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सावन की दूसरी सोमवारी: पहाड़ी मंदिर में उमड़ा श्रद्धा का जनसैलाब, त्रिशूल और डमरू की हुई विशेष पूजा

सावन की दूसरी सोमवारी: पहाड़ी मंदिर में उमड़ा श्रद्धा का जनसैलाब, त्रिशूल और डमरू की हुई विशेष पूजा

सावन के पवित्र माह की दूसरी सोमवारी पर रांची के प्रमुख शिवालयों में एक बार फिर भक्ति का अद्भुत नज़ारा देखने को मिला। शहरभर से आए हजारों श्रद्धालु भगवान शिव की पूजा-अर्चना में लीन दिखे, लेकिन सबसे ज्यादा भीड़ और आस्था का केंद्र बना ऐतिहासिक पहाड़ी बाबा मंदिर, जहां भक्तों ने पूरी श्रद्धा के साथ भोलेनाथ को जल अर्पित किया।

सावन की इस विशेष तिथि को लेकर जिला प्रशासन और मंदिर प्रबंधन समिति ने सुरक्षा और व्यवस्था के कड़े इंतजाम किए थे। श्रद्धालुओं की भीड़ को सुव्यवस्थित करने के लिए चढ़ाई और उतराई के लिए दो अलग-अलग मार्ग निर्धारित किए गए। शिवलिंग पर जल चढ़ाने के लिए अरघा प्रणाली का उपयोग किया गया, जिससे भक्तों को सीधे संपर्क से बचाते हुए जलाभिषेक का लाभ मिला और व्यवस्था बनी रही।

महाकाल मंदिर में त्रिशूल और डमरू की पूजा
मंदिर परिसर में स्थित महाकाल मंदिर में बाबा शिव के त्रिशूल और डमरू की विशेष पूजा का आयोजन हुआ। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इन दोनों दिव्य प्रतीकों की पूजा करने से भक्तों की इच्छाएं पूर्ण होती हैं और जीवन में सुख-शांति तथा सकारात्मकता का संचार होता है। हर वर्ष सावन में विशेषत: सोमवारी पर इन प्रतीकों की विशेष आराधना होती है, जिसमें भक्त दूर-दराज से भाग लेने आते हैं।

डमरू: ध्वनि और सृष्टि का रहस्य

  • डमरू को शिव का एक विशेष वाद्य यंत्र माना गया है, जो ब्रह्मांड की ध्वनि ‘नाद’ का स्रोत है।
  • इसे सृजन और प्रलय दोनों का प्रतीक माना जाता है।
  • ओंकार की उत्पत्ति इसी 'नाद' से मानी जाती है।
  • डमरू की ध्वनि आत्मबल, साहस और ऊर्जा को बढ़ाती है।
  • मान्यता है कि घर में डमरू रखने से सकारात्मक ऊर्जा बनी रहती है और वातावरण शुद्ध रहता है।

त्रिशूल: शिव की शक्ति और संतुलन का प्रतीक

  • त्रिशूल न केवल शिव का अस्त्र है, बल्कि यह ब्रह्मांडीय ऊर्जा का भी प्रतिनिधित्व करता है।
  • इसके तीन फन सत्व, रज और तम – तीनों गुणों का संकेत देते हैं।
  • यह भूत, वर्तमान और भविष्य का भी प्रतीक है।
  • घर में त्रिशूल रखने से वास्तु दोषों का निवारण होता है और नकारात्मक ऊर्जा समाप्त होती है।
  • माना जाता है कि यह आकाशीय बिजली से सुरक्षा भी प्रदान करता है।

पहाड़ी बाबा मंदिर: शक्ति, श्रद्धा और अध्यात्म का संगम
रांची के हृदयस्थल पर स्थित पहाड़ी बाबा मंदिर न केवल एक शिवालय है, बल्कि यह आस्था, ऊर्जा और अध्यात्म का प्रतीक स्थल भी है। यहां डमरू और त्रिशूल की पूजा का विशेष महत्व है। भक्त इन प्रतीकों को नमन करते हैं, कुछ डमरू को बजाकर भोलेनाथ को प्रसन्न करने का प्रयास करते हैं, तो कुछ त्रिशूल को स्पर्श कर अपने जीवन के संकटों से छुटकारा पाने की प्रार्थना करते हैं।

श्रद्धा और आस्था का पर्व बनी दूसरी सोमवारी
सावन की इस दूसरी सोमवारी पर रांची के पहाड़ी बाबा मंदिर में जिस तरह से श्रद्धालुओं ने भक्ति और विश्वास के साथ पूजा-अर्चना की, वह यह दर्शाता है कि भगवान शिव के प्रतीकों में छिपे रहस्य आज भी लोगों के जीवन का मार्गदर्शन कर रहे हैं। त्रिशूल और डमरू केवल पूजन सामग्री नहीं, बल्कि शिव के जीवन दर्शन और ऊर्जा के स्तंभ हैं। सावन के हर सोमवार के साथ श्रद्धा का यह प्रवाह तीव्र होता जा रहा है, और पहाड़ी बाबा मंदिर शिवभक्तों के लिए भक्ति, शक्ति और मोक्ष का पथ बनकर उभर रहा है।