मुंडारी भाषा को JTET से बाहर रखने पर बवाल, खूंटी में आदिवासी समुदाय का विरोध तेज

झारखंड शिक्षक पात्रता परीक्षा (JTET) को लेकर स्थानीय भाषाओं की चयन प्रक्रिया पर विवाद लगातार गहराता जा रहा है। विभिन्न जिलों के लिए अलग-अलग भाषाओं के चयन ने कई समुदायों की भावनाओं को आहत किया है।
सबसे पहले पलामू जिले से विरोध की शुरुआत हुई थी, जहां नागपुरी और कुड़ुख भाषाओं को परीक्षा में स्थान मिला है। लेकिन वहां के स्थानीय निवासी भोजपुरी और मगही को भी मान्यता देने की मांग कर रहे हैं। अब यही विवाद खूंटी जिले तक पहुँच चुका है, जहां मुंडारी भाषा को JTET की सूची से बाहर रखे जाने पर आदिवासी समाज ने नाराज़गी जताई है।
खूंटी में 'आदिवासी मुंडारी भाषा-संस्कृति बचाओ संघर्ष समिति' ने इस फैसले को समुदाय के साथ अन्याय बताया है। समिति का कहना है कि मुंडारी केवल एक भाषा नहीं, बल्कि एक समृद्ध सांस्कृतिक पहचान है जिसने भगवान बिरसा मुंडा, जयपाल सिंह मुंडा और डॉ. रामदयाल मुंडा जैसे महान व्यक्तित्वों को जन्म दिया है।

समिति ने आरोप लगाया कि यह कोई साधारण चूक नहीं, बल्कि मुंडा समुदाय की भाषा और पहचान को दबाने की एक सोची-समझी साज़िश है। उन्होंने मांग की है कि मुंडारी भाषा को फिर से खूंटी जिले की मान्यता प्राप्त भाषाओं में शामिल किया जाए ताकि आदिवासी युवाओं को भी समान अवसर मिल सके।