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विधानसभा नियुक्ति घोटाले में हाईकोर्ट की सख्ती, सीबीआई जांच में सरकार-विधानसभा की भूमिका पर उठे सवाल

झारखंड हाईकोर्ट ने विधानसभा में नियुक्ति और प्रोन्नति घोटाले की जांच सीबीआई को सौंपने का आदेश जारी करने के बाद, 1 अक्टूबर को 116 पृष्ठों का विस्तृत आदेश सार्वजनिक किया। कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि अगर जांच के दौरान राज्य सरकार या विधानसभा सहयोग नहीं करते हैं, तो सीबीआई कोर्ट में इसकी शिकायत कर सकती है। इसके साथ ही न्यायालय ने इस प्रकरण में वर्षों तक न्यायिक आयोग की रिपोर्ट पर चुप्पी साधने और बाद में जनहित याचिका दायर होने पर दूसरा आयोग गठित करने के निर्णय पर गंभीर सवाल उठाए हैं।

उच्च पदस्थ लोगों की भूमिका की होगी जांच
जस्टिस सुजीत नारायण प्रसाद और जस्टिस अरुण कुमार राय की खंडपीठ ने सीबीआई को आदेश दिया है कि विधानसभा में हुई नियुक्तियों और प्रोन्नतियों में बरती गई अनियमितताओं की जांच की जाए। साथ ही इसमें शामिल उच्चपदस्थ व्यक्तियों की भूमिका की भी गहराई से जांच की जानी चाहिए। अदालत ने यह भी निर्देश दिया है कि पैसे लेने से संबंधित सीडी की भी जांच की जाए। इसके अतिरिक्त, सभी संबंधित विभागों को निर्देशित किया गया है कि वे सीबीआई को जांच में पूर्ण सहयोग प्रदान करें और नियुक्ति-प्रोन्नति से संबंधित सभी दस्तावेज उसे सौंपे जाएं।

पहले आयोग की रिपोर्ट पर कार्रवाई के बावजूद दूसरा आयोग क्यों?
हाईकोर्ट ने इस मामले में कई महत्वपूर्ण सवाल उठाए हैं, खासकर पहले आयोग की रिपोर्ट पर कार्रवाई के बावजूद दूसरे आयोग के गठन पर। कोर्ट ने उल्लेख किया कि पहले आयोग की रिपोर्ट के आधार पर अनियमितताओं की पुष्टि हुई थी और कुछ अधिकारियों को सेवानिवृत्त भी कर दिया गया था। ऐसे में दूसरा आयोग क्यों गठित किया गया, यह एक बड़ा सवाल है। कोर्ट ने इस पर राज्य सरकार और विधानसभा की भूमिका को संदेहास्पद बताया है।

सरकार और विधानसभा की भूमिका पर कोर्ट का कड़ा रुख
न्यायालय ने यह भी बताया कि पहले आयोग की रिपोर्ट 2018 में ही सौंप दी गई थी, जिसमें अनियमितताओं की पुष्टि हुई थी। लेकिन सरकार और विधानसभा ने इस पर वर्षों तक कोई कार्रवाई नहीं की। इसके बाद जनहित याचिका दायर होने के बाद ही मामला आगे बढ़ा और दूसरे आयोग का गठन किया गया। कोर्ट ने यह भी सवाल उठाया कि जब पहले आयोग की रिपोर्ट में कार्रवाई की अनुशंसा की गई थी, तो दूसरे आयोग की आवश्यकता क्यों पड़ी?