सूखे पत्तों से खुले रोजगार के नये रास्ते, ग्रीन कंपोस्ट बना ग्रामीणों की आय का साधन

पेड़ों से गिरने वाले सूखे पत्ते अब लोगों के लिए आमदनी का जरिया बन सकते हैं। आमतौर पर इन पत्तों को बेकार समझकर जला दिया जाता है या फेंक दिया जाता है, लेकिन कम ही लोग जानते हैं कि इन्हें उपयोग में लाकर ग्रीन कंपोस्ट तैयार किया जा सकता है। वन विभाग ने इस दिशा में पहल करते हुए सूखे पत्तों से खाद बनाने की योजना बनाई है, जिससे लोग अच्छी कमाई कर सकते हैं।
लातेहार और पलामू में शुरू हुई पहल
लातेहार और पलामू में सॉलिड एवं वेस्ट मैनेजमेंट कार्यक्रम के तहत ग्रीन कंपोस्ट तैयार करने की योजना चलाई जा रही है। पलामू टाइगर रिजर्व प्रबंधन ईको डेवलपमेंट समिति (ईडीसी) के माध्यम से इन सूखे पत्तों को खरीदकर ग्रीन कंपोस्ट बना रहा है। वहीं, लातेहार में ग्रामीणों को इस तकनीक के बारे में जागरूक किया जा रहा है ताकि वे स्वयं भी कंपोस्ट तैयार कर सकें। बाजार में ग्रीन कंपोस्ट की कीमत 10 से 30 रुपये प्रति किलो तक होती है, जिससे यह ग्रामीणों के लिए कमाई का बेहतर साधन बन सकता है।

पर्यटन स्थलों और सड़कों के किनारे से पत्ते इकट्ठा कर सकते हैं ग्रामीण
ग्रीन कंपोस्ट बनाने के लिए ग्रामीण सड़क किनारे और पर्यटन स्थलों पर गिरे पत्तों को इकट्ठा कर सकते हैं। इन पत्तों को बेचने के लिए ईडीसी के माध्यम से एक खरीद व्यवस्था भी बनाई जा रही है। हालांकि, संरक्षित वन क्षेत्रों में पत्तों को उठाने पर प्रतिबंध है, लेकिन रिजर्व क्षेत्र के बाहरी हिस्सों और सार्वजनिक स्थलों पर गिरे पत्तों को ग्रामीण आसानी से इकट्ठा कर सकते हैं। इस समय पत्तों को जमा करने की प्रक्रिया जारी है, और जल्द ही एक निश्चित दर तय कर किसानों और ग्रामीणों से इनकी खरीदारी शुरू की जाएगी।
खेती की उपज बढ़ाने में कारगर है ग्रीन कंपोस्ट
वन विभाग ने ग्रीन कंपोस्ट तैयार करने के लिए तीन चरणों वाली प्रक्रिया अपनाई है। पहले चरण में सूखे पत्तों को इकट्ठा किया जाता है, फिर उन्हें छोटे टुकड़ों में काटा जाता है और अंत में गोबर से बने विशेष घोल में डालकर ढका जाता है। 90 से 100 दिनों में यह पत्ते पूरी तरह जैविक खाद में परिवर्तित हो जाते हैं। इस ग्रीन कंपोस्ट से मिट्टी की उर्वरक क्षमता बढ़ती है और फसलों की पैदावार में सुधार आता है।
आगजनी रोकने और रोजगार बढ़ाने की रणनीति
हर साल ठंड खत्म होते ही पतझड़ का मौसम शुरू होता है और इसी दौरान महुआ चुनने का समय भी आता है। अक्सर ग्रामीण पेड़ के सूखे पत्तों में आग लगाकर महुआ बीनते हैं, जिससे जंगलों में आगजनी की घटनाएं होती हैं। लेकिन अब पत्तों के कारोबार से उन्हें रोजगार मिलेगा, जिससे वे इन्हें जलाने के बजाय बेचने को प्राथमिकता देंगे। फिलहाल यह योजना लातेहार और पलामू टाइगर रिजर्व में शुरू की गई है और जल्द ही अन्य इलाकों में भी इसे लागू किया जाएगा। इससे न केवल पर्यावरण सुरक्षित रहेगा बल्कि ग्रामीणों को आय का एक नया जरिया भी मिलेगा।