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जजों की पेंशन पर सुप्रीम कोर्ट का प्रहार, कहा-मुफ्त रेवड़ियों के लिए राज्य सरकारों के पास पैसा है, लेकिन जजों के लिए नहीं

सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकारों पर कटाक्ष करते हुए कहा कि उनके पास मुफ्त योजनाओं और रेवड़ियां बांटने के लिए तो पर्याप्त धन है, लेकिन जजों के वेतन और पेंशन पर खर्च करने के लिए पैसा नहीं है। शीर्ष अदालत ने अपनी टिप्पणी में महाराष्ट्र की 'लाडकी बहना योजना' और दिल्ली में नकद राशि वितरण की राजनीतिक घोषणाओं का उल्लेख किया। दरअसल ऑल इंडिया जजेस एसोसिएशन द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने राज्यों की वित्तीय प्राथमिकताओं पर सवाल उठाए। न्यायमूर्ति बी.आर. गवई और न्यायमूर्ति अगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने टिप्पणी करते हुए कहा कि राज्यों के पास उन लोगों को धन देने के लिए पैसा है जो कुछ काम नहीं करते, लेकिन जिला अदालत के जजों को पेंशन और वेतन देने में वित्तीय बाधाओं का हवाला दिया जाता है।

एसोसिएशन ने 2015 में सुप्रीम कोर्ट में यह याचिका दायर की थी, जिसमें जिला अदालतों के जजों को बेहतर पेंशन और सेवानिवृत्ति लाभ देने की मांग की गई थी। अदालत ने पूर्व में भी जिला जजों की कम पेंशन पर चिंता व्यक्त की थी। इस मामले में वरिष्ठ अधिवक्ता के. परमेश्वर न्यायमित्र के रूप में उपस्थित हुए।

बेहतर भुगतान की आवश्यकता पर जोर
सुनवाई के दौरान वरिष्ठ वकील के. परमेश्वर ने कहा कि अगर हम न्यायपालिका में नई प्रतिभाओं को जोड़ना चाहते हैं, तो हमें जजों को बेहतर भुगतान करना होगा। वहीं, केंद्र सरकार की ओर से अटॉर्नी जनरल आर. वेंकटरमणी ने कहा कि सरकार पर पेंशन की जिम्मेदारी लगातार बढ़ रही है। उन्होंने वित्तीय चिंताओं को ध्यान में रखते हुए पेंशन निर्धारण की बात कही।

रेवड़ियां बांटने पर अदालत का कटाक्ष
जस्टिस गवई ने मुफ्त योजनाओं पर राज्यों की प्राथमिकताओं की आलोचना करते हुए कहा कि चुनाव के समय 'लाडकी बहना' जैसी योजनाओं और नकद राशि वितरण की घोषणाएं की जाती हैं। उन्होंने दिल्ली के कुछ राजनीतिक दलों का भी जिक्र किया, जिन्होंने सत्ता में आने पर लोगों को नकद राशि देने की बात कही थी।

सुनवाई के दौरान अटॉर्नी जनरल ने मामले की सुनवाई स्थगित करने का अनुरोध किया और कहा कि सरकार जल्द ही इस मुद्दे पर अधिसूचना जारी कर सकती है। हालांकि, अदालत ने इस अनुरोध को अस्वीकार करते हुए कहा कि यह मामला वर्षों से लंबित है और इसे और आगे नहीं बढ़ाया जा सकता। पीठ ने स्पष्ट किया कि यदि सरकार अधिसूचना जारी करती है तो अदालत को इसकी जानकारी दी जा सकती है।