News Haat Special : जातिगत जनगणना मोदी सरकार के लिए जरूरी भी और मजबूरी भी, आगे भी कई चुनौतियाँ कर रहीं इंतजार

केंद्र की मोदी सरकार ने देश में जातिगत जनगणना कराने का फैसला लिया है. बुधवार को कैबिनेट की बैठक में इसे मंजूरी मिली. केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने बताया कि इसे मूल जनगणना के साथ ही कराया जाएगा। ऐसे कयास भी हैं कि इस साल के आखिरी तक यह हो भी जाएगा. हालांकि केंद्र सरकार की तरफ से कोई तारीख नहीं बताई गई है. इसको लेकर भी विपक्षी दल सवाल उठा रहे हैं. लेकिन बड़ा सवाल यह कि आखिर मोदी सरकार को देश में जातिगत जनगणना कराने का फैसला क्यों लेना पड़ा? इसका जवाब यही है कि यह फैसला मोदी सरकार के लिए जरूरी और मजबूरी दोनों बन गया है.
विपक्ष के साथ सहयोगियों का बढ़ता दबाव
पिछले लोकसभा चुनाव के समय भी विपक्ष ने जातिगत जनगणना को बड़ा मुद्दा बनाया. भाजपा इसपर खुलकर कोई स्टैंड नहीं ले सकी. जिससे यह परसेप्शन बना कि वह जातिगत जनगणना चाहती ही नहीं है. भाजपा का पूर्ण बहुमत तक ना पहुंच पाने में भी इस परसेप्शन की भूमिका रही. पीएम मोदी ने सिर्फ चार जातियों(गरीब, महिला, युवा और किसान) वाला बयान देकर इसकी काट खोजने की कोशिश भी की लेकिन सफल नहीं हुए. चूंकि जातिगत जनगणना का तार आगे जाकर आरक्षण की सीमा से भी जुड़ना है, इसलिए ऐसे वर्ग जिन्हें ऐसा लगता है कि संख्या के हिसाब से उनको भागेदारी नहीं मिल रही है, उनकी नाराजगी को भी केंद्र सरकार की चुप्पी ने बढ़ाया हुआ था. इसमें OBC समाज के ऐसे भी लोग शामिल हैं जो भाजपा के कोर वोटर कहे जाते हैं. विपक्षी दलों के नेता जातिगत जनगणना को लेकर सरकार पर दबाव बना रहे थे. इधर भाजपा के सहयोगी दल भी इस मांग को जायज ठहरा रहे थे. इन सब कारणों ने मोदी सरकार को मजबूर किया कि वह जातिगत जनगणना अपना पक्ष साफ करें और जातिगत जनगणना कराए.

विपक्षियों का सबसे तेज हथियार छिना
जातिगत जनगणना के मुद्दे को विपक्षियों ने तेज हथियार के रूप में प्रयोग किया. जिससे मोदी सरकार चोट खा रही थी. इस हथियार से लड़ने से बेहतर यही था कि छीन लिया जाए. वही काम जातिगत जनगणना का फैसला लेकर मोदी सरकार ने किया है. विपक्षी दल राज्यों के विधानसभा चुनाव के घोषणा पत्र में भी जातिगत जनगणना को सबसे बड़े वादे के रूप में प्रयोग कर रही है. कांग्रेस ने कर्नाटक और तेलंगाना जैसे राज्यों में सरकार बनने के बाद इस वादे को पूरा भी किया. बिहार में जब महागठबंधन की सरकार थी तब जातिगत जनगणना कराया गया. इस मुद्दे पर विपक्षियों के उभार को रोकने के लिए मोदी सरकार ने बड़ा मास्टरस्ट्रोक चल दिया है. यह संदेश भी दे दिया है कि सरकार जातिगत जनगणना के खिलाफ नहीं है. अब विपक्षियों को जातिगत जनगणना जैसा मुद्दा खोजने और उसे बड़ा बनाने में समय लगेगा इस बीच कई राज्यों के चुनाव में भाजपा इसका फायदा उठा सकती है. अबतक जातिगत जनगणना के मुद्दे को लेकर विपक्ष एक सुर में एकजुट दिखा है, अब उनके बीच भी क्रेडिट को लेकर दावेदारी की होड़ मची हुई है. यानि मोदी सरकार ने अपरोक्ष रूप से विपक्षी एकजुटता को भी चोट पहुंचाई है.
जातिगत जनगणना के फैसले के बाद मोदी सरकार की चुनौतियां
मोदी सरकार ने जातिगत जनगणना का फैसला तो कर लिया लेकिन उसे अभी कई चुनौतियों का सामना भी करना पड़ सकता है. यह घोषणा तो कर दी गई कि मूल जनगणना के साथ जातिगत जनगणना भी कराई जाएगी लेकिन समय नहीं बताया है. नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी ने भी समय लेकर सवाल खड़ा किया. सवाल यह भी उठाया गया कि इसे कराने का मॉडल कौन सा होगा? जातिगत जनगणना की रिपोर्ट के बाद आरक्षण की सीमा बढ़ाने की मांग भी जोर पकड़ेगी. जिसकी बानगी अभी से दिखने लगी है. 50 प्रतिशत के आरक्षण वाले बैरियर को तोड़ना भी मोदी सरकार के लिए बड़ी चुनौती होगी. यदि वो ऐसा नहीं करती है तो विपक्ष इसे मुद्दा बनाएगा और अगर कर देती है तो कई ऐसे वर्ग जो उसके कोर वोटर हैं, उनकी नाराजगी भाजपा को परेशान कर सकती है. कुछ इसी तरह की परेशानी का सामना कर्नाटक में जातिगत जनगणना करा चुकी कांग्रेस सरकार को करना पड़ रहा है. कर्नाटक में कई ऐसी जातियां जिनकी संख्या पहले किए गए अनुमान की तुलना कम आई है उनमें आरक्षण के प्रतिशत को लेकर घोर असंतोष है. पार्टी के अंदर भी इसको लेकर विरोध के स्वर बुलंद हो रहे हैं. यानि जिस जातिगत जनगणना को कर्नाटक की कांग्रेस सरकार अपनी उपलब्धि मान रही थी वही उसके गले की फांस बन गई है. ये एक उदहारण है जिसपर मोदी सरकार को भी गौर करना पड़ेगा. जातिगत जनगणना के बाद प्राइवेट सेक्टर में आरक्षण देने की मांग भी जोर पकड़ेगी, इनसब पर भी मोदी सरकार को अपने स्टैंड पर विचार करना पड़ेगा.