मुंबई लोकल ट्रेन धमाका मामला: सबूतों की कमी पर ट्रायल कोर्ट का फैसला पलटा, 19 साल बाद 11 आरोपी बरी
साल 2006 में मुंबई की लोकल ट्रेनों में हुए श्रृंखलाबद्ध बम धमाकों के मामले में बॉम्बे हाई कोर्ट ने सोमवार को बड़ा निर्णय सुनाया। लगभग 19 वर्षों से चल रहे इस चर्चित केस में न्यायमूर्ति अनिल किलोर और न्यायमूर्ति एस. जी. चांडक की खंडपीठ ने ट्रायल कोर्ट द्वारा दोषी ठहराए गए 12 में से 11 आरोपियों को सबूतों के अभाव में बरी कर दिया। कोर्ट का कहना है कि अभियोजन पक्ष इन अभियुक्तों के खिलाफ पर्याप्त और भरोसेमंद साक्ष्य पेश करने में विफल रहा। गौरतलब है कि एक आरोपी की अपील के दौरान ही मृत्यु हो गई थी।
11 जुलाई 2006: जब मुंबई दहल उठी थी
इस भयावह घटना में 11 जुलाई 2006 को मुंबई की व्यस्त लोकल ट्रेनों में शाम के समय मात्र कुछ मिनटों के अंतराल में सात शक्तिशाली बम धमाके हुए थे। इन धमाकों में 189 लोगों की मौत हो गई थी और 700 से अधिक लोग गंभीर रूप से घायल हुए थे। देशभर में दहशत का माहौल बन गया था और इसे उस समय की सबसे भीषण आतंकी साजिशों में से एक बताया गया।
घटना की जांच महाराष्ट्र एटीएस द्वारा की गई और कई लोगों को गिरफ्तार किया गया। साल 2015 में ट्रायल कोर्ट ने 12 आरोपियों को दोषी करार देते हुए इनमें से 5 को मृत्युदंड और 7 को आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी।
हाई कोर्ट का फैसला और जांच एजेंसियों पर उठते सवाल
हालांकि अब बॉम्बे हाई कोर्ट ने इन दोषियों को बड़ी राहत देते हुए 11 को सभी आरोपों से मुक्त कर दिया है। कोर्ट ने कहा कि अभियोजन पक्ष द्वारा पेश किए गए सबूत दोष सिद्ध करने के लिए पर्याप्त नहीं थे। इस फैसले के बाद राज्य सरकार और जांच एजेंसियों की जांच प्रक्रिया और पेशकश पर सवाल उठने लगे हैं।
फिलहाल यह स्पष्ट नहीं है कि महाराष्ट्र सरकार इस फैसले को सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती देगी या नहीं, लेकिन सूत्रों के अनुसार, इस संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता। अदालत के इस फैसले ने एक बार फिर आतंकवाद से जुड़े मामलों में जांच और न्याय प्रणाली की पारदर्शिता और विश्वसनीयता पर बहस को जन्म दे दिया है।







