लालकृष्ण आडवाणी: 97 साल की यात्रा, रसातल से शिखर तक का सियासी सफर
Nov 9, 2024, 20:51 IST
लालकृष्ण आडवाणी, भारतीय राजनीति में वो नाम है जिसने बीजेपी को एक छोटी पार्टी से निकालकर राष्ट्रीय राजनीति के शिखर तक पहुँचाया। आज 97 साल के आडवाणी भले ही राजनीति से दूर हो गए हैं, लेकिन उनकी मेहनत और संघर्ष पार्टी की नींव में गहराई से जमे हुए हैं। 8 नवंबर को उनका जन्मदिन था, और ये दिन हमें उनकी भूमिका की याद दिलाता है जो कभी बीजेपी के कद्दावर नेता और मार्गदर्शक थे।
1980 में भारतीय जनता पार्टी का गठन हुआ, और तब से आडवाणी ने पार्टी को जनसंघ से बदलकर एक ऐसी पार्टी में तब्दील किया, जो पूरे देश में एक प्रमुख राजनीतिक ताकत बन सके। 1984 में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद हुए लोकसभा चुनाव में पार्टी को महज़ 2 सीटें मिलीं, लेकिन आडवाणी और अटल बिहारी वाजपेयी जैसे नेताओं के आत्मविश्वास ने पार्टी को बिखरने नहीं दिया।
1989 में आडवाणी ने राम मंदिर आंदोलन का नेतृत्व किया, जिसने बीजेपी को देशव्यापी पहचान दिलाई। इसी आंदोलन के बाद बीजेपी ने जनता दल को समर्थन देकर वीपी सिंह की सरकार बनाई, जिसने कांग्रेस के दबदबे को चुनौती दी। इस घटना के बाद बीजेपी का प्रभाव लगातार बढ़ता गया, और 1998 में पहली बार पार्टी ने केंद्र में सरकार बनाई।
1999 में वाजपेयी सरकार में आडवाणी उप प्रधानमंत्री बने। उस समय वे पार्टी के एक ऐसे नेता थे जिनकी सहमति के बिना कोई भी बड़ा फैसला नहीं होता था। लेकिन 2005 में पाकिस्तान यात्रा के दौरान जिन्ना को 'सेक्यूलर' कहने पर आडवाणी का संघ के साथ विवाद शुरू हो गया। इस विवाद के बाद आडवाणी पार्टी में कमजोर होते चले गए।
2009 के आम चुनाव में पार्टी को मिली हार ने उनकी राजनीतिक स्थिति को और कमजोर कर दिया। संघ के दबाव में वे नेता विपक्ष का पद भी छोड़ने को मजबूर हुए। धीरे-धीरे उन्हें पार्टी के फैसलों से दूर किया गया और उनकी भूमिका एक शो-पीस नेता की बनकर रह गई।
आज आडवाणी पार्टी में एक आदर्श के रूप में तो देखे जाते हैं, लेकिन उनका राजनीतिक प्रभाव कम हो चुका है। वे भारतीय राजनीति के उन नेताओं में से हैं, जिन्होंने कठिन हालातों में पार्टी का नेतृत्व किया और उसे सफलता की ओर अग्रसर किया। आडवाणी का योगदान बीजेपी की यात्रा में अमिट रहेगा, भले ही वे अब सक्रिय राजनीति से दूर हों।