Sahara India Refund: बिहार के 15 लाख से अधिक निवेशक अब भी खाली हाथ, क्या 2025 की डेडलाइन में लौटेगा पैसा?

Patna: वादा तो था पैसे लौटाने का, लेकिन इंतजार अब भी जारी है। सहारा इंडिया में निवेश करने वाले बिहार के लाखों लोगों की स्थिति कुछ ऐसी ही है। 31 दिसंबर 2025 की सुप्रीम कोर्ट द्वारा तय की गई समय-सीमा जैसे-जैसे करीब आ रही है, निवेशकों की बेचैनी भी उतनी ही बढ़ती जा रही है। हाल ही में सहारा समूह द्वारा बिहार सरकार को सौंपी गई 31 मार्च 2025 तक की स्टेटस रिपोर्ट ने चौंकाने वाले आंकड़े सामने रखे हैं। राज्य के 18.75 लाख से अधिक निवेशकों में से 15.73 लाख निवेशक अब तक एक भी रुपया नहीं पा सके हैं।
केवल 503 करोड़ का भुगतान, दावा 10,154 करोड़ से अधिक का
रिपोर्ट बताती है कि अब तक 3 लाख 2 हजार 809 निवेशकों को करीब 503.12 करोड़ रुपये का भुगतान हुआ है, जबकि बिहार से कुल 10,154 करोड़ रुपये से अधिक के रिफंड दावे किए गए हैं। यानी भुगतान कुल दावे का महज 5% भी नहीं पहुंचा है। एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया, “मार्च से जून के बीच कुछ और भुगतान किए गए हैं, लेकिन प्रक्रिया बेहद धीमी है।" लगभग 5 लाख और आवेदनों पर विचार चल रहा है, जिनमें 1120 करोड़ रुपये से अधिक के भुगतान की संभावना है।

निवेशकों की बेचैनी और सिस्टम की चुप्पी
पटना के एक निवेशक, अशोक प्रसाद, जो 8 साल पहले सहारा में 1.2 लाख रुपये जमा कर चुके हैं, कहते हैं, हमने हर दस्तावेज, हर फॉर्म भरा है लेकिन पैसा अब तक नहीं आया। सहारा ऑफिस जाएं तो कहते हैं, पोर्टल देखिए। आखिर हम कब तक 'सिर्फ देखेंगे'?
दूसरी तरफ, कई निवेशकों का यह भी आरोप है कि सहारा की संपत्तियों को औने-पौने दामों में बेचा जा रहा है, जिससे भविष्य में भुगतान की संभावना और कमजोर हो रही है।
सिस्टम पर सवाल
सहारा रिफंड पोर्टल, जिसे केंद्रीय सहकारिता मंत्रालय की निगरानी में चलाया जा रहा है, फिलहाल निवेशकों का एकमात्र सहारा है। लेकिन फॉर्म भरने, दस्तावेज अपलोड करने और स्थिति ट्रैक करने के बाद भी स्पष्ट जवाब या फॉलो-अप न मिलना एक बड़ी शिकायत बनी हुई है। कई निवेशकों का कहना है कि उन्हें यह तक नहीं पता कि उनका आवेदन स्वीकार हुआ है या खारिज।
31 दिसंबर 2025 की डेडलाइन: राहत या भ्रम?
सर्वोच्च न्यायालय ने सहारा समूह को 31 दिसंबर, 2025 तक सभी पात्र निवेशकों को पैसे वापस करने का निर्देश दिया है। लेकिन वर्तमान गति को देखते हुए, यह समय-सीमा व्यावहारिक होने के बजाय प्रतीकात्मक लगती है।
विशेषज्ञों का मानना है कि, यदि भुगतान इसी गति से जारी रहा, तो 2025 की तो बात ही छोड़िए, अगले दो वर्षों में भी सभी निवेशकों के लिए अपना पैसा प्राप्त करना मुश्किल हो जाएगा। इस प्रक्रिया में पारदर्शिता और गति दोनों आवश्यक हैं।