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ताड़ी से पाबंदी हटाने की फिर उठी मांग, पासी समाज के नेता ने नीतीश कुमार से की अपील

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार सोमवार को अचानक जनता दल (यू) के प्रदेश मुख्यालय पहुंचे, जहां उन्होंने पार्टी कार्यकर्ताओं से संवाद किया। इसी दौरान जदयू के अनुसूचित जाति प्रकोष्ठ के प्रदेश उपाध्यक्ष मुन्ना चौधरी ने उनसे मुलाकात कर ताड़ी पर लगे प्रतिबंध को हटाने की पुरजोर मांग रखी।

मुन्ना चौधरी ने मुख्यमंत्री के सामने अपनी बात रखते हुए कहा कि वे पासी समाज से आते हैं, जिसके लिए ताड़ी केवल एक पेय नहीं, बल्कि जीवनयापन का मुख्य साधन है। उन्होंने कहा कि ताड़ी के पेड़ों से गिरने की घटनाओं में अब तक 500 से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है, लेकिन सरकार की ओर से पीड़ित परिवारों को कोई मुआवजा नहीं मिला है।

ताड़ी को शराब से अलग मानने की मांग
चौधरी ने स्पष्ट कहा कि ताड़ी में अल्कोहल की मात्रा नगण्य होती है, इसलिए इसे राज्य की शराबबंदी नीति से बाहर रखा जाना चाहिए। उन्होंने ताड़ी को पारंपरिक और प्राकृतिक पेय बताते हुए कहा कि इसे शराब की श्रेणी में रखना न केवल अनुचित है, बल्कि इससे हजारों परिवारों की रोज़ी-रोटी पर संकट खड़ा हो गया है।

उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि सरकार द्वारा ताड़ी का विकल्प बताए जाने वाले नीरा के प्रचार-प्रसार में भी गंभीर खामियां हैं, जिससे यह विकल्प आम लोगों तक नहीं पहुंच पा रहा है।

मुख्यमंत्री ने दिए जांच के निर्देश
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने चौधरी की बातों को गंभीरता से सुना और प्रदेश अध्यक्ष उमेश कुशवाहा को निर्देश दिया कि वे इस मामले की पूरी जानकारी लें और मुन्ना चौधरी को चर्चा में शामिल करें। इससे संकेत मिल रहे हैं कि सरकार इस संवेदनशील मुद्दे पर विचार कर सकती है।

2016 से ताड़ी पर भी लागू है प्रतिबंध
बताते चलें कि बिहार में वर्ष 2016 से शराबबंदी लागू है, जिसमें ताड़ी जैसे पारंपरिक पेयों पर भी रोक लगा दी गई थी। हालांकि, तब से ही कई सामाजिक संगठनों और जातीय समूहों द्वारा यह मांग लगातार उठाई जाती रही है कि ताड़ी को शराब के दायरे से बाहर कर, इसे पारंपरिक पेय के रूप में मान्यता दी जाए।