ज्ञान महाकुंभ 2018: भारतीय शिक्षा और संस्कृति के पुनर्जागरण का संकल्प

भारत की प्राचीन शिक्षा और ज्ञान परंपरा को पुनः जागृत करने की आवश्यकता पर इसरो अध्यक्ष वी. नारायण ने बल दिया। उन्होंने ज्ञान महाकुंभ 2018 के समापन समारोह में कहा कि भारत ने ज्ञान के क्षेत्र में जो योगदान दिया है, उसे कभी नकारा नहीं जा सकता। भारतीय शिक्षा प्रणाली इतनी समृद्ध थी कि अनेक देशों से विद्यार्थी यहाँ ज्ञान अर्जित करने आते थे। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि अंग्रेजों के शासनकाल में शिक्षा का स्तर ऊँचा हुआ, इस धारणा को वे पूरी तरह अस्वीकार करते हैं। उनका कहना था कि भारत की शिक्षा और संस्कृति को बाहरी आक्रमणों ने प्रभावित किया, लेकिन अब समय आ गया है कि हम इसे पुनः अपने मूल स्वरूप में स्थापित करें और देश को एक विकसित राष्ट्र बनाएं।
भारतीय शिक्षा में नवाचार की आवश्यकता
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले ने इस अवसर पर कहा कि भारत में कई समस्याएँ हैं, लेकिन यदि हम केवल उनकी चर्चा में लगे रहेंगे, तो कभी आगे नहीं बढ़ पाएंगे। उन्होंने शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास के प्रयासों की सराहना करते हुए कहा कि उनका ध्येय वाक्य ‘समस्या नहीं, समाधान की चर्चा’ बेहद सार्थक है। होसबाले ने इस बात पर जोर दिया कि शिक्षा प्रणाली में बदलाव लाकर विद्यार्थियों में न केवल ज्ञान, बल्कि जीवन मूल्यों को भी स्थापित किया जाना चाहिए।

उन्होंने बताया कि न्यास ने शिक्षकों, शिक्षाविदों और संस्थानों को एक मंच पर लाकर आवश्यक सुधारों पर विचार-विमर्श किया है। न्यास ने संस्कारयुक्त शिक्षा और चरित्र निर्माण के लिए भी कई कार्यक्रम चलाए हैं। इसके अलावा, पर्यावरण संरक्षण, भारतीय भाषाओं की उन्नति और अन्य सामाजिक विषयों पर भी न्यास सक्रिय रूप से काम कर रहा है।
भारत बनाम इंडिया: नाम से जुड़ी भावना
1 फरवरी 2025 को ज्ञान महाकुंभ में भारत को ‘इंडिया’ कहे जाने की सार्थकता पर गहन मंथन हुआ। इस सत्र के संयोजक डॉ. मोतीलाल गुप्ता ने कहा कि ‘इंडिया’ महज एक नाम है, जबकि ‘भारत’ हमारी सांस्कृतिक विरासत और भावनाओं से जुड़ा है। एम. गुरु जी ने भी इस चर्चा को आगे बढ़ाते हुए कहा कि हम भारतीय हैं और भारत के गौरव की रक्षा करना हमारा कर्तव्य है, इसलिए ‘इंडिया’ शब्द को स्वीकार नहीं किया जा सकता।
हरित महाकुंभ: पर्यावरण संरक्षण की दिशा में पहल
पर्यावरण संरक्षण को लेकर शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास और पर्यावरण संरक्षण गतिविधि के संयुक्त प्रयास से 5-6 फरवरी को ‘हरित महाकुंभ-2081’ का आयोजन हुआ। इस दौरान राष्ट्रीय सचिव डॉ. अतुल कोठारी ने कहा कि पर्यावरण की बिगड़ती स्थिति के लिए हम स्वयं जिम्मेदार हैं और हमें ही इसका समाधान निकालना होगा। मोतीलाल नेहरू राष्ट्रीय तकनीकी संस्थान के निदेशक प्रो. आर. एस. वर्मा ने प्लास्टिक के दुष्प्रभावों पर प्रकाश डालते हुए इसके न्यूनतम उपयोग पर जोर दिया।
गोपाल आर्य ने पर्यावरण और मातृभाषा हिंदी को जोड़ते हुए कहा कि ‘हरित’ शब्द से ‘हरि’ की अनुभूति होती है, जबकि ‘ग्रीन’ अंग्रेजी में ‘ग्रीड’ (लालच) का पर्याय लगता है।
शिक्षा में भारतीय दृष्टिकोण का महत्व
‘भारतीय शिक्षा: राष्ट्रीय संकल्पना’ विषय पर आयोजित तीन दिवसीय सत्र में शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास के राष्ट्रीय सचिव डॉ. अतुल कोठारी ने ज्ञान महाकुंभ की महत्ता को रेखांकित किया। उन्होंने कहा कि यह आयोजन भारतीय शिक्षा प्रणाली को पुनर्जीवित करने के लिए एक महत्वपूर्ण कदम है।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सह-सरकार्यवाह डॉ. कृष्ण गोपाल ने कहा कि भारतीय शिक्षा प्रणाली कभी भी एकांगी नहीं रही, लेकिन वर्तमान वैश्विक शिक्षा प्रणाली इसी समस्या से जूझ रही है। इसलिए हमें अपने पारंपरिक ज्ञान को पुनः जागृत करने की आवश्यकता है।
यूजीसी के पूर्व अध्यक्ष प्रो. डी. पी. सिंह ने भी भारतीय शिक्षा प्रणाली की प्रशंसा करते हुए कहा कि आध्यात्म विद्या सभी विद्याओं में श्रेष्ठ है और हमें इसे और अधिक सशक्त बनाना होगा।
राष्ट्रीय स्तर पर शिक्षा में सुधार की दिशा में प्रयास
इस आयोजन में उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी, साध्वी ऋतंभरा, नीति आयोग के शिक्षा निदेशक डॉ. शसीम शाह, पद्मश्री आनंद कुमार सहित कई शिक्षाविदों और समाजसेवियों ने भाग लिया।
शिक्षा के क्षेत्र में निजी संस्थानों की भूमिका, शासन-प्रशासन की जिम्मेदारी, भारतीय भाषाओं की उन्नति जैसे विषयों पर गहन चर्चा हुई। इस कार्यक्रम में देशभर से 10,000 से अधिक विद्यार्थियों, शिक्षाविदों और कुलपतियों ने भाग लिया।
सोशल इंटर्नशिप के तहत विद्यार्थियों ने विभिन्न गतिविधियों में योगदान दिया। वैदिक गणित, योग अभ्यास और संस्कृत कार्यशालाएँ भी आयोजित की गईं।
भारत को 'भारत' ही कहने की दिशा में राष्ट्रीय अभियान
कार्यक्रम के समापन पर ‘ॐ’ ध्वनि के साथ विभिन्न संकल्प पत्र पारित किए गए। शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास ने घोषणा की कि अगले एक महीने तक भारत को ‘इंडिया’ नहीं, बल्कि ‘भारत’ कहने को लेकर राष्ट्रीय स्तर पर हस्ताक्षर अभियान चलाया जाएगा। इस अभियान के तहत 10 लाख से अधिक हस्ताक्षर एकत्र कर राष्ट्रपति को ज्ञापन सौंपा जाएगा।
शैक्षिक संस्थानों, विश्वविद्यालयों, सामाजिक संगठनों और सरकारी कार्यालयों में भी इस अभियान को प्रसारित किया जाएगा। ज्ञान महाकुंभ 2018 के इस आयोजन ने न केवल शिक्षा प्रणाली में सुधार की दिशा में एक महत्वपूर्ण पहल की, बल्कि भारतीय संस्कृति, भाषा और पर्यावरण संरक्षण को लेकर भी समाज में जागरूकता बढ़ाने का कार्य किया।