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जमशेदपुर पश्चिम के मुस्लिम बहुल क्षेत्रों ने दिया कांग्रेस का साथ, फिर भी कैसे हार गये बन्ना गुप्ता? जानें

जमशेदपुर पश्चिमी विधानसभा चुनाव में कई उतार-चढ़ाव के बाद अंततः सरयू राय ने बड़ी जीत हासिल की। इस सीट पर मुस्लिम बहुल इलाकों में कांग्रेस को भारी समर्थन मिला। ऐसे कई बूथ सामने आए, जहां सिर्फ कांग्रेस के पक्ष में मतदान हुआ और सरयू राय को एक भी वोट नहीं मिला। करीब एक दर्जन ऐसे बूथ रहे जहां सरयू राय को शून्य वोट से संतोष करना पड़ा। दूसरी ओर, हिंदू बहुल इलाकों ने सरयू राय का समर्थन किया और उन्हें निर्णायक बढ़त दिलाई। खासकर सोनारी और कदमा इलाकों ने उनकी जीत को सुनिश्चित किया।

बिष्टुपुर में भी सरयू राय को वोट मिले, लेकिन धातकीडीह जैसे मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में कांग्रेस के उम्मीदवार बन्ना गुप्ता को भारी समर्थन मिला। यहां सरयू राय को केवल 6, 8, या 10 वोट ही मिले। वहीं, एनडीए को सोनारी, कदमा, बिष्टुपुर और साकची जैसे क्षेत्रों में जोरदार बढ़त मिली।

मानगो के हिंदू बहुल इलाकों में मतदाताओं ने समझदारी से मतदान किया और सरयू राय का समर्थन किया, जिससे विपक्षी उम्मीदवार शंभु चौधरी और विकास सिंह पिछड़ गए। हालांकि, डिमना रोड जैसे इलाकों में बन्ना गुप्ता को वोट मिले, लेकिन यह उनकी जीत के लिए पर्याप्त नहीं था।

सोनारी और कदमा बने हार-जीत का पैमाना
2019 के चुनावों में सोनारी में एनडीए को महज 5,000 वोटों की बढ़त मिली थी, लेकिन इस बार यह आंकड़ा 17,000 से 18,000 तक पहुंच गया। कदमा में भी इस बार एनडीए को 8,000 से 9,000 वोटों की बढ़त मिली, जो पिछली बार कांग्रेस के पक्ष में था।

बन्ना गुप्ता की हार का विश्लेषण
बन्ना गुप्ता की हार के पीछे सबसे बड़ा कारण उनके सिपहसालारों की निष्क्रियता मानी जा रही है। उनके कार्यकर्ताओं ने उनके द्वारा किए गए कार्यों को जनता तक नहीं पहुंचाया। खासतौर पर सोनारी और कदमा में कार्यकर्ताओं ने जनता का भरोसा जीतने में विफलता पाई।

इसके अलावा, बन्ना गुप्ता ने अपने विधानसभा क्षेत्र को कुछ ऐसे लोगों के भरोसे छोड़ दिया था, जो उनकी छवि को नुकसान पहुंचा रहे थे। सोनारी, कदमा, बिष्टुपुर और मानगो जैसे इलाकों में उनके निजी संबंधों का भी असर पड़ा। उनके करीबी लोगों ने उनके असली मददगारों से दूरी बना दी, जिससे उनका जनाधार कमजोर हुआ और उन्हें हार का सामना करना पड़ा। वहीं अब बन्ना गुप्ता की हार के बाद कांग्रेस उनके प्रदर्शन की समीक्षा कर रही है। इस हार ने यह साफ कर दिया कि क्षेत्रीय राजनीति में जनता से सीधे जुड़ाव और जमीनी कार्य का कोई विकल्प नहीं है।