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इलाहाबाद हाई कोर्ट का अजीबो- गरीब फैसला: महिला के निजी अंग पकड़ना और नाड़ा तोड़ना दुष्कर्म का प्रयास नहीं

इलाहाबाद हाई कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि यदि कोई व्यक्ति किसी नाबालिग लड़की के निजी अंग पकड़ता है, उसके पायजामे की डोरी तोड़ता है और उसे घसीटने की कोशिश करता है, तो इसे दुष्कर्म या दुष्कर्म के प्रयास की श्रेणी में नहीं रखा जा सकता। कोर्ट ने इसे अपराध की "तैयारी" और "वास्तविक प्रयास" के बीच का अंतर बताते हुए निचली अदालत के गंभीर आरोपों को संशोधित करने का निर्देश दिया है।

जस्टिस राम मनोहर नारायण मिश्र ने अपने आदेश में कहा कि किसी पर दुष्कर्म के प्रयास का आरोप लगाने के लिए यह साबित करना होगा कि मामला केवल योजना बनाने से आगे बढ़कर प्रयास की स्थिति तक पहुंच गया था। उन्होंने कहा कि कानून में "तैयारी" और "वास्तविक प्रयास" के बीच स्पष्ट अंतर किया गया है।

क्या था मामला?
आरोपी आकाश पर आरोप था कि उसने पीड़िता को जबरन पुलिया के नीचे खींचने की कोशिश की और उसका नाड़ा तोड़ दिया। हालांकि, गवाहों ने यह नहीं बताया कि इस घटना से पीड़िता के कपड़े उतर गए थे। इसके अलावा, अभियोजन पक्ष ने यह भी दावा नहीं किया कि आरोपी ने जबरन यौन संबंध बनाने की कोशिश की।

इस मामले में आरोपी आकाश और पवन को कासगंज की एक अदालत ने भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 376 (दुष्कर्म) और पॉक्सो एक्ट की धारा 18 के तहत अभियोग चलाने के लिए बुलाया था। पीड़िता के परिवार ने आरोप लगाया था कि 2021 में दोनों ने नाबालिग लड़की को लिफ्ट देने के बहाने उसके साथ दुष्कर्म करने की कोशिश की थी, लेकिन राहगीरों के आने पर वे भाग गए थे।

सुप्रीम कोर्ट की राय क्या कहती है?
-19 नवंबर 2021 को सुप्रीम कोर्ट ने बॉम्बे हाई कोर्ट की नागपुर बेंच के एक फैसले को पलटते हुए कहा था कि किसी बच्चे के यौन अंगों को छूना या "यौन इरादे" से किया गया कोई भी शारीरिक संपर्क पॉक्सो एक्ट की धारा 7 के तहत अपराध होगा। इसमें सबसे महत्वपूर्ण पहलू "इरादा" है, न कि केवल त्वचा से त्वचा का संपर्क।

-इससे पहले, जनवरी 2021 में बॉम्बे हाई कोर्ट की एडिशनल जज पुष्पा गनेडीवाला ने एक आरोपी को यह कहते हुए बरी कर दिया था कि यदि किसी नाबालिग के निजी अंगों को बिना "स्किन टू स्किन" संपर्क के छुआ जाता है, तो इसे पॉक्सो एक्ट के तहत अपराध नहीं माना जा सकता। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने इस फैसले को अस्वीकार कर दिया।