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ये हमारी कॉमरेड गीता मुखर्जी और महिला आंदोलन की जीत है – बिहार महिला समाज

 

कॉमरेड गीता मुखर्जी के जन्मशताब्दी वर्ष का ये सबसे अच्छा तोहफा है कि केन्द्रिय कैबिनेट ने महिला आरक्षण बिल को मंजूरी दे दी. ये बात बिहार महिला समाज की अध्यक्ष सुशीला सहाय ने केदार भवन स्थित अपने कार्यालय में आयोजित प्रेस कांफ्रेस के दौरान कही.
केन्द्रीय कैबिनेट द्वारा महिला आरक्षण बिल को बीती सोमवार को मंजूरी दिए जाने के मौके पर बुलाए गए इस संवाददाता सम्मेलन में गीता मुखर्जी को बहुत शिद्दत से याद किया गया. बिहार महिला समाज की कार्यकारी अध्यक्ष निवेदिता झा ने प्रेस कांफ्रेस में गीता मुखर्जी को याद करते हुए कहा कि वो हमारी ऐसी पुरखिन थी जो महिला आंदोलन को सदा दिशा देती रहेंगी. निवेदिता झा ने बताया कि भारतीय महिला समाज फेडरेशन ने सुप्रीम कोर्ट में महिला आरक्षण को लेकर जनहित याचिका दायर की थी. न्यायालय ने इस पर जवाब मांगा था और इस पर 11 अक्टूबर को अगली सुनवाई होनी थी. साफ तौर पर केन्द्र सरकार ने दवाब में ये फैसला लिया है.  

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प्रेस काफ्रेंस को संबोधित करते हुए बिहार महिला समाज की कानूनी सलाहकार सुधा अम्बष्ठ ने कहा कि एन एफ आई डब्लू और गीता मुखर्जी ने महिलाओं के कानूनी अधिकारो के लिए लंबी लड़ाई लड़ी है जिसे लगातार जारी रखना हम सबकी जिम्मेदारी है. वहीं पटना की जिला सचिव अनिता मिश्रा ने कहा कि गीता मुखर्जी ने संसद के अंदर और बाहर दोनों ही जगह महिलाओं के लिए लड़ाई लड़ी. वहीँ बिहार महिला समाज की कार्यकारिणी सदस्य रिंकू कुमारी ने कहा कि महिला आरक्षण बिल की कैबिनेट मंजूरी ने महिला आंदोलन को मजबूत किया है। उन्होने कहा कि कैबिनेट से महिला आरक्षण विधेयक को मिली मंजूरी महिला आंदोलन की जीत का एक पड़ाव है, लेकिन हमारा संघर्ष अभी लंबा है. कॉमरेड गीता के रास्ते पर जाकर ही महिलाओं के लिए अच्छी दुनिया बनाई जा सकती है.

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कौन है गीता मुखर्जी?
गीता मुखर्जी ही वो सांसद थी जिनकी अध्यक्षता में 1996 में महिला आरक्षण को लेकर संयुक्त विशेष समिति बनीं थी. 8 जनवरी 1924 को कोलकाता के एक मध्यवर्गीय परिवार में जन्मी गीता मुखर्जी 23 साल की उम्र में ही छात्र संगठन ए आई एस एफ की सचिव बन गई थी.
1942 में सीपीआई की सदस्यता ली और इसी साल उनकी शादी उस वक्त के स्थापित कम्युनिस्ट नेता विश्वनाथ मुखर्जी से हो गई. 29 जुलाई 1945 को गीता मुखर्जी तब सुर्खियों में आई जब उन्होने पोस्टल हड़ताल के विशाल समूह को संबोधित किया. इसके बाद वो 1946 में स्टेट कमिटी की सदस्य बनी और 1967 में पहली बार पश्चिम बंगाल की पंस्कुरा पूर्वी से विधानसभा चुनाव लड़ा.

गीता मुखर्जी भारतीय महिला समाज फेडरेशन से भी जुड़ी रही. चार बार विधायक, सात बार सांसद पंस्कुरा पूर्वी से गीता मुखर्जी चार बार विधायक रही. इसके बाद उन्होनें पंस्कुरा से ही लोकसभा चुनाव लड़ा. वो 1980 से 1999 तक इस सीट से सांसद रही. अपने पूरे जीवन में वो बीड़ी बनाने वाले, महिलाओं की सेहत के मसले, भ्रूण जांच के लिए बने पीएनडीटी एक्ट, महिला आरक्षण से लेकर दहेज के मसले पर हस्तक्षेप करती रही.

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1996 में जब देवगौड़ा सरकार ने संसद में महिला आरक्षण विधेयक पेश किया तो उसे पास करवा पाने में असफल रही. बाद में इस विधेयक को लेकर संयुक्त विशेष समिति बनी जिसका अध्यक्ष गीता मुखर्जी को बनाया गया.सांसदों के पास जाकर उसे महिला आरक्षण के पक्ष में बोलने के लिए मनाती थीं . गीता मुखर्जी की मृत्यु 4 दिसंबर 2000 को दिल का दौरा पड़ने से हुई. उनको याद करते हुए बीजेपी नेता सुषमा स्वराज ने एक जगह लिखा था कि वो सिंथेटिक साड़ी और हवाई चप्पल में अपने अंतिम दिनों तक संसद आती रही. जब महिला आरक्षण बिल पेश हुआ तो एक एक सीट पर जाकर सांसदों से व्यक्तिगत अनुरोध करती थी कि वो इस बिल के पक्ष में बोलें. गीता मुखर्जी नेशनल कमीशन ऑन रूरल लेबर, नेशनल चिल्ड्रेन बोर्ड, प्रेस कांउसिल आन इंडिया की भी सदस्य रही.