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पूर्णिया लोकसभा सीट: पप्पू दो बार निर्दलीय जीते, प्रचंड मोदी लहर में संतोष ने नहीं खिलने दिया कमल, मैदान में पहली बार बीमा, देखिए लेखा-जोखा

 

लेखक- अनिकेत पाठक 

बिहार के सिमांचल क्षेत्र में चार लोकसभा की सीटें हैं। जिसमें से तीन पर दूसरे चरण में यानी 26 अप्रैल को मतदान होना है। ये तीन सीटें पूर्णिया, किशनगंज और कटिहार है। इसमें सबसे ज्यादा चर्चा में पूर्णिया सीट की हो रही है। क्योंकि यहां की लड़ाई बहुत ही रोमांचक है। इस खबर में आज पूर्णिया लोकसभा सीट इतिहास से लेकर वर्त्तमान राजनीतिक स्थिति पर विस्तार से नजर डालेंगे। वही पूर्णिया सीट जिसपर कभी कांग्रेस का एकक्षत्र राज हुआ करता था। लेकिन समय के साथ इस सीट की सियासत और समीकरण में बड़ा उलटफेर हुआ। पूर्णिया ऐसी सीट रही है जहाँ 2014 के प्रचंड मोदी लहर में भी कमल नहीं खिल सका था। वहीं 2019 में ये सीट जदयू के खाते में जमा हो गई। इसबार लड़ाई त्रिकोणीय होने जा रही है।

कांग्रेस के एकक्षत्र राज से JDU के राज तक 

पूर्णिया बिहार की यह सबसे पुरानी लोकसभा सीटों में से एक है। यहां से पहले सांसद के रूप में कांग्रेस के फणि गोपाल सेन गुप्ता रहे हैं। वो 1957 से 1967 तक यहाँ से सांसद रहे। उनके बाद 1971 में भी कांग्रेस के मोहम्मद ताहिर ने यहाँ से जीत हासिल की।1977 में कांग्रेस को यह सीट गंवानी पड़ी। तब भारतीय लोक दल के उम्मीदवार लखन लाल कपूर यहाँ से सांसद चुने गए थे। हालांकि 1980 और 1984 में फिर माधुरी सिंह इस सीट पर फिर से कांग्रेस का परचम बुलंद किया। वही 1989 में यह सीट जनता दल के हिस्से चली गई और मोहम्मद तस्लीमुद्दीन सांसद बने। 1991 में यहां से निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ रहे पप्पू यादव सांसद बने।

1996 में एक बार फिर पप्पू यादव ने चुनाव जीता पर इसबार उन्होंने समाजवादी पार्टी की उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ा था। 1998 में पहली बार भाजपा ने जीत हासिल की। भाजपा उम्मीदवार जय कृष्ण मंडल सांसद चुने गए। निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में पप्पू यादव ने 1999 में फिर से वापसी की। उसके बाद 2004 और 2009 में भाजपा के उदय सिंह यहां से सांसद बने। 2014 और 2019 में जदयू के संतोष कुशवाहा ने जीत हासिल की।

प्रचंड मोदी लहर में भी नहीं खिला कमल, JDU का दांव मजबूत

2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा के नेतृत्व वाले NDA ने शानदार प्रदर्शन किया था। उस वक्त जदयू न तो NDA का हिस्सा थी न ही महागठबंधन का। जदयू ने लगभग सभी सीटों पर अकेले चुनाव लड़ा था। लेकिन सिर्फ दो ही सीट जीत सकी थी। उसी में एक सीट पूर्णियां की भी थी। पिछले दो बार से लगातार जीत दर्ज कर रहे भाजपा के उम्मीदवार उदय सिंह को 2014 में जदयू उम्मीदवार संतोष कुशवाहा ने पटखनी दे दी। मतलब प्रचंड मोदी लहर में भी इस सीट पर कमल नहीं खिल सका।

इसका प्रभाव ही था कि 2019 के लोकसभा चुनाव में जब जदयू और भाजपा साथ थे तो ये सीट जदयू उम्मीदवार को ही दी गई। इससे नाराज होकर पूर्व सांसद उदय सिंह ने भाजपा से इस्तीफा देकर कांग्रेस से चुनाव लड़ा। लेकिन जदयू के संतोष कुशवाहा ने दोबारा इस सीट पर वापसी की। लगातर दो बार की जीत ने जदयू के संतोष कुशवाहा का दावा मजबूत कर दिया। यही कारण रहा कि इस बार भी एनडीए में ये सीट जदयू के खाते में आई और संतोष कुशवाहा एक बार फिर चुनावी मैदान में हैं। एनडीए के लिए इस सीट का महत्त्व इसी से समझा जा सकता है कि पीएम मोदी ने बिहार में दूसरे चरण का चुनाव प्रचार सिर्फ एक सीट पर किया और वो सीट पूर्णिया रही।

RJD ने कांग्रेस से ली सीट और JDU से लिया उम्मीदवार 

पूर्णिया में काफी समय तक कांग्रेस का दबदबा रहा। लगातार कांग्रेस के उम्मीदवार यहाँ से चुनाव लड़ते भी रहे। इस बार I.N.D.I.A गठबंधन की सीट शेयरिंग में कांग्रेस से निकलकर ये सीट राजद के खाते में आ गई या यूं कहे कि राजद ने कांग्रेस से ले ली। राजद ने सीट कांग्रेस से ले ली और उम्मीदवार के लिए जदयू में सेंध लगा दी। जदयू की पूर्व विधायक बीमा भारती को राजद में शामिल करा उन्हें लालू यादव ने सिंबल भी सौंप दिया। बता दें कि बीमा भारती रुपौली से जदयू की विधायक थी वो नीतीश सरकार में मंत्री भी रह चुकी हैं। जदयू  छोड़ने के साथ ही उन्होंने विधायक के पद से इस्तीफा भी दे दिया। राजद की तरफ से बीमा भारती की जीत के लिए पूरी ताकत झोंक दी गई है। इसका अंदाजा इसी से लगा सकते हैं कि बीमा के नामांकन में भी तेजस्वी यादव पहुंचे थे। वहीं राजद के कई बड़े नेता पूर्णिया में कैंप किए हुए हैं। 

पप्पू यादव ने कड़ा किया मुकाबला, बना दिया त्रिकोणीय मुकाबला 

पूर्णिया की चुनावी लड़ाई में पप्पू यादव की एंट्री ने मुकाबला कड़ा कर दिया है। अपने जन अधिकार पार्टी के बैनर तले वो लंबे समय से पूर्णिया में अपने पक्ष में माहौल बनाने में लगे हुए थे। I.N.D.I.A गठबंधन में सीट शेयरिंग से पहले पप्पू यादव ने कांग्रेस में अपनी पार्टी का विलय कर दिया। हालांकि इससे पहले उन्होंने लालू यादव से मुलाक़ात की थी। पप्पू यादव की माने तो लालू यादव ने उन्हें पूर्णिया छोड़ मधेपुरा या सुपौल से चुनाव लड़ने का ऑफर दिया था लेकिन पप्पू की सारी तैयारी पूर्णिया में थी इसलिए उन्होंने ऑफर ठुकरा दिया। कांग्रेस में पार्टी का विलय पप्पू ने इस उम्मीद के साथ की कि पूर्णिया सीट कांग्रेस के हिस्से ही आएगी। लेकिन यहीं पप्पू यादव बड़ी चुक कर गए। उनका अनुमान गलत निकला और ये सीट राजद के खाते में चली गई। ऐसे में पप्पू यादव ने निर्दलीय चुनाव मैदान में कूद पड़े। उन्होंने अपना सारा दर्द एक चुनावी सभा में रो-रोकर  सुनाया भी और राजद पर धोखा देने का आरोप भी लगाया। बता दें कि पप्पू यादव तीन बार पूर्णिया से सांसद रहे हैं। जिसमें से 2 बार उन्होंने निर्दलीय और एक बार समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार के तौर पर जीत हासिल की थी। इस बार लड़ाई जदयू के संतोष कुशवाहा, राजद की बीमा भारती और निर्दलीय पप्पू यादव में है। 

पूर्णिया लोकसभा का जातीय समीकरण 

पूर्णिया में कुल 17 लाख मतदाता हैं। जिसमें यादव और मुस्लिम सबसे अधिक हैं। मुस्लिम मतदातों की संख्या करीब 7 लाख के करीब है। वहीं यादव की संख्या करीब 1.5 लाख है। इसके अलावे अतिपिछड़ा 2 लाख, दलित-आदिवासी 4 लाख, ब्राह्मण 1 से 1.5 लाख और राजपूत भी 1 से 1.5 लाख के करीब है। पप्पू यादव के निर्दलीय मैदान में होने से राजद का MY समीकरण प्रभावित हो सकता है। हालांकि राजद उम्मीदवार बीमा भारती ईबीसी समाज से आती है ये उनके लिए एक प्लस प्वाइंट हो सकता है। वही जदयू उम्मीदवार संतोष कुशवाहा की तरफ पिछड़ा सहित सवर्ण वोटरों का झुकाव हो सकता है।

AIMIM किसका देगी साथ? 

चूँकि पूर्णिया में मुस्लिम वोटर काफी निर्णायक भूमिका में रहते है। इसलिए उनका झुकाव इस बार किस तरफ होगा ये बड़ा सवाल है। हालांकि वो राजद के कोर वोटर माने जाते हैं लेकिन सिमांचल में AIMIM की एंट्री से राजद के कोर वोटर में कुछ सेंधमारी जरुर हुई है। इस बार AIMIM  ने पहले तो पूर्णिया से उम्मीदवार उतारने का ऐलान किया था। लेकिन मुकाबला त्रिकोणीय होते ही AIMIM  बैकफूट पर चली गई। AIMIM  ने पूर्णिया में चुनाव लड़ने  के बजाये  समान विचारधारा व सांप्रादायिक ताकतों से लड़ने वाले उम्मीदवार को अपना समर्थन देने का ऐलान किया है। हालांकि वो उम्मीदवार पप्पू, बीमा और संतोष में से कौन है ये कहना मुश्किल है। इसलिए पूर्णिया की लड़ाई में  AIMIM किसके साथ होगी इसका भी प्रभाव बड़ा हो सकता है।

पूर्णिया लोकसभा के विधानसभा सीटों पर भी एनडीए मजबूत 

पूर्णिया लोकसभा क्षेत्र में आने वाले विधानसभा क्षेत्र के बारे में जान लेते हैं।पूर्णिया लोकसभा क्षेत्र में कुल छह विधानसभा सीट हैं। जिसमें से 3 सीट पर भाजपा का कब्ज़ा है। जबकि 2 सीट पर जदयू(बिमा भारती के इस्तीफा से पहले तक) और 1 सीट कांग्रेस के पास है। कस्बा से कांग्रेस के अफाक आलम, बनमनखी से भाजपा कृष्ण कुमार ऋषि, धमदाहा से जदयू की लेशी सिंह, पूर्णिया से भाजपा के बिजय खेमका, कोढ़ा से भाजपा की कविता पासवान विधायक हैं। रुपौली से जदयू की बीमा भारती विधायक बनी थी लेकिन अब वो ना तो जदयू के साथ हैं और ना ही विधायक हैं।