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आबकारी नीति घोटाले में केजरीवाल को मिली सशर्त जमानत, दोनों जस्टिस के अलग-अलग मत

सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली के मुख्यमंत्री और आम आदमी पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक अरविंद केजरीवाल को कथित आबकारी नीति घोटाले में सशर्त जमानत दी है। जस्टिस सूर्यकांत की अगुवाई में सुप्रीम कोर्ट ने तीन महत्वपूर्ण सवालों पर चर्चा की। अदालत ने सवाल उठाया कि क्या गिरफ्तारी वैध थी, क्या नियमित जमानत दी जा सकती है, और क्या आरोप पत्र दाखिल होने से मामले में बदलाव हुआ है कि इसे ट्रायल कोर्ट में भेजा जा सके?

'लंबी जेल अवधि से स्वतंत्रता प्रभावित होती है' - जस्टिस सूर्यकांत
जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कि अदालतें आम तौर पर स्वतंत्रता के पक्ष में फैसला करती हैं। उन्होंने सीबीआई पर आरोप लगाया कि उसने गिरफ्तारी के दौरान धारा 41 का पालन सही तरीके से नहीं किया, हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई की इस बात से असहमति जताई। अदालत ने कहा कि जेल में लंबी अवधि तक कैद रहना व्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार के खिलाफ है, इसलिए जमानत पर विचार किया गया।

सीबीआई की गिरफ्तारी पर गंभीर सवाल
जस्टिस भुइंया ने टिप्पणी की कि केजरीवाल की गिरफ्तारी तब की गई जब उन्हें ईडी मामले में जमानत मिल गई थी, जो सवाल खड़े करती है। उन्होंने कहा कि सीबीआई द्वारा की गई इस कार्रवाई से ऐसा प्रतीत होता है कि यह ईडी मामले में मिली जमानत को कमजोर करने की कोशिश थी। उन्होंने यह भी कहा कि सीबीआई जैसी प्रमुख जांच एजेंसी को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि उसकी जांच निष्पक्ष और विश्वसनीय हो।

जमानत के साथ सुप्रीम कोर्ट की शर्तें

सुप्रीम कोर्ट ने केजरीवाल को जमानत देने के साथ कुछ शर्तें भी लगाईं। जमानत के नियम वही रहेंगे, जो ईडी मामले में दिए गए थे। इनमें शामिल हैं:

1. केजरीवाल इस मामले पर कोई सार्वजनिक बयान नहीं देंगे।

2. वह मुख्यमंत्री कार्यालय और दिल्ली सचिवालय नहीं जाएंगे।

3. सरकारी फाइलों पर तभी हस्ताक्षर करेंगे जब यह आवश्यक हो और उपराज्यपाल की मंजूरी हो।

4. अपनी भूमिका पर कोई सार्वजनिक टिप्पणी नहीं करेंगे।

5. किसी गवाह से संपर्क नहीं करेंगे और मामले से जुड़ी फाइलों तक पहुंच नहीं रखेंगे।