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ISRO के स्वदेशी स्पेस शटल 'पुष्पक' की सफल लैंडिंग, रॉकेट लॉन्चिंग अब होगी सस्ती

आज इंडियन स्पेस रिसर्च ऑर्गनाइज़ेशन ने रीयूजेबल लॉन्च व्हीकल (RLV LEX-02) की सफलतापूर्वक लैंडिंग कराई। भारत में बनी इस स्पेस शटल का नाम पुष्पक रखा गया है। बताते चलें कि, कर्नाटक के चित्रदुर्ग के एरोनॉटिकल टेस्ट रेंज में इस स्वदेशी स्पेस शटल (पुष्पक) को हेलिकॉप्टर से 4.5 किमी की ऊंचाई तक ले जाया गया और रनवे पर ऑटोनॉमस लैंडिंग के लिए छोड़ा गया। ISRO ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X पर पोस्ट साझा करते हुए बताया कि पुष्पक की सफल लैंडिंग 7 बजकर 10 मिनट पर हुई। इससे पहले RLV का 2016 और 2023 में लैंडिंग एक्सपेरिमेंट किया जा चुका है। इस बार का पुष्पक विमान पिछले बार के RLV-TD से करीब 1.6 गुना बड़ा है। विदित हो कि पुष्पक विमान RLV-TD से ज्यादा वजन झेल सकता है। ISRO का कहना है कि इस टेक्नोलॉजी से रॉकेट लॉन्चिंग अब पहले से सस्ती होगी। अंतरिक्ष में अब उपकरण पहुंचाने में लागत काफी कम आएगी।

नासा के स्पेस शटल की तरह इसरो का RLV
ISRO का रीयूजेबल लॉन्च व्हीकल (RLV) नासा के स्पेस शटल की ही तरह है। लगभग 2030 तक पूरा होने पर, यह विंग वाला स्पेसक्राफ्ट पृथ्वी की निचली कक्षा में 10,000 किलोग्राम से ज्यादा वजन ले जाने में सक्षम होगा। सैटेलाइट को बेहद कम कीमत पर ऑर्बिट में स्थापित किया जा सकेगा। ऐसे में यहां हम रीयूजेबल रॉकेट टेक्नोलॉजी के साथ ISRO के इस मिशन के बारे में बता रहे हैं...

क्या है रीयूजेबल टेक्नॉलोजी 
किसी भी रॉकेट मिशन में 2 बेसिक चीजें होती है। रॉकेट और उस पर लगा स्पेसक्राफ्ट। रॉकेट का काम स्पेसक्राफ्ट को अंतरिक्ष में पहुंचाना होता है। अपने काम को करने के बाद रॉकेट को आम तौर पर समुद्र में गिरा दिया जाता है। यानी इसका दोबारा इस्तेमाल नहीं होता। लंबे समय तक पूरी दुनिया में इसी तरह से मिशन को अंजाम दिया जाता था। यहीं पर एंट्री होती है रियूजेबल रॉकेट की। रीयूजेबल रॉकेट के पीछे का आइडिया स्पेसक्राफ्ट को लॉन्च करने के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले अल्ट्रा-एक्सपेंसिव रॉकेट बूस्टर को रिकवर करना है। ताकि, फ्यूल भरने के बाद इनका फिर से इस्तेमाल किया जा सके। इससे मिशन की कॉस्ट काफी कम हो गई। 

ISRO को रीयूजेबल लॉन्च व्हीकल से क्या फायदा होगा?
रीयूजेबल लॉन्च व्हीकल से ISRO को स्पेस में लॉ-कॉस्ट एक्सेस मिलेगा। यानी स्पेस में ट्रैवल करना सस्ता हो जाएगा। सैटेलाइट को कम कीमत पर लॉन्च किया जा सकेगा। ये भी कयास लगाए जा रहे हैं कि इस व्हीकल की मदद से ऑर्बिट में खराब हुए सैटेलाइट को डेस्ट्रॉय करने के बजाय रिपेयर किया जा सकेगा। इसके अलावा जीरो ग्रैविटी में बायोलॉजी और फार्मा से जुड़े रिसर्च करना आसान हो जाएगा।