Movie prime

जन्मदिन विशेष: JDU में अकेला नेता नीतीश कुमार, पार्टी पर किसी की पकड़ बर्दाश्त नहीं, बैर लेने वालों की खैर नहीं

 

-अमित कुमार अग्रवाल

बिहार की सत्ता की ड्राइविंग सीट को पिछले कई सालों से जिस पकड़ के साथ सीएम नीतीश कुमार  ने संभाले रखा है ठीक उसी तरह अपनी पार्टी जदयू पर भी पकड़ कभी ढ़ीली नहीं पड़ने दी है. चाहे वह पार्टी के अध्यक्ष रहें  हों या ना रहे हों. जब कभी भी कोई जदयू नेता पार्टी पर अपनी पकड़ बनाने की कोशिश करता है, वह नीतीश कुमार को खटकने लगता है. ऐसा होते ही राजनीतिक अमृत उसके लिए विष बन जाता है. कुछ ऐसा ही अबतक रहे लगभग सभी जदयू अध्यक्षों के साथ हुआ भी है. जार्ज फर्नाडिस, शरद यादव, आरसीपी सिंह और ललन सिंह जैसे नेताओं की रौशनी नीतीश कुमार के सामने धीमी पड़ गई. आज भी नीतीश कुमार जदयू में एक अकेला और सर्वमान्य नेता है. लब्बोलुआब यह है कि नीतीश उस दीये कि तरह हैं, जिनके पास पहुंच कर राजनीतिक परवाने कुछ समय तक रौशनी करते हैं, फिर उसी दीये में जल जाते हैं.

शुरुआत जार्ज फर्नांडिस से

जार्ज फर्नांडिस से जदयू के गठन के समय तीन बड़े नेता थे जार्ज फर्नांडिस, शरद यादव और नीतीश कुमार. 2004 में जार्ज फर्नाडिस पार्टी के पहले राष्ट्रीय अध्यक्ष बने. 2005 में नीतीश के CM बनने के बाद जार्ज और नीतीश के बीच दूरियां बढ़ने लगीं. कारण बनीं जया जेटली. जॉर्ज, जया को राज्यसभा भेजना चाहते थे, पर नीतीश ने मना कर दिया. यही नहीं 2006 में जॉर्ज को हटाकर राष्ट्रीय अध्यक्ष की कुर्सी शरद को दे दी गई. 2009 के लोकसभा चुनाव में जार्ज का टिकट स्वास्थ्य का हवाला देकर काट दिया गया. ऐसी स्थिति आ गई कि जार्ज को निर्दलीय चुनाव लड़ना पड़ा, जिसमें वो हार गए. इस तरह जार्ज का राजनीतिक जीवन समाप्त हो गया.

शरद यादव पर भी गिरी गाज

जार्ज के बाद शरद यादव पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष बने. वो मधेपुरा से कई बार सांसद रहे. पर साल 2014 में लोकसभा चुनाव हार गए. साल 2016 में पार्टी पर अपनी पकड़ और मजबूत बनाने के लिए नीतीश कुमार खुद राष्ट्रीय अध्यक्ष बन गए और शरद यादव को राज्यसभा भेज दिया. धीरे धीरे उन दोनों के रिश्तों में खटास आती गई. जिसके बाद साल 2018 शरद ने जदयू  छोड़ अलग पार्टी बनाई. लेकिन लगातार चुनावी हार ने उनका पॉलिटिकल कैरियर भी खत्म कर दिया.

आरसीपी सिंह को किया किनारे

साल 2020 के विधान सभा चुनाव के बाद नीतीश सीएम जरूर बने, पर उनकी पार्टी तीसरे नम्बर पर रही. इधर, आरसीपी सिंह को पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया गया पर आरसीपी सिंह भाजपा के करीब होते दिखे तो उनके पर भी कतर दिए गए. आरसीपी का राज्यसभा में कार्यकाल खत्म हुआ और उन्हें दुबारा नहीं भेजा गया. लिहाजा उनका मंत्री पद छिन गया. जदयू में रहते हुए भी वे जदयू के अस्तित्व पर सवाल उठाने लगे. हाल ऐसा हुआ कि जदयू के लोग उन्हें भाजपा का एजेंट बताने लगे. आखिरकार आरसीपी सिंह जदयू से इस्तीफा देकर मई 2023 में भाजपा ज्वाइन कर लिया.

ललन सिंह को राष्ट्रीय अध्यक्ष पद से हटाया

31 जुलाई 2021 को नीतीश कुमार ने अपने बेहद करीबी ललन सिंह को जदयू का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया. धीरे-धीरे जदयू में नीतीश कुमार के बाद ललन सिंह ही दूसरे सबसे प्रभावी नेता बनाने लगे. वर्ष 2022 में जदयू ने बिहार में महागठबंधन के साथ मिल कर सरकार बना ली.17 महीने बीतते महागठबंधन में खटपट जोर पकड़ लिया. ऐसी अफवाह भी उड़ी की ललन सिंह जदयू के कुछ विधायकों को तोड़ कर राजद को समर्थन देना चाहते हैं और तेजस्वी यादव को सीएम बनाना चाहते हैं. नीतीश कुमार द्वारा महागठबंधन का साथ छोड़ने के ठीक एक महिना पहले  29 दिसंबर 2023 को दिल्ली में हुई जदयू राष्ट्रीय कार्यकारणी की बैठक में अचानक से ललन सिंह राष्ट्रीय अध्यक्ष पद से इस्तीफा देते हैं और नीतीश कुमार एक बार फिर से तीर की कमान संभाल लेते है. हालांकि दावा यही किया गया कि ललन सिंह लोकसभा चुनाव पर फोकस करने के लिए अपनी मर्जी से राष्ट्रीय अध्यक्ष पद से इस्तीफा दिया है. लेकिन वर्तमान में बनी परिस्थियों से ललन सिंह के लोकसभा टिकट पर भी खतरा मंडराता दिख रहा है. क्योंकि उनके संसदीय क्षेत्र मुंगेर से लोकसभा चुनाव लड़ने की आकांक्षा रखने वाली नीलम देवी भी जदयू के साथ आ गई है.