सात कवियों के साझा संकलन “सप्तपदीयम” और कुमार मुकुल के नए कविता संग्रह “ख़ुशी का चेहरा“ का लोकार्पण
समन्वय के तत्वावधान में बुधवार शाम को जगजीवन राम संसदीय अध्ययन एवं राजनीतिक शोध संस्थान, पटना में पुस्तक चर्चा एवं कविता पाठ का आयोजन किया गया. कार्यक्रम में सबसे पहले सात कवियों के साझा संकलन “सप्तपदीयम” और कुमार मुकुल की नई कविता संग्रह “ख़ुशी का चेहरा“ का लोकार्पण वरिष्ठ कवि आलोक धन्वा, यादवेंद्र, संजय कुमार कुंदन, सुधीर सुमन, कुमार मुकुल, राजू रंजन प्रसाद और सुशील कुमार ने किया.
कुमार मुकुल जो कि साझा संकलन के सम्पादक हैं. उन्होंने अपनी बात रखते हुए इस संकलन को लेकर सभी कवियों को उनकी कविताओं से परिचय कराया फिर साझा संकलन के कवि राजू रंजन प्रसाद, कवि सुधीर सुमन ने अपनी कविताओं का पाठ किया. नवीन कुमार की कविता का पाठ कृष्ण संबिद्ध, खालिद-ए-खान की कविता का पाठ चंद्रबिंद, अनुपमा गर्ग की कविता का पाठ समता, आभा की कविता का पाठ गुंजन उपाध्याय पाठक और अमरेंद्र कुमार की कविता मथानी का पाठ युवा कवि राजेश कमल ने किया.
वरिष्ठ कवि आलोक धन्वा ने कुमार मुकुल को बधाई देते हुए कहा कि आज के दौर के न केवल महत्वपूर्ण कवि हैं बल्कि वे कविता के माध्यम से भावनाओं को उद्वेलित करती है. यादवेंद्र ने कहा कि कुमार मुकुल बतौर संपादक डेमोक्रेटिक व्यक्ति हैं. सात कवियों के संकलन में उनकी खासियत दिखाई देती है. युवा कवि अंचित ने कुमार मुकुल की कविता संग्रह खुशी के चेहरा की भूमिका बताते हुए कहा कि कुमार मुकुल की कविता आमजन की बात कहती है. वह समाज की विद्रूपताओं पर मुखर होकर अपनी बात कहते हैं. हिंदी की उस कविता को जिसे समाज नजरअंदाज कर देती है, उसकी बात कहते हैं. मुकुल चाहते हैं कि उनकी कविताओं का असर समाज मे गहरा हो.
वहीं राजीव रंजन ने किताब पर चर्चा करते हुए कहा कि हम कविता को इतिहास के दृष्टिकोण से देख पाते हैं. कुमार मुकुल की कविताओं को बनते, ढलते हुए ही नहीं, उसे बिखरते हुए भी देखा हूं. मेरा मानना है कि कविता को समझेंगे तब ही कवि को समझ सकते है. इनकी कविताएं ऐसी ही है जैसे उनका जीवन इससे झांक रहा हो. उनकी कविताओं में श्रम है.