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सुधाकर सिंह ने GM-Seed को लेकर केंद्र को लिया निशाने पर

 

बिहार के पूर्व कृषि मंत्री सुधाकर सिंह ने आज दिल्ली के प्रेस क्लब में मीडिया को संबोधित किया। अपने संबोधन में सुधाकर सिंह ने कृषि से संबंधित मुद्दे को उठाया। सुधाकर सिंह ने कहा कि, GM-Seed(Genetic Modified) की खेती भारत में शुरू करने हेतु भारत सरकार के वन एवं पर्यावरण मंत्रालय द्वारा Genetic Engineering Appraisal Committee (GEAC) कमेटी का गठन किया गया है । GEAC द्वारा GM-सरसों की नई प्रभेद DMH-11 किस्म को बीज उत्पादन के लिए मंजूरी दे दी गई है, जिसकी चिंता किसानों के साथ जैव विविधता पर काम करने वाले सामाजिक संगठन, किसान हितो की लड़ाई लड़ने वाले किसान संगठन एवं राजनीतिक दलों की GM-Seed को लेकर रही है । 

पूर्व कृषि मंत्री ने कहा कि, हम देश के आम नागरिक आजादी के 75वें वर्ष में अमृत महोत्सव मनाने का संकल्प लिए हैं । जिस आजादी की लड़ाई के महानायक महात्मा गांधी के नेतृत्व में बिहार के चंपारण में नील की खेती के विरुद्ध ब्रिटिश हुकूमत की अवनिवेशिक विस्तार के तहत वहां  जो नील की खेती हो रही थी इससे वहां के आम-आवाम पीड़ित थे एवं किसान के हितों की रक्षा हेतु जिन उद्देश्य से लड़े थे वह आज पुनः मोनसेटो, कारगिल एवं बायर जैसी बहुराष्ट्रीय कंपनियों के द्वारा भारत के किसानों को पुनः गुलाम बनाने का षड्यंत्र लंबे समय से रचा जा रहा है, जिसका विरोध समय-समय पर आजादी के पूर्व से लेकर आज तक राजनैतिक, कानूनी एवं सामाजिक आंदोलनों के जरिए लड़ी जाती रही है ।

आगे उन्होंने कहा कि, मैं आदरणीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी के घोषित लक्ष्य स्वावलंबी भारत, स्वदेशी भारत, मेक इन इंडिया, स्टार्टअप इंडिया, स्टैंडअप इंडिया की नीतियों एवं सिद्धांतो को ध्वस्त करने वाली योजना GM-सरसों का विरोध करता हूं, साथ ही मैं केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय से मांग करता हूं कि बीज बेचने वाले केंद्रीय आदेश पत्र को वापस ले ताकि भारत स्वावलंबी एवं आत्मनिर्भर बनने की ओर अग्रसर हो सके, साथ ही देश के सभी राज्य सरकारों से अपील करता हूं कि GM-Seed सरसों का विरोध करें एवं गलतफहमी में दिए गए आदेश को वापस लेने का कार्य करें । 

GM-Seed सरसों के बीज उत्पादन करने वालों के द्वारा दिए जा रहे हैं तर्क हास्यास्पद है, जिसका विवरण प्रस्तुत कर रहा हूं,

1. GM-Seed सरसों का उत्पादन अनुमानित 2626 kg/Hec बताया जा रहा है जबकि देश के भीतर विभिन्न सार्वजनिक एवं निजी रिसर्च इंस्टिट्यूट के द्वारा 5 प्रभेद जिसमे ज्यादा उत्पादन देने वाली देसी बीज बाजार में उपलब्ध है। जिसमें प्रमुख रुप से NDDB, DMH-4 प्रभेद जिसका उत्पादन 3012 kg/Hec है। इससे जाहिर हो रहा है कि देश के कृषि नीतियों में विदेशी ताकत जैसे मोनसीटों का हस्तक्षेप बढ़ता जा रहा है क्योंकि GM-Seed की सप्लाई पर करीब 92% भारतीय बाजार पर उसका कब्जा है ।

2. GM-Seed सरसों की दूसरी विशेषता यह बताई जा रही है कि उसके उत्पादन में  पेस्टिसाइड की कम खपत होगी जो कि सरासर तथ्य पर आधारित नहीं है । ऐसा इसलिए कि 2002 में GM-Seed BT-Cotton का वास्तविक उत्पादन के समय कहा गया था कि पेस्टिसाइड का खपत नहीं के बराबर होगा लेकिन वर्तमान तथ्यों के आधार पर यह साबित चुका है कि देसी बीजों के मुकाबले 37% ज्यादा पेस्टिसाइड का खपत BT-Cotton पर हो रहा है । आप सभी इस बात से भिज्ञ है कि देश के भीतर कॉटन उत्पादन करने वाले किसान सबसे अधिक कैंसर से पीड़ित हैं, यहां तक की वहां के गरीब किसानों की सुविधा हेतु कैंसर स्पेशल ट्रेन भारतीय रेलवे द्वारा चलाई जाती है ।

3. GM-Seed के समर्थकों के द्वारा यह बताया जा रहा है कि इससे किसानों की आमदनी बढ़ने में सहायक होगी, इससे बड़ा असत्य कुछ नहीं हो सकता । आप लोग इस बात से अवगत हैं कि देश के भीतर कम कीमत एवं गरीबी की मार से पीड़ित किसान आत्महत्या करते हैं उसका एक बड़ा हिस्सा कॉटन उत्पादन के क्षेत्र से होता है । खासतौर से महाराष्ट्र, पंजाब एवं आंध्र प्रदेश का वह इलाका जहां कॉटन का उत्पादन होता है । वैसे क्षेत्र में किसान सबसे ज्यादा आत्महत्या करते है । 

सुधाकर सिंह ने आगे कहा कि,  सरसों का उत्पादन केवल खाद्य तेल के लिए नहीं बल्कि अन्य उत्पादों के उत्पादन के लिए भी होता है । जिसमें प्रमुख रुप से मधुमक्खी पालन एवं साग-सब्जी के रूप में भी होता है ।  जिसके असर का आकलन GM-Seed सरसों पर नहीं किया गया है। जिससे जैव विविधता पर असर पड़ते हुए दिखाई पड़ रहा है । सर्वविदित तथ्य यह है कि 2012 में पार्लियामेंट की स्टैन्डींग कमिटी के द्वारा बासुदेव आचार्य के नेतृत्व में यह सलाह दिया गया था कि खाद्य पदार्थों के क्षेत्र में जो इंसानों के स्वास्थ्य को सीधे प्रभावित करने वाले GM-Seed के माध्यम से खेती नहीं होगा । इसके बाद पुनः पार्लियामेंट की स्टैन्डींग कमिटी रेणुका चौधरी के नेतृत्व में सुनिश्चित किया गया कि भारत सरकार के द्वारा GM-Seed के जरिए खेती ना हो । 2012 में नागरिक समाज के द्वारा सुप्रीम कोर्ट में हस्तक्षेप याचिका दायर किया गया था जिसके आलोक में माननीय सुप्रीम कोर्ट ने GM-Seed के प्रभाव के आकलन करने हेतु 6 सदस्यीय विशेषज्ञ समिति बनाया गया था जिसके रिपोर्ट में स्पष्ट रूप से लिखा था कि वैसे खाद्य उत्पाद जिसका भारत में प्रमुखता से व्यापक पैमाने पर उत्पादन होता है वैसे क्षेत्र में GM-Seed का उत्पादन प्रतिबंधित होना चाहिए ।