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गांव के लिए सुरक्षा कवच माने जाते हैं यहा के चमगादड़

धरती पर रहस्य तो बहुत हैं लेकिन कुछ चिजें ऐसी होती है जो आपको आश्र्च चकित कर सकती है. बिहार की राजधानी पटना से महज 28 किलोमीटर दूर स्थित महुआ मार्ग से पक्षिम राजापाकर प्रखंड में एक ऐसा गांव है जिसके बारे में जानकर आप हैरान रह जाएंगे. कहानी है गांव के 52 विघा भू… Read More »गांव के लिए सुरक्षा कवच माने जाते हैं यहा के चमगादड़
 

धरती पर रहस्य तो बहुत हैं लेकिन कुछ चिजें ऐसी होती है जो आपको आश्र्च चकित कर सकती है. बिहार की राजधानी पटना से महज 28 किलोमीटर दूर स्थित महुआ मार्ग से पक्षिम राजापाकर प्रखंड में एक ऐसा गांव है जिसके बारे में जानकर आप हैरान रह जाएंगे.

कहानी है गांव के 52 विघा भू भाग में फैले विख्यात सरोवर और यहां के वृक्षों पर सदियों से बास करते विशाल काय वाले चमगादड़ की. मालूम हो कि यह दोनों गांव के लिए धरोहर हैं जो कई इतिहांस के पन्नों को खूद में समेटे हुए हैं. इस सरसई सरसित सरोवर के चारो तरफ वरगद, पीपल, जामून, कदम, नीम, आम, लीची आदि के गई विशाल व्रक्ष लगे हैं. जिनपर 10 हजार से भी अधिक चमगादड़ों ने अपना आशियाना बना रखा है यानी कब्जा जमा रखा है.

जिस तरह से चीन और जापान में चमगादड़ खुशी का प्रतीक माना जाता है. उसी तरह से इस छोटे से गांव के लोगों में भी चमगादड़ों के प्रति काफी ज्यादा श्रधा देखने को मिलती है. यह इनकी पूजा करते हैं, ग्रामीणों का कहना है कि चमगाड़ के रहने से गांव में सुख शांन्ति जैसा माहौल बना रहता हैण. मानों बादूरों की झूंड ने अपनी चहचहाहट से पूरे गांव को सुरक्षा कवच में कैद कर लिया हो. उन्होंने बताया कि सदियों पहले गांव के अंदर महामारी फैली थी जो चमगादड़ के आने से खत्म हो गई. जिसके बाद से ऐसी कोई समस्या उत्पन्न नही हुई. और नहीं चोरी, डकैती, हत्या, लूट जैसी अप्रीय घटना घटीत हुई. लोगों ने बताया कि रात के अंधेरे में अगर कोई अजनवी व्यक्ति गांव में प्रवेश करता है तो, चमगाड़ों का पूरा झुंड सोर मचाना शुरू कर देते हैं. जिससे सभी ग्रामिण किसी भी बाधा से निपटने के लिए सचेत हो जाते हैं.

इस संबंध में सरसइ फतेहपुर फुलवरिया निवासी भाजपा युवा मोर्चा के जिला मीडिया प्रभारी नीरज शर्मा का कहना है कि चमगाड़ों के प्रति ग्रामीणों की आस्था ऐसी है कि न तो गावं का कोई व्यक्ति इन्हें मारने भगाने का प्रयास करता है और नही किसी प्रदेशी को ऐसा करने दिया जाता हैण. अगर कोई चमगादड़ों को तंग करने की मंसा से पेड़ पर रोड़ा या पथ्तर चलाता है तो पकड़े जाने पर उसे दंडित किया जाता है. वहीं कुछ ग्रामिणों ने चमगादड़ों के प्रति चिंता जाहिर करते हुए कहा कि विख्यात सरसई सरोवर के सुख जाने के बाद से यहां पर इन पक्षियों को सही से पानी नही मिल पा रहा है, इस वजह से कई चमगादड़ों की मृत्यु हो गई.

पहले इसी तलाव में पानी लवालव भड़ा रहता था लेकिन पीछले पांच सालों से सरोवर में चुल्लू भर भी पानी नही है. पानी की वजह से पक्षी अलग अलग जगहों पर पलायन करने लगे हैं. हालांकि नीरज शर्मा का कहना है कि सरोवर के जिर्नोधार के विषय को ले पूर्व में हमने जिलाधिकारी, क्षेत्र के वीडियो, प्रयटन मंत्री सहीत कई अन्य अधिकारियों पत्र लिखकर अवगत कराया था. जिनमें से एक पर प्रतिक्रिया जाहिर करते हुए प्रयटण विभाग ने अपने पर्यटक रोड मैंप इस सरोवर को शामिल कर लिया है.

आहार पाने के लिए रातभर में सौ किलोमीटर का करते हैं सफर

सरोवर के पेड़ों पर उलटा लटके चमगादड़ों का झुंड अपने भोजन की तलाश में एक रात में लगभग सौ किलोमीटर से भी अधिक की दूरी तय करते हैं. और फिर सह समय वापस सुबह 5 बजे पेड़ों की टहनियों पर उल्टा लटक जाते हैं. ग्रामीणों ने बताया कि रात के अंधरे में कुछ हीं बच्चे या बुजुर्ग चमगादड़ पेड़ों से लटके दिखाई देते हैं.

इस जगह पर पाए जाते हैं ऐसे चमगादड़. 250 किलों ग्राम से लेकर सात किलो वजन तक के होते हैं यह पक्षी.

वन विभाग के अधिकारी के अनुसार सरोवर तट के पेड़ों पर लटके चमगादड़ में तीन प्रकार के प्रजाति पाए जाते हैं. एक प्रजाति अमूमन पेड़ों पर पाए जाते हैंण. जिनका वजन 50 ग्राम से 200 ग्राम तक होता हैण. दूसरी प्रजाति जिनका वजन 100 ग्राम से 350 ग्राम तक का होता है. वहीं तीसरी प्रजाति बड़े आकार वाले चमगादड़ होते हैं जिनमें 20 नूखीला नाखून पाए जाते हैं. इनकी दांतो की संख्या भी इंसानों की तरह 32 होते है. इनका वजन 500 ग्राम से लेकर 7 किलोग्राम तक होता है.

2019 में नेपाल से आए एक वैज्ञानिक का सोध है कि आस्ट्रेलिया के बाद दूसरे नंबर पर सबसे ज्यादा चमगादड़ फतेहपुर गांव में पाया जाता है. पूरे संसार भर में चमगादड़ों की लगभग 1100 प्रजातिया है. यह सबसे ज्यादा अमेरिका के एक गुफा में पाया जाता है. यहां पर 2 करोड़ से भी अधिक चमगादड़ है. इनमें किसी ध्वनी को सुनने की क्षमता बहुत ही अधिक होती है. यह एक बाल की हरकत को भी सुनने में सक्षम होते हैं. चमगादड़ अपने नाक से सुंघकर 16 सेंमी दूर जानवर की गर्मी को महसूस कर लेते हैं.

मालूम हो कि एक सर्वे के अनुसार कुछ ऐसे भूरे चमगादड़ होते हैं जो गर्मी के दिनों में खीरों को नुकसान पहुंचाने वाले सभी कीटों को खा जाते हैं, जिससे हर साल किसानों के 51 करोड़ रूपये बचते हैं. हम उनके पंखो की बात करें तो दुनिया के सबसे लंम्बे चमगादड़ के पंख की लंम्बाई 5 से 6 फुट तक होती है. भूरे चमगादड़ की आयु लगभग 40 वर्ष तक होती है. वैज्ञानिकों का मानना है कि चमगादड़ों की उत्पति लगभग 10 करोड़ साल पहले डायनासोरो के समय हुई थी. एक समय में उत्तरी अमेरिका और युरोप में चमगादड़ो को जादु.टोने से जोड़कर इनका उपयोग दवाईया और औषधि बनाने के लिए किया जाता थाण.

बता दें कि एक छोटे पिपिस्ट्रेल चमगादड़ का वजन 3 ग्राम के करीब होता हैं फिर भी इनके अंदर एक रात में 3000 कीड़े खाकर पचाने की शक्ति होती है. अभी तक का सबसे पूराना जमगादड़ अमेरिका के जीवाश्म व्योमिंग के योलोस्टोन में पाया गया है जो लगभग 5 करोड़ वर्ष पुराना है. दुनियां के सबसे छोटे चमगादड़ का मात्र 2.5 ग्राम मापा गया है. इसके थूक से हृदय रोग को ठिक किया जा सकता है.