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देशभक्ति को सिनेमा का चेहरा बनाने वाले दिग्गज कलाकार मनोज कुमार का निधन

भारतीय सिनेमा के ‘भारत कुमार’ अब हमारे बीच नहीं रहे। शुक्रवार सुबह 87 वर्षीय मनोज कुमार का कोकिलाबेन धीरूभाई अंबानी अस्पताल में निधन हो गया। सुबह 4:03 बजे उन्होंने अंतिम सांस ली। रिपोर्ट के अनुसार, दिल का दौरा उनकी मौत की वजह बना। इसके अलावा वे बीते कुछ महीनों से डीकंपेंसेटेड लिवर सिरोसिस जैसी गंभीर बीमारी से भी जूझ रहे थे। उन्हें 21 फरवरी को अस्पताल में भर्ती कराया गया था।
मनोज कुमार ने देशभक्ति फिल्मों की जो परंपरा शुरू की, वह आज भी दर्शकों के दिलों में ज़िंदा है। ‘उपकार’, ‘पूरब और पश्चिम’, ‘रोटी कपड़ा और मकान’, ‘क्रांति’ जैसी फिल्में आज भी उनकी पहचान हैं। देश के लिए उनके प्रेम और योगदान ने ही उन्हें 'भारत कुमार' की उपाधि दिलाई।
उनके अंतिम दर्शन शुक्रवार दोपहर को विशाल टॉवर, जुहू में होंगे और अंतिम संस्कार शनिवार सुबह पवन हंस श्मशान घाट पर किया जाएगा।
हरिकिशन से 'भारत कुमार' बनने की यात्रा
24 जुलाई 1937 को अविभाजित भारत के ऐबटाबाद (अब पाकिस्तान) में जन्मे हरिकिशन गिरि गोस्वामी, देश के बंटवारे के बाद अपने परिवार के साथ दिल्ली आ गए। यहीं से शुरू हुआ उनका एक्टिंग का सफर। अशोक कुमार और दिलीप कुमार से प्रभावित होकर उन्होंने अपना नाम बदलकर ‘मनोज कुमार’ रख लिया। कॉलेज के दिनों में थिएटर से जुड़े और फिर मुंबई की ओर रुख किया।
1957 में 'फैशन' फिल्म से शुरुआत हुई और फिर 1960 की 'कांच की गुड़िया' से उन्हें लीड रोल मिला। इसके बाद तो उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा।
शास्त्री जी की प्रेरणा से बनी 'उपकार'
1965 के भारत-पाक युद्ध के बाद प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने मनोज कुमार से ‘जय जवान जय किसान’ की भावना पर फिल्म बनाने का आग्रह किया। तब फिल्म निर्देशन का अनुभव न होने के बावजूद उन्होंने ‘उपकार’ बनाई, जो न केवल सुपरहिट हुई बल्कि देशभक्ति फिल्मों का चेहरा बन गई। अफसोस, शास्त्री जी इस फिल्म को देख नहीं पाए।
इमरजेंसी का दौर और विरोध
इंदिरा गांधी के साथ रिश्ते अच्छे होने के बावजूद, मनोज कुमार ने इमरजेंसी का खुलकर विरोध किया। इसका खामियाजा उन्हें भुगतना पड़ा। उनकी फिल्म 'शोर' को दोबारा सिनेमाघरों में रिलीज़ करने से पहले ही दूरदर्शन पर दिखा दिया गया। वहीं 'दस नंबरी' को सूचना और प्रसारण मंत्रालय ने बैन कर दिया।
उन्हें इमरजेंसी पर बनी एक डॉक्युमेंट्री डायरेक्ट करने का प्रस्ताव मिला था, जिसकी स्क्रिप्ट अमृता प्रीतम ने लिखी थी। लेकिन उन्होंने न सिर्फ प्रस्ताव ठुकरा दिया, बल्कि अमृता प्रीतम को फोन कर तंज कसते हुए पूछा—"क्या आपने एक लेखक के तौर पर समझौता कर लिया?" इस पर शर्मिंदा होकर अमृता ने खुद स्क्रिप्ट फाड़ने की बात कही।
पुरस्कार और सम्मान
मनोज कुमार को भारतीय सिनेमा में उनके योगदान के लिए कई पुरस्कारों से नवाजा गया। उन्हें एक राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार, सात फिल्मफेयर अवॉर्ड्स, 1992 में पद्म श्री और 2015 में सिनेमा का सर्वोच्च सम्मान ‘दादा साहब फाल्के पुरस्कार’ मिला।