ब्रेथ एनालाइजर टेस्ट के आधार पर दर्ज नहीं होगा FIR, शराबबंदी कानून पर कोर्ट का बड़ा फैसला

पटना हाईकोर्ट ने एक केस में महत्वपूर्ण टिप्पणी करते हुए कहा है कि शराबबंदी कानून के तहत केवल ब्रेथ एनालाइजर टेस्ट के आधार पर दर्ज किया गया केस अवैध माना जाएगा. आज एक न्यूज एजेंसी से बातचीत के दौरान वकील शिवेश सिन्हा ने कहा कि हाईकोर्ट ने किशनगंज में पोस्टेड एक सरकारी कर्मचारी की याचिका पर फैसला सुनाते हुए आदेश पारित किया है. आबकारी विभाग ने जब किशनगंज में सरकारी कर्मचारी के घर पर रेड मारी तो ब्रेथ एनालाइजर मशीन टेस्ट के दौरान उनकी रिडिंग 4.1 MG 100 ML आई. इसको लेकर उनके खिलाफ एक केस दर्ज किया गया. वकील ने आगे बताया कि सरकारी कर्मचारी के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई जिसके बाद विभागीय कार्रवाई के बाद उन्हें सस्पेंड कर दिया गया. फिर इस मामले में हाईकोर्ट में याचिका दायर की गई.
याचिका में जानकारी दी गई कि सुप्रीम कोर्ट के 1971 के एक फैसले में कहा गया है कि चिकित्सा न्यायशास्त्र के अनुसार, शराब के सेवन के लिए केवल ब्लड टेस्ट और यूरिन टेस्ट ही निर्णायक सबूत हैं. सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में यह भी कहा था कि ऐसा व्यक्ति जो लड़खड़ा रहा हो, उसके मुंह से दुर्गंध आ रही हो या फिर बोलने से ऐसा प्रतीत हो रहा हो कि उसने शराब पी रखी है. ऐसी कंडीशन में भी यह पुख्ता नहीं होता कि वो व्यक्ति शराब का सेवन किए हुए है.

वकील शिवेश सिन्हा ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट तौर पर कहा था कि केवल ब्लड टेस्ट और यूरिन टेस्ट के माध्यम से ही ये पुष्टि हो सकती है कि उक्त व्यक्ति ने शराब पी रखी है. हमारे केस में ना ब्लड टेस्ट और ना ही यूरिन टेस्ट हुआ था. केवल ब्रेथ एनालाइजर टेस्ट के आधार पर एक प्राथमिकी दर्ज की गई थी.
आगे कहा कि हमने सुप्रीम कोर्ट के फैसले को हाईकोर्ट के सामने दोहराया जिस पर हाईकोर्ट की तरफ से कहा गया कि ब्रेथ एनालाइजर टेस्ट शराब की पुष्टि का निर्णायक सबूत नहीं है. हाईकोर्ट की तरफ से स्पष्ट तौर पर कहा गया है कि केवल ब्रेथ एनालाइजर टेस्ट के आधार पर किसी के खिलाफ केस दर्ज नहीं किया जा सकता.