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जमीन सर्वे पर वकीलों ने उठाया सवाल, स्थगित करने की मांग, बोले- सरकार के पास ही जमीन के कागजात नहीं

 

बिहार में चल रहे जमीन सर्वे यानी विशेष भूमि सर्वेक्षण की प्रक्रिया पर सवाल उठने लगे हैं। पटना हाई कोर्ट के वकीलों ने कई गंभीर आरोप लगाते हुए जमीन सर्वे पर सवालिया निशान खड़े कर दिए हैं। हाईकोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता योगेश चंद वर्मा और कृष्णा प्रसाद सिंह ने गुरुवार को मीडिया से कहा कि जमीन सर्वे के नाम पर लोगों को आर्थिक रूप से प्रताड़ित किया जा रहा है। जमीन मालिकों से कागजात मांगे जा रहे हैं, जबकि सरकार के पास ही भूमि का कागजात नहीं हैं।

वकीलों ने कहा कि कैडेस्ट्रल एवं रीविजनल सर्वे के बाद देश आजाद होने पर जमींदारों ने जमीन का रिटर्न दाखिल किया था। उसमें जमीन किसके पास है, उसका पूरा ब्योरा है। मगर आज कई जिलों में जमींदारों के रिटर्न उपलब्ध नहीं हैं। कई प्रखंड में जमाबंदी रजिस्टर-दो का पन्ना गायब या फटा हुआ है। सबसे पहले सरकार को जमींदारों के रिटर्न को सार्वजनिक करना चाहिए, ताकि लोगों को पता चल सके कि 1950 में जमीन किसके पास थी।

उन्होंने आगे कहा कि अभी रीविजनल सर्वे के बाद तैयार खतियान को आधार माना जा रहा है। जबकि रीविजनल सर्वे के बाद जमीन की बिक्री हो चुकी है और खतियान में नाम के आधार पर लोग जमीन पर अपना दावा ठोक रहे हैं। जिस जमीन पर दावा ठोका जा रहा है, उसे पूर्वजों ने बेच दिया है।

हाई कोर्ट के अधिवक्ताओं ने कहा कि जो लोग अपने गांव में नहीं रहते हैं, उनकी जमीन को अगल-बगल के भू-मालिकों ने अतिक्रमित कर लिया है। ऐसे में सरकार के जमीन के एरियल सर्वे में वास्तविक भूमि के बजाय कम जमीन दिखाई देगी और रीविजनल सर्वे के दौरान बना नक्शा जमीन की मापी कुछ और होगी। वर्तमान में चल रहे जमीन सर्वे का काम जल्दबाजी में उठाया गया कदम है। ऐसे इसे तत्काल प्रभाव से स्थगित कर देना चाहिए। पहले कर्मचारियों के जरिए राजस्व रिकॉर्ड जिसमें खतियान, वंशावली, रजिस्टर-दो और जमीन राजस्व रसीद आदि को दुरुस्त और अपडेट किया जाना चाहिए। उसके बाद भूमि सर्वे का काम होना चाहिए।