UCC पर विवाद बढ़ा: हाईकोर्ट ने मांगा सरकार से जवाब, मुस्लिम और पारसी समुदायों की अनदेखी का आरोप

उत्तराखंड में लागू हुई समान नागरिक संहिता (UCC) पर विवाद गहराता जा रहा है। इस कानून के कुछ प्रावधानों को लेकर वकीलों ने नैनीताल हाईकोर्ट में चुनौती दी है। हाईकोर्ट की खंडपीठ ने उत्तराखंड सरकार से शादी, तलाक और लिव-इन रिलेशनशिप से जुड़े प्रावधानों पर छह हफ्ते में जवाब देने को कहा है। याचिका में आरोप लगाया गया है कि UCC के नियम मुस्लिम और पारसी समुदायों की विवाह व्यवस्था की अनदेखी करते हैं।
याचिका में UCC के किन प्रावधानों पर उठे सवाल?
वकील द्वारा दायर याचिका में UCC के पार्ट-1 में दिए गए शादी और तलाक से जुड़े नियमों तथा पार्ट-3 में लिव-इन रिलेशनशिप से जुड़े प्रावधानों को चुनौती दी गई है। याचिका के मुताबिक, यह कानून मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता है, जिसमें निजता, जीवन जीने की स्वतंत्रता और शादी में साथी चुनने का अधिकार शामिल है।

शादी में साथी चुनने की स्वतंत्रता पर विवाद
याचिका में यह भी तर्क दिया गया है कि UCC महिलाओं के साथ असमानता को दूर करने का दावा करता है, लेकिन इसके कई प्रावधान व्यक्तिगत स्वतंत्रता को सीमित कर सकते हैं। खासकर, मुस्लिम समुदाय की परंपरागत विवाह और तलाक व्यवस्था को दरकिनार करने का आरोप लगाया गया है। याचिका में दावा किया गया है कि हिंदू मैरिज एक्ट के नियमों को मुस्लिम और पारसी समुदायों पर लागू करना अनुचित है।
याचिका में कहा गया है कि हिंदू मैरिज एक्ट के तहत कुछ रिश्तों में विवाह प्रतिबंधित है, लेकिन यह नियम अब मुस्लिम और पारसी समुदायों पर भी लागू कर दिया गया है, जबकि इन समुदायों में ऐसे रिश्तों में शादी मान्य है।
LGBTQ समुदाय के अधिकारों पर भी सवाल
याचिका में UCC के लिव-इन रिलेशनशिप संबंधी प्रावधानों पर भी आपत्ति जताई गई है। UCC के सेक्शन 4(बी) के तहत केवल "एक पुरुष और एक महिला" के बीच लिव-इन रिलेशनशिप को मान्यता दी गई है। याचिका के अनुसार, इसमें "जैविक पुरुष और महिला" का उल्लेख किया गया है, जिससे LGBTQ समुदाय के अधिकारों का हनन हो सकता है।