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झारखंड में जमीन दस्तावेजों के डिजिटलीकरण पर सुप्रीम कोर्ट ने उठाए सवाल, अवमानना मामले की अगली सुनवाई दो हफ्ते बाद

झारखंड में जमीन दस्तावेजों के डिजिटलीकरण पर सुप्रीम कोर्ट ने उठाए सवाल, अवमानना मामले की अगली सुनवाई दो हफ्ते बाद

सुप्रीम कोर्ट ने झारखंड में आईएफएस अधिकारियों को अवमानना के मामले में दोषी ठहराए जाने को लेकर दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए मामले को दो सप्ताह के लिए टाल दिया है। गुरुवार को हुई सुनवाई के दौरान उमायुष की ओर से सरकार के शपथ पत्र पर जवाब दाखिल करने के लिए समय मांगा गया, जिसे अदालत ने मंजूर कर लिया।

मामले की सुनवाई न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति जे. बागची की पीठ द्वारा की गई। इस दौरान केंद्र में यह बहस रही कि तेतुलिया की जिस भूमि को लेकर विवाद है, वह वास्तव में वनभूमि है या नहीं। सरकार की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने पक्ष रखते हुए दावा किया कि तेतुलिया की जमीन वन क्षेत्र में आती है और इस संबंध में कुछ दस्तावेज भी अदालत को सौंपे। कोर्ट ने इन दस्तावेजों को संरक्षित रखने का निर्देश दिया।

सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने झारखंड सरकार से यह अहम सवाल किया कि जब देश के अधिकांश राज्यों में भूमि दस्तावेजों का डिजिटलीकरण हो चुका है, तो झारखंड अब तक इससे पीछे क्यों है। अदालत ने भूमि दस्तावेजों की पारदर्शिता और संरक्षा के लिए डिजिटलीकरण को अनिवार्य बताया।

वहीं उमायुष की ओर से कोर्ट को तेतुलिया की जमीन की तस्वीरें प्रस्तुत की गईं, जिनमें पेड़ या वन क्षेत्र का कोई स्पष्ट प्रमाण नहीं था। उमायुष का तर्क था कि सरकार को हाईकोर्ट द्वारा कई बार मौका दिया गया कि वह वन भूमि होने का प्रमाण प्रस्तुत करे, लेकिन अब तक कोई ठोस साक्ष्य नहीं दिया जा सका।

सरकार की ओर से अब एक नया शपथ पत्र दाखिल किया गया है, जिस पर उमायुष पक्ष ने जवाब देने के लिए समय की मांग की। कोर्ट ने यह मांग स्वीकार करते हुए मामले की अगली सुनवाई दो सप्ताह बाद तय की है।

यह मामला न सिर्फ जमीन की वैधता से जुड़ा है, बल्कि इसमें दस्तावेजों की पारदर्शिता और सरकारी जवाबदेही पर भी सवाल खड़े हो रहे हैं। अब देखना होगा कि अगली सुनवाई में क्या नए तथ्य सामने आते हैं और सुप्रीम कोर्ट क्या रुख अपनाता है।