न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा ने खटखटाया सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा, नकदी बरामदगी प्रकरण में जांच की वैधता पर उठाये सवाल
दिल्ली स्थित आवास में नकदी मिलने के विवाद में घिरे न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर अपने खिलाफ की गई जांच प्रक्रिया और स्थानांतरण की वैधता को चुनौती दी है।
इस मामले में आंतरिक जांच समिति की रिपोर्ट के आधार पर उन्हें दोषी ठहराते हुए पद से हटाने की अनुशंसा की गई थी। जस्टिस वर्मा ने याचिका में आरोप लगाया है कि उन्हें न तो न्यायिक प्रक्रिया का पूरा लाभ मिला और न ही उचित सुनवाई का अवसर।
नकदी बरामदगी के बाद हुआ तबादला
14-15 मार्च, 2025 की रात दिल्ली में न्यायमूर्ति वर्मा के निवास पर आग लगने की घटना के दौरान नकदी मिलने के बाद मामला तूल पकड़ गया। इसके बाद उन्हें दिल्ली हाईकोर्ट से स्थानांतरित कर इलाहाबाद हाईकोर्ट भेज दिया गया।
इस पूरे घटनाक्रम के बीच संसद का मानसून सत्र भी नजदीक है और कयास लगाए जा रहे हैं कि केंद्र सरकार इस मामले को लेकर महाभियोग प्रस्ताव लाने की तैयारी में है।
तीन सदस्यीय समिति की जांच पर सवाल
22 मार्च, 2025 को तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना ने पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश शील नागू की अध्यक्षता में एक जांच समिति गठित की थी। समिति में हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश जी.एस. संधावालिया और कर्नाटक हाईकोर्ट की न्यायमूर्ति अनु शिवरामन भी शामिल थीं।
जस्टिस वर्मा का आरोप है कि समिति ने उन्हें अपने पक्ष में बयान रखने, गवाहों से सवाल-जवाब करने और दोषारोपण का खंडन करने का मौका नहीं दिया। उन्होंने यह भी दावा किया कि समिति की कार्यवाही किसी आधिकारिक शिकायत के अभाव में शुरू की गई थी, जो नियमानुसार नहीं है।
मीडिया अटकलों से छवि को नुकसान: वर्मा
वर्मा ने अपनी याचिका में 22 मार्च को सुप्रीम कोर्ट की प्रेस विज्ञप्ति का भी उल्लेख किया है, जिसमें उनके खिलाफ आरोपों का ज़िक्र किया गया था। उनका कहना है कि इससे मीडिया में अनेक अटकलें लगीं, जिससे उनकी साख और गरिमा को ठेस पहुंची।
उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि समिति ने 14 मार्च को नकदी की कथित बरामदगी से जुड़े मूल तथ्यों की पर्याप्त जांच नहीं की, जो कि निष्पक्ष निष्कर्ष के लिए आवश्यक थे।
इस्तीफे से इनकार, महाभियोग की आशंका
जब जांच समिति की रिपोर्ट के बाद तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना ने उन्हें इस्तीफ़ा देने का सुझाव दिया, तो न्यायमूर्ति वर्मा ने इससे इनकार कर दिया। इसके बाद, मुख्य न्यायाधीश खन्ना ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखा, जिससे यह प्रकरण और भी संवेदनशील बन गया है।







