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आदिवासी छात्रों के सर्वांगीण विकास की दिशा में बड़ा कदम, देशभर में बन रहे 235 नए एकलव्य स्कूल

आदिवासी छात्रों के सर्वांगीण विकास की दिशा में बड़ा कदम, देशभर में बन रहे 235 नए एकलव्य स्कूल

देश के आदिवासी समुदाय के बच्चों को गुणवत्तापूर्ण और समग्र शिक्षा उपलब्ध कराने के उद्देश्य से केंद्रीय जनजातीय कार्य मंत्रालय द्वारा पूरे भारत में 235 नए एकलव्य मॉडल आवासीय विद्यालय (EMRS) का निर्माण किया जा रहा है। इन स्कूलों के शुरू होने से एक लाख से अधिक अनुसूचित जनजाति (ST) के छात्रों को लाभ मिलने की उम्मीद है।

जनजातीय कार्य मंत्रालय ने इस पहल को सेंट्रल सेक्टर स्कीम के अंतर्गत लागू किया है। इसके तहत हर उस ब्लॉक में एक ईएमआरएस खोला जाएगा, जहां कम से कम 50% जनजातीय आबादी हो और जनसंख्या 20,000 से अधिक हो (2011 की जनगणना के अनुसार)।

केवल शैक्षणिक नहीं, समग्र विकास की ओर कदम
ईएमआरएस न केवल शैक्षणिक शिक्षा पर केंद्रित हैं, बल्कि छात्रों के व्यक्तित्व विकास, कौशल प्रशिक्षण और डिजिटल शिक्षा पर भी जोर देते हैं। प्रत्येक विद्यालय में कक्षा 6 से 12 तक के 480 छात्रों के लिए आवासीय सुविधा होती है। मंत्रालय, विभिन्न सरकारी एजेंसियों के साथ मिलकर, इन स्कूलों को आधुनिक तकनीकी शिक्षा से जोड़ने के लिए कई योजनाएं चला रहा है।

जनजातीय कार्य मंत्रालय द्वारा हाल ही में जारी आंकड़ों के अनुसार, देशभर में अब तक 728 ईएमआरएस को मंजूरी दी जा चुकी है। इनमें से 722 स्कूलों को औपचारिक रूप से स्वीकृति दी जा चुकी है, जबकि 479 स्कूलों में शैक्षणिक गतिविधियाँ शुरू हो चुकी हैं। बाकी 235 स्कूल निर्माणाधीन हैं।

प्रतियोगी परीक्षाओं में आदिवासी छात्रों की सफलता
राष्ट्रीय आदिवासी शिक्षा सोसाइटी (NESTS), जो इन स्कूलों का संचालन करती है, छात्रों को IIT-JEE और NEET जैसी कठिन प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए मुफ्त कोचिंग प्रदान कर रही है। इसका सकारात्मक असर देखने को मिला है— EMRS के 596 छात्रों ने वर्ष 2024 में इन परीक्षाओं के लिए क्वालिफाई किया।

आदिवासी अधिकारों के जानकार डॉ. विक्रांत तिवारी का मानना है कि एकलव्य स्कूलों ने जनजातीय क्षेत्रों में शिक्षा के स्तर को बहुत ऊंचा उठाया है। उन्होंने कहा कि ASER रिपोर्ट के अनुसार, कई ईएमआरएस में पढ़ने वाले आदिवासी छात्र अब ग्रामीण सरकारी स्कूलों के अपने समकक्षों से बेहतर प्रदर्शन कर रहे हैं।

डॉ. तिवारी ने यह भी कहा कि ईएमआरएस न केवल शिक्षा, बल्कि आवास, भोजन, यूनिफॉर्म और स्वास्थ्य सुविधाएं मुफ्त प्रदान कर आदिवासी परिवारों की आर्थिक जिम्मेदारी भी कम कर रहे हैं। इससे विशेष रूप से आदिवासी लड़कियों की पढ़ाई और स्कूल में टिके रहने की दर में उल्लेखनीय बढ़ोतरी हुई है।

सांस्कृतिक समावेशन की दिशा में भी प्रयास
ईएमआरएस स्कूलों में स्थानीय संस्कृति और परंपराओं को पाठ्यचर्या में शामिल करने की भी पहल हो रही है। इनमें स्थानीय त्योहारों का आयोजन, पारंपरिक नृत्य, चित्रकला कार्यक्रम और बुजुर्गों द्वारा कहानियों का प्रस्तुतीकरण शामिल है।

हालांकि डॉ. तिवारी ने यह भी संकेत दिया कि सभी स्कूलों में परामर्श और मार्गदर्शन प्रणाली पूरी तरह से विकसित नहीं हुई है। कुछ स्कूलों में प्रशिक्षित स्टाफ और सहकर्मी समूह मौजूद हैं, जबकि कुछ में यह सुविधाएं अभी कमजोर हैं।

वे सुझाव देते हैं कि पूर्व छात्रों की भागीदारी और सांस्कृतिक रूप से संवेदनशील काउंसिलिंग सिस्टम विकसित किया जाए, जिसमें स्थानीय एनजीओ की मदद से कहानी सुनाने और मार्गदर्शन की सहभागिता आधारित प्रणाली को लागू किया जा सके।