बिहार: ब्रह्मेश्वर मुखिया के हत्यारों का सुराग देंगे तो मिलेंगे 10 लाख, CBI ने चिपकाए पोस्टर
रणवीर सेना सुप्रीमो ब्रह्मेश्वर मुखिया की हत्या के 7 साल गुजर गए है. हत्या की गुत्थी सुलझाने में लगी सीबीआई के हाथ अबतक खाली है. सीबीआई अब भी ब्रह्मेश्वर मुखिया की हत्या के आरोपियों तक नहीं पहुंच पाई है. अब उसने इस गुत्थी को सुलझाने के लिए एक बड़ा एलान किया है. सीबीआई ने मुखिया के हत्यारों की जानकारी देने वालों को 10 लाख रुपये इनाम देने के एलान किया है.
सीबीआई ने इसके लिए आरा शहर में जगह-जगह इश्तेहार चिपकाया है. इस इश्तेहार में सीबीआई के नाम से एक अपील की गई है. जिसमें लिखा है कि स्वर्गीय ब्रह्मेश्वर नाथ सिंह पवना थाना क्षेत्र के खोपीरा निवासी की हत्या 1 जून 2012 को उनके निवास कतीरा में कर दी गई थी…..आरा नवादा थाना द्वारा अनुसंधान के क्रम में 8 व्यक्तियों के विरुद्ध आरोप पत्र दाखिल किया गया था. यदि किसी व्यक्ति को इस हत्याकांड से जुड़ी महत्वपूर्ण जानकारियां हो तो कृपया नीचे दिए गए फोन नंबर पर सीबीआई विशेष अपराध शाखा पटना को सूचित करने का कष्ट करें. इस कांड के खुलासे के लिए जानकारी देने वालों को सीबीआई द्वारा 10 लाख रुपए का इनाम दिया जाएगा. इस इश्तेहार में सीबीआई ऑफिस की ओर से तीन नंबर 0612 2239711, 2233588,2235599, 9415609325 जारी किये गए हैं.

बता दें कि 1 जनवरी 2012 को आरा के कतीरा स्थित आवास के समीप ब्रह्मेश्वर मुखिया की हत्या गोली मारकर हत्या कर दी गई थी. घटना को उस वक्त अंजाम दिया गया था जब वे सुबह अपने घर के पास ही टहल रहे थे….घटना के बाद जमकर बवाल हुआ था. ब्रह्मेश्वर मुखिया का अंतिम संस्कार पटना में हुआ था. शव को आरा से पटना लाने के दौरान भारी हंगामा हुआ था. हजारों की संख्या में शव-यात्रा में शामिल लोगों ने पटना में जगह-जगह हंगामा और तोड़फोड़ किया था. शहर में कर्फ्यू का आलम बन गया था. बवाल के बाद इस केस को सीबीआई के जिम्मे सौंप दिया गया था.
आइए जानते हैं कौन थे बरमेसर मुखिया?
बिहार के भोजपुर जिले के उदवंतपुर ब्लॉक में गांव पड़ता है, बेलूर. यह गांव मध्य बिहार में वर्चस्व रखने वाली भूमिहार जाति के लिए आस्था का केंद्र था. कहते हैं कि 19वीं शताब्दी में भूमिहार समुदाय से आने वाले रणवीर चौधरी ने राजपूतों के खिलाफ संघर्ष करके अपने समुदाय के लोगों को जमीनों पर कब्जा दिलवाया था. वक़्त बीतने के साथ रणवीर बाबा लोक देवता बन गए.

सितंबर 1994. बेलूर गांव में एक मीटिंग हो रही थी. मध्य बिहार में चावल की खेती करने वाले बड़े जमींदार संकट में थे. वजह थी इस इलाके में तेजी से मजबूत हो रहे नक्सलवादी आंदोलन. नक्सलियों ने इलाके के बड़े जमींदारों की जमीन की नाकेबंदी का ऐलान किया हुआ था. नाकेबंदी माने जमींदारों को उनकी जमीन ना जोतने देना. इस नाकेबंदी से परेशान बड़े जमींदारों ने इस मीटिंग में नक्सलियों की लाल सेना के खिलाफ एक सशस्त्र संगठन खड़ा करने का फैसला किया. इस संगठन को नाम दिया गया ‘रणवीर सेना’. रंगबहादुर सिंह इसके पहले अध्यक्ष चुने गए. रणवीर सेना की कमान ज्यादा दिन रंगबहादुर के पास रही नहीं. देखते ही देखते खोपीरा गांव के मुखिया ने इस संगठन की कमान संभाल ली. नाम था ब्रह्मेश्वर सिंह, जिन्हें इलाके में बरमेसर मुखिया के नाम जाना जाता था.

1994 में शुरू हुए इस संगठन ने दो साल के भीतर इलाके में अपनी दहशत कायम करना शुरू कर दिया. 1996 में भोजपुर के नदी गांव में 9 दलितों की हत्या कर दी. इसके बाद भोजपुर के ही बथानी टोला में हुई 22 दलितों की हत्या ने इस संगठन को राष्ट्रीय स्तर पर चर्चा का विषय बना दिया. 1997 में इस संगठन ने लक्ष्मणपुर-बाथे में 61 दलितों को मौत के घाट उतार दिया. यह रणवीर सेना का अब तक अंजाम दिया गया सबसे बड़ा नरसंहार था.

लक्ष्मणपुर बाथे नरसंहार के समय सूबे में लालू प्रसाद यादव की सरकार हुआ करती थी. केंद्र में अटल बिहारी वाजपेयी प्रधानमंत्री हुआ करते थे. लक्ष्मणपुर-बाथे में एक के बाद एक दौरे होने लगे. इधर रणवीर सेना की हिंसक गतिविधियां जारी रहीं. 1998 में भोजपुर के नगरी में 10 दलितों को मौत के घाट उतार दिया. 1999 में जहानाबाद के शंकरबीघा में 23 दलितों को मारा गया. इसी साल जहानाबाद के नारायणपुर और गया के सेंदनी में दो दर्जन दलित रणवीर सेना की गोलियों का शिकार बने.
29 अगस्त, 2002 के रोज ब्रह्मेश्वर मुखिया और पुलिस के बीच चल रही 6 साल की लुकाछुपी खत्म हुई. पुलिस ने उन्हें पटना की एग्ज़ीबीशन रोड से गिरफ्तार कर लिया. उन पर 227 लोगों की हत्या के मामले में 22 मुकदमे चले. 9 साल जेल में रहने के दौरान इनमें से 16 मुकदमों में उन्हें साक्ष्यों के अभाव में बरी कर दिया गया. इसके बाद मुखिया के वकीलों ने अदालत में कहना शुरू कर दिया कि उनके मुवक्किल पर कायम किए गए मुकदमे फर्जी हैं. इसी आधार पर उन्हें मई 2011 में 9 साल की कैद के बाद जमानत पर रिहा कर दिया गया.

ब्रह्मेश्वर मुखिया जेल से छूटने के बाद सियासत की दुनिया में पैर जमाने के गुंतारे में जुटे हुए थे. उन्होंने ‘राष्ट्रवादी किसान सभा’ नाम से नया संगठन भी खड़ा किया था. वो गांधीवादी तरीके से किसानों के लिए संघर्ष करने की बात कह रहे थे. जेल से छूटने के बाद वो नए अवतार में थे. उनके सुर सियासी थे और इसने उनके ही समाज के कई सियासी महत्वाकांक्षा रखने वाले लोगों को असहज कर दिया था.

अप्रैल 2012 में बथानी-टोला मुकदमे का फैसला आया. ब्रह्मेश्वर मुखिया को इस मुकदमे में भी सबूतों के अभाव में रिहा कर दिया गया. बथानी टोला केस में उनके बरी होने के बाद बिहार का सियासी माहौल बदलना शुरू हो गया था. कभी रणवीर सेना के खिलाफ हथियार लेकर खड़ी भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी-लेनिनवादी) लिब्रेशन ने उनकी रिहाई के खिलाफ आरा में ‘न्याय सभा’ की. इस सभा में उमड़ी भीड़ ने जातिगत ध्रुवीकरण के संकेत देने शुरू कर दिए.
2012 की पहली जून
ब्रह्मेश्वर मुखिया को सुबह जल्दी उठने की आदत थी. वो रोज सुबह वो मॉर्निंग वॉक के लिए जाते थे. 1 जून 2012 की सुबह भी ऐसी ही थी. सो 4 बजकर 15 मिनट पर वो आरा के अपने घर से निकले. वो अभी 200 मीटर ही चल पाए थे कि एक अज्ञात हमलावर ने उनके शरीर में तीन गोली दाग दीं.

इस हत्या ने बिहार को एक बार फिर से जातिगत संघर्ष के मुहाने पर खड़ा कर दिया. राजधानी पटना और पूरे मध्य बिहार में हत्या के खिलाफ हिंसक प्रदर्शन शुरू हो गए. आरा का दलित छात्रावास हिंसा का शिकार हुआ. पटना में दर्जनों जगह तोड़-फोड़ की वारदात हुई. पुलिस ने अनुसंधान के क्रम में 8 लोगों के विरुद्ध चार्जशीट दाखिल किया था. हत्या के 7 दिन बाद ही बिहार सरकार ने मामले की सीबीआई जांच की सिफारिश कर दी.

सीबीआई ने जुलाई 2013 में इस मामले की जांच अपने हाथ में ली. इससे पहले बिहार पुलिस की स्पेशल इन्वेस्टिगेशन टीम इस मामले की जांच कर रही थी. एसआईटी ने अगस्त 2012 में प्रिंस नाम के एक शूटर को रांची से गिरफ्तार किया था. सीबीआई पिछले 7 साल से इस मामले की जांच कर रही है. फिलहाल इस मामले में कोई ठोस नतीजा नहीं निकला है. 2016 में जमुई से नन्दगणेश पांडेय उर्फ़ फौजी पांडेय की गिरफ्तारी के अलावा सीबीआई के पास इस मामले में बताने लायक कुछ भी नहीं है. कुल मिलाकर सीबीआई अब तक किसी भी नतीजे पर नहीं पहुंची है.