बिहार का अनोखा गांव, जहां मुर्गा-दारू से दूर रहते हैं लोग, 300 साल से चली आ रही परंपरा
गया: बिहार के गया का यह गांव अनोखा है। 400 आबादी वाले यह गांव पूरी तरह शाहाकारी है। यह परंपरा पिछले कई सदियों से चली आ रही है। जहां आज भी का मांसाहारी का सेवन नहीं होता है।
हम बात कर रहे गया जिले के वजीरगंज प्रखंड अंतर्गत सकर दास नवादा पंचायत स्थित बिहिआईन गांव का है. यहां 300 सालों से भी अधिक समय की परंपरा के बारे में जानकर हर कोई हैरान रह जाता है. इस गांव की प्रसिद्धी निरामिष वाले गांव के रूप में है, क्योंकि यहां के लोग किसी भी तरह के मांस का सेवन नहीं करते हैं. पूरा गांव शाकाहारी है.
बिहिआइन गांव में मदिरा भी लोग नहीं पीते हैं. यह एक बड़ी बात है, कि पूरी तरह से मीट मांस अंडा का सेवन नहीं करने वाले इस गांव की दूरी शराब जैसी बुराइयों से भी है. शराब का सेवन भी कई सदियों से इस गांव में कोई नहीं करता. यहां तक की प्याज लहसुन खाना भी वर्जित है. हालांकि अब कुछ युवा पीढ़ी ने प्याज लहसुन का सेवन करना शुरू किया है, लेकिन ज्यादातर गांव के ज्यादातर घरों में आज भी प्याज लहसुन तक लोग नहीं खाते हैं. इस तरह बिहार का बिहिआइन गांव एकदम से अजूबा गांव है. साथ ही एक मिसाल भी है, जहां मांसाहार, शराब का सेवन नहीं होता. लोग प्याज लहसुन खाने से भी बचना चाहते हैं.
गया जिले के बिहिआइन गांव में तकरीबन 50 घर राजपूत समाज के है. इसके अलावा दर्जनों घर यादव जाति के हैं. कुल मिलाकर तकरीबन 400 से अधिक की आबादी है. पूरी आबादी निरामिष है. यहां ब्रह्म स्थान विराजमान है. ब्रह्मस्थान में ब्रह्म बाबा है. ब्रह्म बाबा का पिंड तब से है, जब से यहां के लोग मांसाहार मदिरा का सेवन नहीं करने की परंपरा शुरू किए हैं. बताया जाता है, कि एक बार किसी व्यक्ति के ऊपर ब्रह्म बाबा आ गए थे. ब्रह्म बाबा का कोप उक्त व्यक्ति के ऊपर छाया हुआ था. लोगों ने काफी पूजा अर्चना की, तब ब्रह्मा बाबा ने कहा कि शराब मदिरा छोड़ोगे, तो वह यहां विराजमान रहेंगे. तब से गांव के लोगों ने मांस मदिरा का सेवन नहीं करने की शपथ ली और फिर यहां ब्रह्म बाबा विराजमान हो गए, जिनका पिंड स्वरूप आज भी बना हुआ है. कहा जाता है कि 300 साल से भी अधिक समय से ब्रह्म बाबा का यह पिंड स्थान है.
सदियों से निरामिष इस गांव की परंपरा यथावत टिकी हुई है. पुश्त दर पुश्त लोग इसका निर्वहन कर रहे हैं. शुरू में तो लोग प्याज लहसुन तक का सेवन नहीं करते थे, लेकिन अब पिछले 10-15 सालों से कुछ युवा पीढ़ी ने प्याज लहसुन खाना शुरू किया है, लेकिन आज भी गांव में प्याज लहसुन का सेवन ज्यादातर घरों में नहीं होता है. वही गलती से भी किसी ने मीट मांंस या शराब का सेवन कर लिया, तो उसका प्रकोप तुरंत दिखता है. गांव वालों के अनुसार ब्रह्म बाबा नाराज होते हैं और मीट मांस मदिरा का सेवन करने वाले को अपने कर्म का फल भुगतना पड़ता है. गांव के लोग बताते हैं, कि जिसने भी इस परंपरा को तोड़ा, उसके घर में कई तरह के कोप शुरू हो गए. किसी के घर में आग लग गई, तो किसी की मौत हो गई, किसी के बच्चे की जान चली गई. गांव के लोग बताते हैं, कि यहां के रहने वाले कुछ लोग बाहर चले गए. वहां जाकर मीट मांस का सेवन कर लिया, जिसका कोप उन्हें भुगतना पड़ा. कुछ ग्रामीण बताते हैं, कि उदाहरण के तौर पर ले, तो गांव के उदय कुमार बाहर गए थे. मीट मांस का सेवन कर लिया. उन्हें कई तरह की विपत्तियों का सामना करना पड़ा. जान जाते-जाते बची. काफी गुहार ब्रह्म बाबा को याद कर लगाई, तब सब कुछ सामान्य हुआ, हालांकि उन्हें काफी नुकसान और परेशानियां झेलनी पङी यही वजह है कि ब्रह्म बाबा के कोप से बचने के लिए गांव में कोई भी मीट मांंस या मदिरा का सेवन नहीं करता. अभी भी यदि कोई भूल से भी परंपरा को तोड़ दे, तो तुरंत उसका फल दिख जाता है.
ग्रामीण रणविजय सिंह बताते हैं, कि ब्रह्मा बाबा के कारण हम लोग मीट मांस अंडा या मदिरा का सेवन नहीं करते हैं. प्याज लहसुन आज भी कई घरों में नहीं डाला जाता है. बताते हैं, कि ब्रह्मा बाबा हमारे गांव की रक्षा भी करते हैं. गांव में विपत्तियां नहीं आती. यह गांव खुशहाली रहता है. अकाल का असर भी हमारे गांव में नहीं देखा जाता.
गांव के किशोरी सिंह बताते हैं, कि ब्रह्मा बाबा के किस्से काफी दूर-दूर तक है. ब्रह्मा बाबा मन्नतों को पूरा करते हैं. यहां दूर-दूर से मन्नत मांगने लोग आते हैं. कष्टों से निपटारा को लेकर भी यहां आते हैं. यहां हम लोग सदियों से मीट मांस अंडा या मदिरा का सेवन नहीं कर रहे हैं.
गांव में एक और खासियत यह भी है, यहां आने वाली बहू को भी निरामिष होना पड़ता है. इसके बारे में गांव के लोग पहले ही दुल्हन के घर वालों को पूरी जानकारी देते हैं. इसके बाद ही यहां परंपरा को निभाने की शर्त पर शादियां होती है. यहां जो भी बहुएं आती है, वह मीट मांंस अंडा का सेवन नहीं करती है. वही, यहां की बेटी दूसरी जगह ब्याही जाती है, तो उसे निरामिष का पालन करना होता है. बाद में उसके बच्चे सेवन कर भी सकते हैं, या नहीं भी, यह उस परिवार की अगली पीढ़ी पर निर्भर करता है. इस तरह गया का बिहिआइन गांव पूरी तरह से शाकाहारी गांव है. ग्रामीणों का कहना है, कि सदियों की यह परंपरा जो चली आ रही है, उसे हम लोगों में तोड़ने की हिम्मत नहीं है.