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झारखंड में आदिवासियों के धर्मांतरण पर हाईकोर्ट सख्त, केंद्र और राज्य सरकार से मांगा जवाब

झारखंड हाईकोर्ट ने शुक्रवार को केंद्र और राज्य सरकार को निर्देश दिया कि राज्य में आदिवासियों के धर्मांतरण के मुद्दे पर जल्द से जल्द जवाब दाखिल करें। अदालत ने कहा कि राज्य के आदिवासियों में अन्य धर्म अपनाने की प्रवृत्ति बढ़ी है, जिससे उनकी जनसंख्या में गिरावट आई है। यह निर्देश कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश सुजीत नारायण प्रसाद और जस्टिस अरुण कुमार राय की खंडपीठ ने सोमा ओरांव द्वारा दायर जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए दिया।

सुनवाई के दौरान अदालत को बताया गया कि राज्य के अंदरूनी क्षेत्रों में आदिवासियों को गुमराह कर, कभी-कभी लालच देकर उनका धर्म परिवर्तन करवाया जा रहा है। खासकर, "चंगाई सभा" जैसे कार्यक्रमों के माध्यम से आदिवासियों को उपचार और आस्था के नाम पर भ्रमित किया जा रहा है, जिससे वे दूसरे धर्म को अपनाने के लिए प्रेरित होते हैं। हालांकि, इस मामले में राज्य और केंद्र सरकार ने अभी तक अदालत में अपना जवाब दाखिल नहीं किया है।

हाईकोर्ट ने मौखिक टिप्पणी करते हुए कहा कि यह मामला आदिवासी समुदाय के अस्तित्व से जुड़ा है और सरकारों को इसे गंभीरता से लेना चाहिए। सरकारी वकील ने अदालत को बताया कि राज्य के विभिन्न जिलों से आदिवासियों के धर्मांतरण से जुड़े आंकड़े जुटाए जा रहे हैं। अदालत ने सरकारों को अपना हलफनामा दाखिल करने का आदेश देते हुए मामले की अगली सुनवाई 5 सितंबर को निर्धारित की।

सुनवाई के दौरान अदालत ने यह भी पाया कि डेनियल डेनिश द्वारा दायर एक अन्य जनहित याचिका में, जो संथाल परगना क्षेत्र में बांग्लादेशी शरणार्थियों की अवैध घुसपैठ से संबंधित है, उसमें भी आदिवासियों के धर्मांतरण का मुद्दा सामने आया है। इसके बाद अदालत ने सोमा ओरांव और डेनियल डेनिश द्वारा दायर दोनों याचिकाओं को एक साथ सुनवाई के लिए संयुक्त कर दिया।