हिंदी और रूसी साहित्य में मातृभूमि की अवधारणा पर दिल्ली विश्वविद्यालय के भारती कॉलेज में हिंदी और रूसी साहित्य पर दो दिवसीय अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन का सफल समापन
Feb 26, 2025, 21:56 IST

नई दिल्ली, भारत –दिल्ली विश्वविद्यालय के भारती कॉलेज के हिंदी विभाग द्वारा प्रमुख रूसी संस्थानों के सहयोग से हिंदी और रूसी साहित्य का उत्सव मनाने के लिए दो दिवसीय अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन का सफल आयोजन हुआ। यह आयोजन दोनों देशों के विद्वानों, साहित्य प्रेमियों और गणमान्य व्यक्तियों को साझा सांस्कृतिक और साहित्यिक विषयों पर चर्चा करने के लिए एक मंच पर लाया।
सम्मेलन का शुभारंभ उद्घाटन समारोह से हुआ, जिसमें रूसी दूतावास के प्रतिनिधियों, शिक्षकों और विद्वानों ने भाग लिया। प्राचार्या प्रो. सलोनी गुप्ता ने दीप प्रज्वलन के साथ कार्यक्रम का उद्घाटन किया, जिसके बाद छात्राओं द्वारा सरस्वती वंदना और दिल्ली विश्वविद्यालय का कुलगीत प्रस्तुत किया गया। इस कार्यक्रम के दौरान फोटो प्रदर्शनी, पुस्तक प्रदर्शनी, और हस्तशिल्प हाट भी प्रस्तुत कराया गया। जिसके माध्यम से भारत और रूस के बीच सांस्कृतिक और साहित्यिक संबंधों को प्रदर्शित किया गया।
कार्यक्रम की शुरुआत में प्रो. अवनीश अवस्थी (पीजीडीएवी कॉलेज), ने अपने बीज व्यक्तव्य में भारतीय संस्कृति के प्रमुख आराध्य पुरुष राम और कृष्ण के मातृभूमि प्रेम से भारतीय जनमानस में मातृभूमि की अवधारणा को सनातन संस्कृति से उद्घाटित किया। रूसी विद्वान प्रो. वादीम वी. पोलोन्स्की ने साहित्यिक और सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित करने में संग्रहालयों की भूमिका को रेखांकित किया, वही सुश्री यूलिया आर्ययेवा ने हिंदी और रूसी साहित्य के बीच भावनात्मक और साहित्यिक संबंधों पर अपने विचार व्यक्त किया। प्रो. कुमुद शर्मा (प्रमुख, हिंदी विभाग, दिल्ली विश्वविद्यालय) ने मातृभूमि की अवधारणा में "छह माताओं का जिक्र किया। —मां, मातृभूमि, मातृभाषा, गुरु माता, गौ माता, नदी माता।

इस कार्यक्रम के दौरान कई साहित्यिक और सांस्कृतिक नृत्य और गायन की रंगारंग प्रस्तुतियां भी हुई। जिसने दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया। जिसकी प्रस्तुति मृदंग सोसाइटी द्वारा दी गईं, जिनमें रूसी लोक गीत "कट्यूषा," भरतनाट्यम नृत्य, रूसी चम्मच वादन, और रवींद्रनाथ टैगोर की रचना पर आधारित विदाई गीत शामिल थे।
साहित्यिक सत्रों में हिंदी और रूसी साहित्य में आध्यात्मिकता, राष्ट्रवाद, और तुलनात्मक अध्ययन जैसे विविध विषयों पर चर्चा हुई। विद्वानों ने तुलसीदास, जयशंकर प्रसाद और प्रेमचंद जैसे हिंदी साहित्यकारों के साथ-साथ निकोलाई करमजिन और इवान तुर्गनेव जैसे रूसी साहित्यकारों के कार्यों पर विचार-विमर्श किया। चर्चा में नदियों के प्रतीकात्मक महत्व, ऐतिहासिक साहित्य और हिंदी और रूसी कथाओं में मातृभूमि की बदलती अवधारणा पर भी प्रकाश डाला।
इस कार्यक्रम के दौरान भारतीय और रूसी शोध कर्ताओं ने अनेक शोध प्रस्तुत किया जो छात्र और छात्राओं के लिए बहुत ज्ञानवर्धक था।
डॉ. वैलेरिया एवडोकीमोवा ने सर्गेई एसिनिन के कार्यों में भारत के प्रतिनिधित्व पर चर्चा की और इसे सिल्वर एज की कविता से जोड़ा। डॉ. अंजु बाला ने "वंदे मातरम्" (बंकिम चंद्र चटर्जी) और सुभाष चंद्र बोस के भाषणों के संदर्भ में मातृभूमि की आधुनिक व्याख्या का विश्लेषण किया।
अतिरिक्त चर्चाओं में प्रमुख वक्ताओं में डॉ. इलिया जाइत्सेव ने 17वीं से 20वीं शताब्दी के अद्यगे और वेनसाख साहित्य में मातृभूमि की अवधारणाओं का अन्वेषण किया। डॉ. बोरिस ने युद्धकाल के दौरान सांस्कृतिक संरक्षण पर प्रकाश डाला, जिसमें रवींद्रनाथ टैगोर, बुद्ध, कृष्ण और मसीह जैसी अंतर्राष्ट्रीय हस्तियों का उल्लेख किया गया। डॉ. माजे सेलीमोव ने बौद्ध दर्शन के माध्यम से जापानी साहित्य में मातृभूमि के चित्रण पर चर्चा की, जो वैश्विक साहित्यिक परंपराओं पर तुलनात्मक दृष्टिकोण प्रदान करता है।
यह सम्मेलन भारत और रूस के बीच साहित्यिक और सांस्कृतिक संबंधों को मजबूत करने में एक महत्वपूर्ण कदम रहा। विचारोत्तेजक चर्चाओं, प्रदर्शनियों और प्रस्तुतियों के माध्यम से इस आयोजन ने राष्ट्रवाद, अस्मिता, और जुड़ाव जैसे विषयों को उजागर किया और दोनों देशों के साहित्यिक और शैक्षणिक समुदायों के बीच भविष्य के सहयोग का मार्ग प्रशस्त किया। इस तरह पहले दिन का कार्यक्रम समाप्त हुआ।
दूसरे दिन कार्यक्रम की शुरूआत विचारोत्तेजक अकादमिक चर्चाओं से हुआ जिसमें प्रो मंजू मुकुल कांबले और प्रो पुरनचंद टंडन ने मातृभूमि की अवधारणा में अनुवाद का महत्व और अनुवाद करते दौरान सांस्कृतिक विभिन्ताओं की ओर ध्यान देने पर जोर दिया। अन्य सत्रों में नाटक और रंगमंच और गद्य की अन्य विद्याओं में अभिव्यक्त मातृभूमि की अवधारणा पर चर्चा हुई तथा विद्वानों, विशेषज्ञों और युवा शोधकर्ताओं ने अपने विचार व्यक्त किया। कार्यक्रम के दूसरे दिन विभिन्न सत्रों में साहित्यिक अनुवाद, नाट्य कला और भारतीय और रूसी साहित्यिक परंपराओं में देशभक्ति पर अंतर-विषयी दृष्टिकोणों पर आधारित सत्र आयोजित किए गए।
दूसरे दिन का मुख्य आकर्षण रूसी वसंत उत्सव "मास्लेनित्सा” था। यह पारंपरिक रूसी त्योहार, जो वसंत के आगमन और सर्दी को विदा करने का प्रतीक है, रूसी एम्बेसी स्कूल के सहयोग से आयोजित किया गया। इस उत्सव ने खुशी और सांस्कृतिक आदान-प्रदान का माहौल तैयार किया, जहां छात्रों और शिक्षकों ने रूसी लोक खेलों, पैनकेक दावतों और रूसी मेहमानों के साथ विचार विमर्श किया।
खेलों में गोरोदकी (एक पारंपरिक रूसी खेल), रस्साकशी और बोरी दौड़ शामिल थे, जिससे मनोरंजन के साथ साथ और सहयोगात्मक प्रतिस्पर्धा का भी माहौल बना रहा। भारती कॉलेज के छात्राओं ने रूसी मेहमानों के साथ गर्मजोशी से बातचीत की और अपनी-अपनी संस्कृतियों, परंपराओं और त्योहारों के बारे में कहानियां साझा कीं। माहौल हंसी, संगीत और उत्सव से भरा हुआ था, जहां छात्राओं ने रूसी रीति-रिवाजों का वास्तविक अनुभव किया और साथ ही भारतीय वसंत उत्सवों जैसे बसंत पंचमी और होली की झलक साझा कीं।
दोनों दिन के आयोजन का प्रमुख आकर्षक सांस्कृतिक प्रस्तुतियां रहीं। जिसमें रूसी और भारतीय लोक नृत्य, शास्त्रीय संगीत और भारती कॉलेज की नॉर्थ ईस्टर्न सोसायटी द्वारा नृत्य प्रदर्शन किया गया। इन कलात्मक प्रस्तुतियों ने सांस्कृतिक मिश्रण की भावना को खूबसूरती से उजागर किया और भारत और रूस के बीच कहानी कहने, लय और कलात्मक अभिव्यक्ति के प्रति साझा प्रेम को रेखांकित किया।
शैक्षणिक संवाद और सांस्कृतिक उत्सव का यह समृद्ध आयोजन मिश्रित साहित्य, अनुवाद और रंगमंच के महत्व को राष्ट्रीय पहचान के निर्माण और अंतर-सांस्कृतिक संवाद को बढ़ावा देने में सफल रहा।