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अल्प वेतन में ट्रांसफर की मार : समाज कल्याण विभाग का तुगलकी आदेश, संविदा कर्मियों में मचा हाहाकार

समाज कल्याण विभाग ने एक झटके में राज्यभर के करीब ढाई सौ अल्प वेतनभोगी संविदा कर्मियों का तबादला उनके गृह जिले से दूर-दराज जिलों में कर दिया है। इस आदेश ने बाल संरक्षण इकाई में कार्यरत कर्मचारियों के बीच हड़कंप मचा दिया है। ये वही कर्मी हैं जो वर्षों से सीमित संसाधनों में 24 घंटे बच्चों के संरक्षण और देखभाल में जुटे रहते हैं।
विभाग की इस कार्रवाई से सबसे ज्यादा प्रभावित वे संविदा कर्मी हैं, जिन्हें न तो हाउस रेंट मिलता है, न मेडिकल सुविधा। इनका मासिक मानदेय मात्र 14,000 से 30,000 रुपये के बीच है। अब उन्हें अपने गृह जिले से सैकड़ों किलोमीटर दूर जाकर काम करने का फरमान सुना दिया गया है, जिससे उनके समक्ष परिवार और नौकरी दोनों के बीच संतुलन बनाए रखना मुश्किल हो गया है।
गौरतलब है कि जब 2017 में इन संविदा कर्मियों की बहाली राज्य बाल संरक्षण समिति के माध्यम से की गई थी, तब विभाग की ओर से यह स्पष्ट निर्देश था कि अल्प मानदेय को देखते हुए कर्मियों की पदस्थापना उनके गृह जिले में ही की जाएगी। लेकिन अब बिना किसी विकल्प या रायशुमारी के अचानक तबादले का आदेश जारी कर दिया गया है।
इस तबादले की सूची में विधि सह पर्यवेक्षण पदाधिकारी, परामर्शदाता, डाटा एनालिस्ट, सामाजिक कार्यकर्ता, हाउस फादर-मदर और पारा-मेडिकल स्टाफ शामिल हैं। विभाग की निदेशक रंजीता और सचिव वंदना प्रेयसी के हस्ताक्षर से जारी इस आदेश को लेकर संविदा कर्मियों में भारी रोष है। वे मंत्री से लेकर मुख्यमंत्री तक अपनी गुहार लगा रहे हैं, लेकिन अभी तक कोई राहत नहीं मिली है।
कई कर्मियों ने मीडिया से बात करने से इनकार कर दिया है क्योंकि उन्हें डर है कि अगर उन्होंने विभाग के खिलाफ कुछ कहा तो नौकरी से निकाला जा सकता है। विभाग की ओर से यहां तक कह दिया गया है कि अगर ट्रांसफर से परेशानी है तो वे नौकरी छोड़ सकते हैं।
संविदा कर्मियों का कहना है कि इतने कम वेतन में अपने परिवार को छोड़कर दूसरे जिले में जाकर नौकरी करना उनके लिए असंभव है। वे चाहते हैं कि उनके तबादले को निरस्त किया जाए और ऐच्छिक या गृह जिले में ही पदस्थापित किया जाए ताकि वे बच्चों के हित में ईमानदारी से काम करते हुए अपने पारिवारिक दायित्वों को भी निभा सकें।
समाज कल्याण विभाग का यह निर्णय प्रशासनिक दृष्टिकोण से भले ही सही ठहराया जा रहा हो, लेकिन मानवीय और व्यावहारिक दृष्टि से यह फैसला संवेदनहीन और अव्यवस्थित प्रतीत होता है। जरूरत है कि सरकार इस मसले को गंभीरता से ले और इन कर्मियों की वास्तविक समस्याओं को समझते हुए उचित निर्णय ले।