सीमाओं से परे हैं। उनका स्वरूप युवा, तेजस्वी, करुणामय और चिरस्मरणीय है। उनकी आँखों में शांति और प्रेम है और उनका रूप ध्यान करते ही अंतर्मन को गहराई से छू जाता है।
लाहिड़ी महाशय ने कहा था —
“जब भी कोई श्रद्धा से बाबाजी का नाम लेता है, उसी क्षण वह उनके आध्यात्मिक आशीर्वाद का पात्र बनता है।”
गुरु-शिष्य प्रेम की अमर गाथा
‘योगी कथामृत’ में वर्णित है कि बाबाजी ने लाहिड़ी महाशय से कहा —
“मैं अंधकार, तूफान और संकटों में भी तुम्हारे साथ साये की तरह रहा हूं।”
उत्तर में लाहिड़ी महाशय ने भावविभोर होकर कहा —
“गुरुदेव, मैं क्या कहूं? क्या कभी किसी ने ऐसा अमर प्रेम देखा या सुना है?”
यह संवाद गुरु और शिष्य के अमर और अद्भुत संबंध को दर्शाता है, जिसकी गूंज साधक के अंतर्मन तक जाती है।
योगदा सत्संग द्वारा आध्यात्मिक शिक्षा का प्रसार
वाईएसएस द्वारा प्रकाशित आदर्श जीवन पाठमाला और ध्यान की वैज्ञानिक विधियाँ आज लाखों साधकों को एक समर्थ, स्थिर और आत्मिक जीवन की दिशा में प्रेरित कर रही हैं। साधना संगम, संन्यासियों के दौरे और ऑनलाइन पाठ्यक्रमों के माध्यम से क्रियायोग की गूढ़ विद्या को सहज और सुलभ बनाया गया है।
महावतार बाबाजी ने स्वयं यह अमोघ वचन दिया:
“जो योगी संसार में रहकर भी निःस्वार्थ और दृढ़ निष्ठा से अपने कर्तव्यों का पालन करता है, वह ब्रह्मज्ञान के मार्ग पर अग्रसर होता है।”
और ‘योगी कथामृत’ का आश्वासन है:
“बाबाजी ने सभी सच्चे क्रियायोगियों को मार्गदर्शन और रक्षा का वचन दिया है।”
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