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बिना नोटिस घर गिराना मानवाधिकारों का उल्लंघन, बुलडोजर जस्टिस स्वीकार्य नहीं : सुप्रीम कोर्ट

संपत्तियों के ध्वस्तीकरण अभियान पर अखिल भारतीय दिशा-निर्देश तैयार करने के मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट ने सख्त फैसला सुनाया। कोर्ट ने स्पष्ट कहा कि किसी को आरोपी मानकर उसका घर गिराना न्यायसंगत नहीं है। जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस केवी विश्वनाथन की पीठ ने कहा कि बुलडोजर जस्टिस बर्दाश्त नहीं की जाएगी और जिम्मेदार अधिकारियों पर कार्रवाई होगी।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि देश में कानून का पालन अनिवार्य है, और कानून से ऊपर कोई नहीं। एक व्यक्ति आरोपी होने से पूरे परिवार को सजा नहीं दी जा सकती। प्रशासन को किसी संपत्ति को ध्वस्त करने से पहले 15 दिन का नोटिस भेजना जरूरी है। कोर्ट ने चेताया कि अधिकारी न्यायपालिका की भूमिका न निभाएं और सरकारी शक्तियों का दुरुपयोग न करें। किसी का घर उसके सपनों का घर होता है, इसे यूं ही नहीं तोड़ा जा सकता।

अगर किसी आरोपी का घर गलत तरीके से गिराया जाता है, तो पीड़ित परिवार को मुआवजा देना होगा। अदालत ने तीन महीने में एक पोर्टल बनाने का आदेश दिया ताकि इस तरह के मामलों पर निगरानी रखी जा सके।

1 अक्टूबर को सुप्रीम कोर्ट ने आदेश सुरक्षित रखते हुए अनधिकृत निर्माणों पर अंतरिम रोक को आगे बढ़ाया था। हालांकि, सड़कों और फुटपाथों पर बने धार्मिक ढांचों पर यह आदेश लागू नहीं होगा। कोर्ट ने कहा कि सार्वजनिक सुरक्षा सर्वोपरि है, चाहे वह मंदिर हो, दरगाह हो या गुरुद्वारा – अगर वे सार्वजनिक सुरक्षा में बाधक हैं, तो उन्हें हटाना अनिवार्य है।

सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि भारत धर्मनिरपेक्ष देश है और सभी धर्मों पर लागू होने वाले निर्देश जारी किए जाएंगे। कोर्ट ने नगर निगम कानूनों के दुरुपयोग पर चिंता जताई और कहा कि किसी संरचना का अवैध निर्माण केवल आरोपी होने के आधार पर ध्वस्त नहीं किया जा सकता।