WAVES 2025 : पलामू की कलम और कूंची ने जीता देश का दिल, सोहराई कला में रची ग्राफिक नोवेल को मिला राष्ट्रीय सम्मान

भारत के पहले वेव्स सम्मेलन में पलामू की दो उभरती प्रतिभाओं ने अपनी कला और रचनात्मकता से न केवल राज्य, बल्कि पूरे देश को गौरवान्वित किया। लेखक रोहित दयाल शुक्ला और चित्रकार शिवांगी शैली को उनकी ऐतिहासिक ग्राफिक नोवेल के लिए प्रथम पुरस्कार से नवाजा गया, जिसे झारखंड की पारंपरिक सोहराई कला के माध्यम से रचा गया था।
इस ग्राफिक कृति में राजा मेदिनी राय और मुग़ल सम्राट औरंगज़ेब के सेनापति दाऊद ख़ान पन्नी के बीच हुए ऐतिहासिक युद्ध को जीवंत रूप में प्रस्तुत किया गया है। इतिहास और लोककला के इस अनूठे संगम ने दर्शकों के साथ-साथ निर्णायकों को भी गहराई से प्रभावित किया।
इस भव्य आयोजन का उद्घाटन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किया। सम्मेलन का मुख्य उद्देश्य भारत को वैश्विक मीडिया और मनोरंजन उद्योग के केंद्र के रूप में स्थापित करना है ताकि देश की रचनात्मक अर्थव्यवस्था को नई दिशा दी जा सके। कार्यक्रम में मुकेश अंबानी अपने परिवार के साथ उपस्थित थे, जबकि बॉलीवुड और दक्षिण भारतीय सिनेमा की कई नामचीन हस्तियों—शाहरुख खान, आमिर खान, दीपिका पादुकोण, रजनीकांत, ए आर रहमान, करण जौहर आदि—ने अपनी भागीदारी से सम्मेलन को गरिमा प्रदान की।

जैसे ही पुरस्कार की घोषणा हुई, पलामू में उत्सव का माहौल बन गया। रोहित शुक्ला के पिता शंकर दयाल, जो ज्ञान निकेतन स्कूल के निदेशक हैं, ने कहा, “यह केवल हमारे परिवार का नहीं, पूरे जिले का गौरव है। सोहराई कला को राष्ट्रीय मंच पर पहचान मिलना अत्यंत सुखद है।” उनकी माता मंजू देवी, एक गृहिणी, इस उपलब्धि से भावुक हो उठीं।
झारखंड के प्रसिद्ध चिकित्सक डॉ. गोविंद माधव ने कहा, “यह सिद्ध करता है कि हमारी भूमि न केवल संसाधनों से भरपूर है, बल्कि यहां के युवाओं में अद्वितीय प्रतिभा भी मौजूद है। अब हमारे इतिहास और सांस्कृतिक विरासत को अभिव्यक्ति देने वाली कलम भी हमारे पास है।”
कांग्रेस नेता चंद्रशेखर शुक्ला ने इस उपलब्धि को पूरे पलामू के लिए गर्व का क्षण बताया और रोहित को भविष्य की रचनाओं के लिए शुभकामनाएं दीं। वहीं उनके भाई सन्नी शुक्ला, जो झारखंड मुक्ति मोर्चा से जुड़े हैं, ने कहा, “पहली ही रचना को ऐसा सम्मान मिलना उनकी रचनात्मक क्षमता और परंपरा के प्रति उनकी समझ का परिचायक है।”
पलामू की धरती से उपजी यह सांस्कृतिक अभिव्यक्ति अब राष्ट्रीय पहचान पा चुकी है और निकट भविष्य में इसके अंतरराष्ट्रीय मंच पर पहुंचने की भी पूरी संभावना है। यह उपलब्धि झारखंड की लोककला, इतिहास और नवाचार के अद्वितीय संगम का प्रतीक बनकर उभरी है।