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NGO वाले उठा ले गए, नहीं दे रहे वापस, अपनी 2 साल की बेटी को गले लगाने के लिए तरस रहा कपल

 

हर व्यक्ति की यही चाहत होती है कि वह जीवन में खूब सफलता पाए और तरक्की करें. उसके पास वो सब कुछ हो जिसका उसने सपना देखा था. ऐसे ही अपने उज्वल भविष्य का सपना लेकर एक दंपत्ति भारत से जर्मनी गए थे लेकिन उन पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा. दंपति की दुनिया उस वक्त बिखर गई जब पहली बार मां-बाप बने धरा शाह और भावेश शाह की सात महीने की बच्ची अरिहा शाह को जर्मनी के चाइल्ड केयर संस्था के लोग अपने साथ लेकर चले गए. बेबी अरिहा शाह पिछले दो सालों से वहीं हैं.

जी हां  गुजरात का एक दंपति पिछले डेढ़ साल से अपनी बच्ची से हजारों मील की दूरी पर है और उससे मिलने की गुहार लगा रहा है. अहमदाबाद के भावेश और धारा हिंदुस्तान में हैं जबकि उनकी दो साल की बेटी अरिहा जर्मनी में है.

जानकारी के मुताबिक सात महीने की अरिहा जब खेल रही थी तब उसके प्राइवेट पार्ट में चोट लग गई थी. जिसकी वजह से धरा और भावेश बच्चे को अस्पताल लेकर गए जहां उनपर आरोप लगा कि बच्ची का यौन शोषण हुआ है. जिसके बाद अरिहा को फोस्टर केयर भेज दिया गया. भावेश पेशे से सॉफ्टवेयर इंजीनियर है. उन्होंने इस बात की रिपोर्ट पुलिस में कराई, जिसके बाद अस्पताल और पुलिस रिपोर्ट ने इस बात की पुष्टि की कि अरिहा के साथ कोई यौन उत्पीड़न नहीं हुआ, लेकिन फिर भी अरिहा को चाइल्ड केयर संस्था ने नहीं दिया. उन्होंने अरिहा को यह कहकर रखा है कि उसके सॉफ्टवेयर इंजीनियर पिता भावेश और मां धरा बच्चे की अच्छी देखभाल नहीं कर सकते हैं. 

बता दें कि सितंबर 2021 के बाद से ही यह परिवार अरिहा की कस्टडी के लिए कानूनी जंग लड़ रहा है. यह दंपति बीते डेढ़ साल से गुहार लगा रहा है कि उन्हें उनकी बेटी लौटा दी जाए, लेकिन पीड़ित परिवार को कोई उम्मीद की किरण नजर नहीं आ रही है.  कोर्ट के आदेश के बावजूद जर्मनी की चाइल्ड केयर संस्था को बच्चे की कस्टडी देनी थी, लेकिन चाइल्ड केयर संस्था की मनमानी के चलते ऐसा नहीं हुआ. 

क्या है मामला ये भी जान लीजिये भावेश सॉफ्टवेयर इंजीनियर हैं, जबकि धारा हाउस वाइफ हैं. 2018 से बर्लिन में जॉब कर रहे हैं. 2021 में बेटी का जन्म हुआ. 10 महीने पहले बिटिया के नाना-नानी नातिन से मिलने पहुंचे. एक दिन बच्ची के प्राइवेट पार्ट में किसी वजह से चोट लगी. खून बहने लगा. धारा उसे लेकर लोकल हॉस्पिटल गईं. डॉक्टरों ने उनसे कहा कि बच्चों में इस तरह की चोट सामान्य है.

इसके बाद धारा बेटी को घर ले आईं. दूसरे दिन भी ब्लीडिंग नहीं रुकी तो वो बच्ची को फिर हॉस्पिटल लेकर गईं. अस्पताल के स्टाफ ने चाइल्ड प्रोटेक्शन टीम को मामले की जानकारी दी. इसके अफसरों को पहली नजर में मामला सेक्शुअल एब्यूज का लगा. बच्ची को इसी डिपार्टमेंट के हवाले कर दिया गया. खास बात यह है कि जांच में यौन उत्पीड़न की बात साबित नहीं हुई.

सेक्शुअल एब्यूज की बात साबित न होने के बावजूद बच्ची को भावेश और धारा के हवाले नहीं किया गया. उनसे साबित करने को कहा गया कि वे बच्ची को पालने के काबिल हैं. इसके लिए ‘फिट टू बी पेरेंट्स’ सर्टिफिकेट लाना होता है. धारा-भावेश इस सर्टिफिकेट को पाने के लिए लीगल अथॉरिटी के दो सेशन अटैंड कर चुके हैं, लेकिन 'फिट टू बी पेरेंट्स' की लीगल प्रोसेस अब तक खत्म नहीं हुई है.

यह दंपति बीते कई महीनों से गुहार लगा रहा है कि उन्हें उनकी बेटी लौटा दी जाए. लेकिन ना भारत सरकार उनकी सुन रही है और ना ही जर्मनी सरकार से उन्हें मदद मिल पा रही है. ऐसे में बायकॉट जर्मनी सोशल मीडिया पर ट्रेंड कर रहा है. जर्मनी सरकार पर बच्ची अरिहा को बंधक बनाकर फोस्टर केयर होम में रखने के भी आरोप लग रहे हैं.