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जेपीएससी घोटाला: काशी विद्यापीठ के ‘गुरुजी’ बने भ्रष्टाचार के ‘सूत्रधार’, बिना लिखित उत्तर पुस्तिकाओं के कई उम्मीदवार बने अफसर

झारखंड लोक सेवा आयोग (जेपीएससी) की दूसरी सिविल सेवा परीक्षा में सामने आए नियुक्ति घोटाले ने राज्य की शिक्षा और प्रशासनिक व्यवस्था पर गहरे सवाल खड़े कर दिए हैं। इस घोटाले को योजनाबद्ध तरीके से अंजाम दिया गया, जिसमें उत्तर पुस्तिकाओं में हेरफेर और साक्षात्कार प्रक्रिया में पक्षपात कर अयोग्य उम्मीदवारों को उच्च पदों पर नियुक्त किया गया।

सीबीआई की जांच में खुलासा हुआ कि इस घोटाले में वाराणसी के महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ के कई शिक्षकों की संलिप्तता रही। इन शिक्षकों ने परीक्षार्थियों के अंकों में हेरफेर और साक्षात्कार में मनमानी कर अयोग्य उम्मीदवारों को चुनने में भूमिका निभाई। राजनीतिक हस्तियों, नौकरशाहों और विधायकों के रिश्तेदारों को फायदा पहुंचाने के लिए चयन प्रक्रिया में बड़े पैमाने पर अनियमितताएं की गईं।

12 वर्षों की सीबीआई जांच
गौरतलब है कि, 2012 में झारखंड हाईकोर्ट के आदेश पर सीबीआई ने इस मामले की जांच शुरू की। यह जांच 12 वर्षों तक चली, जिसके बाद 60 आरोपियों के खिलाफ चार्जशीट दाखिल की गई। इसमें 28 परीक्षार्थी, आयोग के 6 पूर्व अधिकारी और 25 परीक्षक शामिल हैं। सीबीआई ने फोरेंसिक विश्लेषण के आधार पर सिद्ध किया कि कई उम्मीदवार बिना उत्तर लिखे ही अधिकारी बन गए थे।

प्रभावशाली हस्तियों के रिश्तेदारों को लाभ
जांच में यह सामने आया कि तत्कालीन जेपीएससी अध्यक्ष गोपाल प्रसाद सिंह ने अपने पुत्रों को नियुक्त किया। इसके अलावा, जेपीएससी सदस्य शांति देवी, राधा गोविंद नागेश, और पूर्व मंत्री सुदेश महतो सहित कई नेताओं और अधिकारियों ने अपने करीबी रिश्तेदारों के चयन में प्रभाव डाला।

प्रमुख नाम:

-रजनीश कुमार, कुंदन कुमार सिंह (जेपीएससी अध्यक्ष के पुत्र)
-मुकेश कुमार महतो (सुदेश महतो के भाई)
-विनोद राम (शांति देवी के भाई)
-मौसमी नागेश (राधा गोविंद नागेश की पुत्री)
-राधा प्रेम किशोर (विधायक राधा कृष्ण किशोर के भाई)

काशी विद्यापीठ के शिक्षकों की भूमिका
महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ, जो कभी स्वतंत्रता संग्राम का गढ़ था, अब घोटाले के केंद्र में आ गया है। यहां के कई शिक्षकों ने परीक्षार्थियों को अनुचित तरीके से पास कराने में सहायता की। प्रमुख आरोपियों में राजनीति शास्त्र, इतिहास, हिंदी, अर्थशास्त्र और समाज कार्य विभाग के प्रोफेसर शामिल हैं।

कुछ आरोपित शिक्षक:

-प्रो. नंदलाल (राजनीति शास्त्र विभाग)
-डॉ. योगेंद्र सिंह (इतिहास विभाग)
-डॉ. मुनींद्र कुमार तिवारी (हिंदी विभाग)
-प्रो. सुधीर कुमार शुक्ला (कॉमर्स विभाग)
-डॉ. बंशीधर पांडेय (पूर्व परीक्षा नियंत्रक)

परीक्षार्थियों की सूची और बर्खास्तगी
जांच में सामने आए नामों में कई ऐसे परीक्षार्थी शामिल हैं जो बिना योग्यता के उच्च पदों पर पहुंचे। आरोपितों की सूची में कुल 28 परीक्षार्थियों के नाम शामिल हैं, जिनमें राजनीतिक और प्रशासनिक परिवारों के सदस्य प्रमुख हैं। सीबीआई की चार्जशीट के बाद इन नियुक्तियों को रद्द कर दिया गया है।

गौरतलब है कि, जेपीएससी के इस घोटाले ने राज्य की परीक्षाओं में पारदर्शिता की गंभीर कमी उजागर की है। यह मामला सिर्फ भ्रष्टाचार तक सीमित नहीं है, बल्कि एक पूरी व्यवस्था की विश्वसनीयता पर सवाल खड़ा करता है।