पटना में "सनातन महाकुंभ 2025" को अनुमति ना मिलने पर भड़का विरोध, आयोजन बना राष्ट्रचेतना का प्रतीक
Jun 30, 2025, 18:57 IST

हालांकि, यह अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण है कि आयोजन की विधिवत अनुमति एक माह पहले मिलने के बावजूद, अब पटना के जिलाधिकारी द्वारा अंतिम समय पर अनुमति को निरस्त कर दिया गया है। आयोजकों ने इसे लोकतंत्र और संविधान दोनों के साथ अन्याय बताया है।
इस निर्णय के विरोध में आज शाम 4 बजे पटना के जेपी गोलंबर पर शांतिपूर्ण धरना-प्रदर्शन का आयोजन किया गया, जिसमें शास्वत चौबे के नेतृत्व में अटल विचार मंच और भगवान परशुराम से जुड़े दर्जनों संगठनों के युवा, सनातन समर्थक शामिल हुए। धरने का नेतृत्व पूर्व केंद्रीय मंत्री एवं श्रीराम कर्मभूमि न्यास के संस्थापक अश्विनी कुमार चौबे कर रहे हैं, जिन्होंने घोषणा की है कि अगर 11 बजे तक अनुमति नहीं मिली, तो वे स्वयं धरने पर बैठेंगे।
अश्विनी चौबे ने बताया कि राज्यपाल ने महाकुंभ में सम्मिलित होने की सहमति दी है और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से मिलकर उन्हें आमंत्रण भी दिया गया है। फिर भी, प्रशासनिक स्तर पर रोक लगाना लोकतांत्रिक मूल्यों के विपरीत है।
प्रशासन की यह दोहरी नीति तब और स्पष्ट हो जाती है जब हाल ही में 29 जून को गांधी मैदान में संविधान संशोधन विधेयक के विरोध में एक विशेष समुदाय की रैली को अनुमति दी गई, जिसमें लाखों की संख्या में लोग बिहार, झारखंड, बंगाल और ओडिशा से शामिल हुए और कई राजनीतिक दलों की भागीदारी भी रही। तब प्रशासन मौन रहा, लेकिन एक अराजनीतिक, सर्वदलीय और सांस्कृतिक आयोजन को रोकने की कोशिश की जा रही है।

क्या यह तुष्टिकरण की नीति का उदाहरण नहीं? क्या संतों की चेतना से भयभीत हैं कुछ राजनीतिक दल? आयोजन समिति ने स्पष्ट किया है कि महाकुंभ किसी एक पार्टी या विचारधारा का नहीं है। कांग्रेस, भाजपा, राजद, जदयू, वामपंथी दलों समेत सभी सांसदों को व्यक्तिगत आमंत्रण भेजा गया है और कई नेताओं ने भागीदारी की पुष्टि की है।
महाकुंभ में पद्मविभूषण जगद्गुरु श्री रामभद्राचार्य, स्वामी अनंताचार्य, देशभर के शंकराचार्य, महामंडलेश्वर और सैकड़ों संत-आचार्य भाग लेंगे। यह आयोजन न केवल सनातन संस्कृति का उत्सव है, बल्कि भारत की आत्मा की पुकार है। यह केवल धरना नहीं, बल्कि संविधान की रक्षा का संकल्प है।
आयोजन समिति ने राज्य और केंद्र सरकारों से अनुरोध किया है कि संविधान के अनुच्छेद 25 और 26 के तहत धार्मिक स्वतंत्रता का सम्मान करते हुए, ऐसे आयोजनों को संदेह की दृष्टि से नहीं बल्कि संवाद और सम्मान के साथ देखा जाए।
यदि बहुसंख्यकों की आस्था पर रोक और तुष्टिकरण की नीति ही दिशा बनती है, तो यह भारत की आत्मा को आहत करेगा। परंतु यह भी उतना ही सत्य है कि भारत की आत्मा अमर है — और यह आयोजन उसी अमर आत्मा की चेतना का स्वर है।