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मंत्री शिल्पी नेहा तिर्की के जाति प्रमाण पत्र निरस्तीकरण की मांग को लेकर सामाजिक संगठनों ने DC को सौंपा ज्ञापन

झारखंड की कृषि मंत्री शिल्पी नेहा तिर्की के खिलाफ जाति प्रमाण पत्र को अमान्य घोषित करने की मांग तेज हो गई है। सामाजिक कार्यकर्ताओं और जनजातीय संगठनों ने इस मुद्दे को लेकर रांची के उपायुक्त को एक ज्ञापन सौंपा, जिसमें आरोप लगाया गया है कि मंत्री ने ईसाई धर्म स्वीकारने के बाद भी अनुसूचित जनजाति का लाभ लेने के उद्देश्य से जाति प्रमाण पत्र (क्रमांक JHcst/2022/187696) प्राप्त किया है।

सुप्रीम कोर्ट के निर्णय का हवाला

सुप्रीम कोर्ट के निर्णय का हवाला
ज्ञापन में सुप्रीम कोर्ट के ताज़ा फैसले (वाद संख्या 13086/2024, सी. सेल्वा रानी बनाम विशेष सचिव सह जिला कलेक्टर) का उल्लेख करते हुए कहा गया कि ईसाई धर्म में जातिगत भेदभाव की मान्यता नहीं होती। इसलिए धर्म परिवर्तन को जातीय पहचान से बाहर निकलने के रूप में देखा जाना चाहिए और आरक्षण का लाभ लेना संवैधानिक मूल्यों के विरुद्ध है।

राष्ट्रपति आदेश और केंद्रीय मंत्री के बयान का ज़िक्र
सामाजिक कार्यकर्ता मेघा उरांव ने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 341 के अंतर्गत 1950 के अनुसूचित जाति आदेश और लोकसभा में केंद्रीय विधि मंत्री अर्जुन राम मेघवाल द्वारा दिए गए उत्तर के अनुसार अनुसूचित जाति व जनजाति के आरक्षण का लाभ केवल हिंदू या संबद्ध धर्मों के अनुयायियों को ही मिल सकता है। धर्म परिवर्तन के उपरांत यह सुविधा स्वतः समाप्त हो जाती है।

इस विषय को लेकर जनवरी 2025 में राज्यपाल, मुख्यमंत्री, मुख्य सचिव और जनजाति आयोग को भी पत्र लिखे जा चुके हैं। उन पत्रों में धर्मांतरण कर चुके ईसाई व मुस्लिम व्यक्तियों के जाति प्रमाण पत्रों को रद्द करने की मांग की गई थी।

जनजाति सुरक्षा मंच के मीडिया प्रभारी सोमा उरांव ने स्पष्ट कहा कि वर्ष 2024 के विधानसभा चुनाव में आरक्षित सीटों से निर्वाचित धर्मांतरित ईसाई विधायकों के खिलाफ शीघ्र ही न्यायालय में याचिका दायर की जाएगी। इस ज्ञापन को सौंपने वालों में मेघा उरांव, संदीप उरांव, सोमा उरांव, जगन्नाथ भगत, विशु उरांव, राजू उरांव और सनी उरांव टोप्पो समेत कई सामाजिक कार्यकर्ता शामिल रहे।